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________________ श्राद्ध में भोजनीय ब्राह्मणों की योग्यता एवं संख्या दातुन का प्रयोग नहीं करना चाहिए और ब्रह्मचारी एवं पवित्र रहना चाहिए। आपस्तम्बधर्मसूत्र (२/७/१७/२४) ने व्यवस्था दी है कि कर्ता को भोजन के लिए आमन्त्रण देने के काल से श्राद्ध कृत्य समाप्त न होने तक भोजन नहीं करना चाहिए। कूर्म ० ( उत्तरार्ध, २२।८) में आया है कि यदि कोई किसी ब्राह्मण को आमन्त्रित कर पुनः दूसरे को ( पहले की उपेक्षा करके) मूर्खतावश बुला लेता है तो वह उस ब्राह्मण से, जो प्रथमप्राप्त निमंत्रण त्याग कर दूसरे के यहाँ चला जाता है, अपेक्षाकृत बड़ा पापी है और वह मनुष्य के मल में कीट के रूप में जन्म लेता है । भविष्य ० (१।१८५।२३) में आया है कि बिना उत्तरीय धारण किये देवों, पितरों एवं मनुष्यों को सम्मान एवं ब्राह्मणों को भोजन नहीं देना चाहिए, नहीं तो कृत्य फलवान् नहीं हो सकता। श्राद्ध में आमन्त्रित ब्राह्मणों की संख्या के विषय में कई मत हैं। आश्व० गृ० (४।७।२-३ ) का कथन है कि पार्वण श्राद्ध (किसी पर्व, यथा अमावस्या के दिन किये जाने वाले), आभ्युदयिक श्राद्ध, एकोद्दिष्ट या काम्य श्राद्ध में जितनी ही बड़ी संख्या हो उतनी ही अधिक फल प्राप्ति होती है; सभी पितरों के श्राद्ध में केवल एक ब्राह्मण को कभी भी नहीं बुलाना चाहिए; प्रथम को छोड़कर अन्य श्राद्धों में विकल्प से एक भी बुलाया जा सकता है; पिता, पितामह एवं प्रपितामह के श्राद्धों में एक, दो या तीन ब्राह्मण बुलाये जा सकते हैं। शांखा० गृ० (४/१/२ ) एवं कौषीतकि गृ० (३।१४।१-२ ) में आया है कि ब्राह्मणों को विषम संख्या में बुलाना चाहिए और कम-से-कम तीन को प्रतिनिधि स्वरूप बुलाना चाहिए। गौतम ० ( १५।२।७-९ एवं ११ ) का कहना है - 'वह अयुज ( विषम ) संख्या में ब्राह्मणों को खिलाये, कम-से-कम नौ या जितनों को खिला सके; और उन्हें (ब्राह्मणों को) वेदज्ञ, मृदुभाषी, अच्छी आकृतियों वाले ( सुन्दर ), प्रौढ़ अवस्था वाले एवं शीलसम्पन्न होना चाहिए।' यदि पाँच बुलाये गये हैं तो उनमें दो देवों के लिए और तीन पितरों के लिए होने चाहिए; यदि सात हों तो उनमें चार देवों के लिए एवं तीन पितरों के लिए होने चाहिए । वसिष्ठ (११।२७ = मनु ३।१२५ = बोधा० ६० सू० २८/२९), याज्ञ० (१।२२८), मत्स्य ० ( १७| १३-१४) एवं विष्णु ( ३।१५।१४ ) ने कहा है कि देव कृत्य में दो एवं पितृ कृत्य में तीन या दोनों में एक ब्राह्मण को अवश्यमेव खिलाना चाहिए; धनी व्यक्ति को भी चाहिए कि वह अधिक ब्राह्मणों को न खिलाये । पद्म० (सृष्टि ९। ९८ एवं १४१) ने भी यही बात कही है। इससे प्रकट है कि आमंत्रितों की संख्या कर्ता के साधनों पर नहीं निर्भर होती, प्रत्युत वह आमंत्रित करनेवाले की योग्यता पर निर्भर होती है जिससे वह उचित रूप में एवं सुकरता के साथ आमंत्रित का सम्मान कर सके। भावना यह थी कि जब श्राद्ध कर्म हो तो देवों के लिए दो एवं पितरों के लिए तीन ब्राह्मणों को भोजन देना चाहिए। यदि एक ही ब्राह्मण बुलाया जा सका या एक ही उपलब्ध हुआ तो वसिष्ठ ० ( ११/(३०-३१) ने व्यवस्था दी है कि सभी प्रकार के पके भोजनों के कुछ-कुछ भाग एक पात्र में रखकर उस स्थान पर रख देने चाहिए जहां वैश्वदेविक ब्राह्मण बैठाया जाता है, इसके उपरान्त उसे एक थाल में रखकर विश्वेदेवों का आवाहन करना चाहिए और उन्हें उस स्थान पर उपस्थित होने की कल्पना करनी चाहिए और तब उस भोजन को अग्नि में डाल देना चाहिए या ब्रह्मचारी को ( भिक्षा के रूप में) दे देना चाहिए और उसके उपरान्त श्राद्ध कर्म चलता रहना चाहिए। शंख ( १४।१०) ने भी ऐसा ही नियम दिया है। इसका परिणाम यह है कि यदि कोई एक ही ब्राह्मण को बुलाने में समर्थ हो या यदि उसे एक ही ब्राह्मण प्राप्त हो सके तो वह ब्राह्मण पितृ श्राद्ध के लिए समझा जाता है। और देवों की आहुतियाँ अग्नि में डाल दी जाती हैं। बौ० घ० सू० (२८|३०), मनु ( ३११२६), वसिष्ठ ० ( ११/ ४६. पितृ देवमनुष्याणां पूजनं भोजनं तथा । नोत्तरीयं बिना कार्यं कृतं स्यानिष्कलं यतः ॥ भविष्य० (21 १८५।२३) । Jain Education International १२३३ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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