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________________ श्राव में ब्राह्मण-आमन्त्रण को विधि १२३५ में। आधुनिक काल के गयावाल ( गया के ब्राह्मण ) श्राद्धकर्ता को फल्गु नदी में खड़ा करके उसे अपनी सम्पत्ति के विषय में घोषणा करने को विवश करते हैं और वायुपुराण में कहे गये शब्दों का अक्षरशः पालन करने को उद्वेलित करते हैं तथा अपनी दक्षिणा मांगते हैं। बहुत-से लोग गया के ब्राह्मणों के व्यवहार से पूर्णरूपेण असन्तुष्ट होकर लौट आते हैं। वराहपुराण (१३।५०-५१ ) में पितरों के मुख से दो श्लोक कहलाये गये हैं- 'क्या हमारे कुल में कोई धनवान् एवं मतिमान् व्यक्ति उत्पन्न होगा जो हमें बिना वित्तशाठ्य ( कृपणता ) के पिण्डदान देगा और हमारे कल्याण के लिए ब्राह्मणों को, जब कि उसके पास प्रभूत धन हो तो, रत्न, वस्त्र, भूमि, यान तथा अन्य प्रकार की वस्तुएँ जल के साथ देगा ?' स्पष्ट है, यहाँ श्राद्ध में प्रभूत धन के व्यय की चर्चा है ( गया के अतिरिक्त स्थानों में भी ) । देवल (स्मृति० श्रा०, पृ० ४१० ) में आया है कि श्रोत यज्ञों, धर्म-कृत्यों, वार्षिक श्राद्धों या अमावस्या के श्राद्धों, वृद्धि के अवसरों, अष्टका के दिनों में आमंत्रित ब्राह्मणों को कुभोजन कभी नहीं कराना चाहिए। यदि कोई ब्राह्मण उपलब्ध न हो, तो श्राद्धविवेक, श्राद्धतत्त्व आदि निबन्धों का कहना है कि सात या दर्भों से बनी ब्राह्मणाकृतियाँ रख लेनी चाहिए और श्राद्ध करना चाहिए, दक्षिणा तथा अन्य सामग्रियां अन्य ब्राह्मणों को आगे चलकर दे देनी चाहिए (सामवेदी ब्राह्मणों के लिए ब्राह्मणाकृतियों के लिए रचनार्थ की कोई संख्या नहीं निर्धारित की गयी है ) । ब्राह्मणों को आमंत्रित करने की विधि के विषय में बहुत प्राचीन काल से नियम प्रतिपादित हुए हैं। आप० धर्म० सू० (२/७/१७/११-१३ ) का कथन है कि कर्ता को एक दिन पूर्व ही ब्राह्मणों से निवेदन करना चाहिए, श्राद्ध के दिन दूसरा निवेदन करना चाहिए ('आज श्राद्ध-दिन है, ऐसा कहते हुए) और तब तीसरी बार उन्हें सम्बोधित करना चाहिए ('भोजन तैयार है, आइए ऐसा कहकर ) । हरदत्त ने इन तीनों सूत्रों में पहले की व्याख्या की है कि प्रार्थना (निवेदन) इस प्रकार की होनी चाहिए; 'कल श्राद्ध है, आप आहवनीय अग्नि के स्थान में उपस्थित होने का अनुग्रह करें' ( अर्थात् जो भोजन बनेगा, उसे पाइएगा ) । मनु ( ३।१८७ ) ने भी कहा है कि आमंत्रण एक दिन पूर्व या श्राद्ध के दिन दिया जाना चाहिए। मत्स्य० (१६।१७ -२० ) एवं पद्म० ( सृष्टि ९।८५-८८ ) ने व्यवस्था दी है कि श्राद्धकर्ता को विनीत भाव से ब्राह्मणों को एक दिन पूर्व या श्राद्ध के दिन प्रातः आमंत्रित करना चाहिए एवं आमंत्रित होनेवाले के दाहिने घुटने को इन शब्दों के साथ छूना चाहिए- 'आपको मेरे द्वारा निमंत्रण दिया जा रहा है और उनको सुनाकर यह कहना चाहिए- 'आपको क्रोध से मुक्त होना चाहिए, तन और मन से शुद्ध होना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य पालन करना चाहिए, मैं भी उसी प्रकार का आचरण करूँगा, पितर लोग वायव्य रूप में आमंत्रित ब्राह्मणों की सेवा करते हैं।' बृहन्नारदीय पुराण का कथन है कि आमंत्रण इस रूप का होना चाहिए- 'हे उत्तम मनुष्यो, आप लोगों को अनुग्रह करना चाहिए और श्राद्ध का आमंत्रण स्वीकार करना चाहिए।' यह ज्ञातव्य है कि प्रजापतिस्मृति ( ६३ ) ने व्यवस्था दी है कि श्राद्धकृत्यों या देवकृत्यों के लिए ब्राह्मणों को एक दिन पूर्व संध्याकाल में 'अक्रोधनैः' श्लोक के साथ आमंत्रित करना चाहिए। स्कन्दपुराण (६।२१७३७) में आया है कि कर्ता इस प्रकार ब्राह्मणों को सम्बोधित करे - ' मेरे पिता आपके शरीर में ( हैं या प्रवेश करेंगे), इसी प्रकार मेरे पितामह भी करेंगे; वे ( पितामह) अपने पिता के साथ आयें, आपको प्रसन्नता के साथ व्रत (नियमों) का पालन करना चाहिए।' पितरों के प्रतिनिधि ब्राह्मणों को आमंत्रण प्राचीनावीत ढंग से एवं वैश्वदेविकों को यज्ञोपवीत ढंग से जनेऊ धारण करके देना चाहिए। इस प्रश्न पर कि वैश्वदेविक ब्राह्मणों को पहले निमंत्रित करना चाहिए या पितृ-ब्राह्मणों को, स्मृतियों में मतभेद है, किन्तु मध्य काल के निबन्धों ने विकल्प दिया है (हेमाद्रि, श्राद्ध, पृ० १९५४ - ११५७ ) । लगता है, मनु ( ३।२०५ ) ने दैव ब्राह्मण को वरीयता दी है। यम (श्राद्धक्रियाकीमुदी, पृ० ८० श्राद्धतत्त्व, पृ० १९४ मद० पा०, पृ० ५६४ ) का कथन है कि कर्ता को एक दिन पूर्व सन्ध्याकाल में ब्राह्मणों से इन शब्दों के साथ प्रार्थना करनी चाहिए -- ' आप लोगों को ८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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