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________________ श्राद्धोपयोगी पात्रों का विचार १२४३ अर्घ्यं (आमंत्रित ब्राह्मणों एवं पिण्डों को सम्मानित करने के लिए जल ) देने, श्राद्ध भोजन बनाने, भोजन करने एवं परोसने के लिए जो पात्र होते हैं, उनके विषय में विस्तार से कहा गया है। कात्यायन के श्राद्धसूत्र (२) ७२ में आया है कि अर्ध-जल यज्ञिय वृक्षों ( पलाश, अश्वत्थ एवं उदुम्बर) से बने चमसों (प्यालों या कटोरों) या सोने, चाँदी, ताम्र, खड्ग ( गेंडे के सींग के पात्रों), रत्नों या पत्तों के दोनों में देना चाहिए। विष्णु० ध० सू० (७९/१४।१५) में आया है कि कर्ता को धातु के पात्रों का, विशेषतः चाँदी के पात्रों का प्रयोग करना चाहिए। मार्कण्डेय ( ३१।६५) एवं वायु० (७४ | ३ ) का कथन है कि पितरों ने चाँदी के पात्र में स्वघा दुही थी, अतः चाँदी का पात्र पितृगण बहुत चाहते हैं, क्योंकि उससे उन्हें संतोष प्राप्त होता है। वायु० (७४।१।२), मत्स्य ० (१७।१९-२२), ब्रह्माण्ड ० (उपोद्घात ११1१-२ ) एवं पद्म० (सृष्टि ९।१४७ - १५० ) का कथन है कि पितरों के लिए सोने-चांदी एवं ताँबे के पात्र उपयुक्त' हैं; चांदी के विषय में चर्चा करने मात्र से, या उसके दान से पितरों को स्वर्ग में अक्षय फल प्राप्त होता है; अर्घ्य, पिण्डदान तथा भोजन देने के लिए चाँदी के बरतनों को प्रधानता मिलनी चाहिए, किन्तु देवकार्यों में चाँदी का पात्र शुभ नहीं है। और देखिए अत्रि (स्मृतिच० २, पृ० ४६४ ) । पद्म० ( सृष्टि ९।१४५ - १५१ ) में आया है कि पात्र यज्ञिय काष्ठ, पलाश, चाँदी या समुद्रीय सीप शंख आदि के होने चाहिए; चाँदी शिव की आँख से उत्पन्न हुई थी, अतः यह पितरों को बहुत प्यारी है । प्रजापति ( १११ ) ने कहा है कि तीन पिण्डों को सोने, चांदी, तांबे, काँसे या खड्ग के पात्र में रखना चाहिए, मिट्टी या काट के पात्र में नहीं । इसमें पुन: (११२) आया है कि पकानेवाले पात्र ताँबे या अन्य धातुओं के होने चाहिए, किन्तु जल से शोधित मिट्टी के पात्र ( पकाने के लिए) सर्वोत्तम हैं । लोहे के पात्र वाला भोजन htra मांस के समान है । फिर कहा गया है (११५) कि ब्राह्मण जिस पात्र में भोजन करे उसे सोने, चांदी या पाँच धातुओं से बना होना चाहिए, या पत्रावली ( पत्तल ) हो सकती है (और देखिए मत्स्य ० १७।१९-२० ) । केले के पत्ते भोजन के लिए कुछ लोगों द्वारा वर्जित माने गये हैं । काँसे, खर्पर, शुक्र ( सोने ), पत्थर, मिट्टी, काष्ठ, फल या लोहे के पात्र से ब्राह्मणों को आचमन नहीं करना चाहिए। तांबे के पात्र से आचमन करना चाहिए। अत्रि (१५३) ने कहा है कि लोहे के पात्र से भोजन नहीं परोसना चाहिए क्योंकि ऐसा करने से भोजन मल के समान हो जाता है और परोसने वाला नरक में जाता है। श्राद्ध भोजन बनाने के पात्र सोने, चांदी, तांबे, कांसे या मिट्टी के होने चाहिए, किन्तु अन्तिम भली-भांति पका होना चाहिए; ऐसे पात्र लोहे के कभी नहीं होने चाहिए। और देखिए श्राद्ध० प्र० ( पृ० १५५ ) | विष्णु ० ध० सू० (७९।२४) ने एक श्लोक उद्धृत किया है कि सोने, चाँदी, तांबे, खड्ग या फल्गु (कठगूलर) के पात्र से दिया गया भोजन अक्षय होता है । " ७२. यज्ञियवृक्षचमसेषु पवित्रान्तहितेषु एकैकस्मिन्नप आसिञ्चति शन्नो देवीरिति । सौवर्ण राजतौतुम्बरखड्गमणिमयानां पात्राणामन्यतमेषु यानि वा विद्यन्ते पत्रपुटेषु वैकैकस्यैकेन ददाति सपवित्रेषु हस्तेषु । श्राद्धसूत्र ( कात्यायन, २ ) । ७३. यस्वंगिरसोक्तम् 'न जातिकुसुमानि न कदलीपत्रम्' इति कदलीपत्रमत्र भोजनमिति पात्रतया प्राप्त निषिध्यते । स्मृतिच० ( श्रा०, पृ० ४३४) । औरों ने कहा है कि कदलीपत्र के विषय में विकल्प है, जैसा कि कुछ स्मृतियों (यथा लघ्वाश्वलायन २३१४२ ) ने कदलीपत्र को अनुमति दे दी है। ब्रह्माण्ड० (उपोद्यातपाद २१।३५-४० ) ने उल्लेख किया है कि पलाश, अश्वत्थ, उदुम्बर, विककत, काश्मर्य, खदिर, प्लक्ष, न्यग्रोध एवं बिल्व के पत्ते भोजन करने के लिए प्रयुक्त हो सकते हैं। फल्गु काष्ठ, बेल एवं बाँस के पात्रों की अनुमति दी गयी है, क्योंकि उनसे कुछ अच्छे फलों की प्राप्ति होती है। ८४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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