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________________ भिन्न शाखा वालों, योगी-यतियों तथा ब्राह्मणों की श्राद्ध-योग्यता १२३१ हेमाद्रि (श्राद्धखण्ड, पृ. ३८०-३८५) ने एक मनोरंजक विवेचन उपस्थित किया है--क्या किसी एक वेद-शाखा का श्राद्धकर्ता केवल उसी शाखा के ब्राह्मणों को आमन्त्रित करे या वह तीन वेदों की किसी भी शाखा के ब्राह्मणों को आमंत्रित कर सकता है ? कुछ लोग 'यथा कन्या तथा हवि' न्याय के आधार पर केवल अपनी ही शाखा के व्युत्पन्न एवं उपर्युक्त गुणों से संपन्न ब्राह्मणों को आमन्त्रित करते हैं। हेमाद्रि इस भ्रामक मत का उत्तर देते हैं और आप० ध० सू० (२।६।१५-९) का हवाला देते हैं कि उन सभी ब्राह्मणों को आमंत्रित करना चाहिए, जो अपने आचार में शुचि हैं और मन्त्रवान् (वेदज्ञ) हैं, और कहते हैं कि किसी भी स्मृति, इतिहास, पुराण, गृह्यसूत्र, कल्पसूत्र में कर्ता की शाखा वाले ब्राह्मणों को ही आमंत्रित करने का नियन्त्रण नहीं है। उन्होंने आगे कहा है कि 'त्रिणाचिकेतस्त्रिमधुः' जैसे वचनों में जो नियम व्यवस्थित है वह ऐसे ब्राह्मणों को आमंत्रित करने की बात करता है जो विभिन्न शाखाओं एवं वेदों के ज्ञाता हों। अपनी शाखा वाले वर को ही कन्या के पति चुनने की भावना को वे नहीं मानते और कहते हैं कि यदि कुछ लोग अन्य शाखाओं वाले नवयुवक वरों को अपनी कन्या देने को प्रस्तुत नहीं हैं तो यह कुलों के विषय की अज्ञानता का द्योतक है और दम्भ एवं अहंकार का परिचायक है। उन्होंने निष्कर्ष निकाला है कि आर्यावर्त के देशों में यह सर्वत्र पाया जाता है कि विभिन्न शाखाओं वाले लोग एक ही जनपद में विवाह-सम्बन्ध स्थापित करते हैं और ऐसा करना वर्जित नहीं है, एवं कुछ लोग एक शाखा के रहते हुए भी एक-दूसरे को न जानते हुए ऐसा नहीं करते हैं। और देखिए बालम्भट्टी (आचार, प० ४९७) जिसने हेमाद्रि के मत का विरोधी मत उद्घाटित किया है और कहा है कि महाराष्ट्र ब्राह्मणों को अन्य ब्राह्मण-जातियों के ब्राह्मणों को, विशेषतः कोंकणस्थ ब्राह्मणों को, आमंत्रित नहीं करना चाहिए; और उसने यह भी कहा है कि अपनी जाति के व्यक्ति को, चाहे वह अच्छे गुणों का न भी हो और कदाचारी भी हो (किन्तु महापातकी न हो तो) अन्य जाति के गुण-सम्पन्न व्यक्ति से वरीयता मिलनी चाहिए। वसिष्ठधर्मसूत्र (१११७) में आया है कि श्राद्ध करनेवाले को यतियों, गृहस्थों, साधुचरित लोगों एवं जो अति बूढ़े न हों, उनको आमंत्रित करना चाहिए। कूर्म० (उत्तरार्ध, २१।१७-१८) का कहना है कि जिसकी (भोजन) आहुतियाँ ऐसा यति खाता है, जो प्रकृति (आदि शक्ति) एवं गुणों (सत्त्व, रज, तम) में अन्तहित सत्य को जानता है, वह सहस्रों (अन्य ब्राह्मणों) को भोजन देने का फल पाता है। अतः देवों एवं पितरों की आहुतियां परमात्मा के ज्ञान में संलग्न अत्युत्तम योगी को ही खिलानी चाहिए और जब ऐसा कोई व्यक्ति न प्राप्त हो तो अन्यों को खिलानी चाहिए। ऐसी ही बातें वराह० (१४.५०), स्कन्द० (६२१८७), वाय० (७११६५-७५ एवं ७६।२८) आदि में पायी जाती हैं। बृहस्पति (हेमाद्रि, पृ० ३८५; स्मतिम०,१०७६५) का कथन है कि यदि कोई व्यक्ति श्राद्ध में एक से अधिक ब्राह्मण को न खिला सके, तो उसे उस ब्राह्मण को खिलाना चाहिए जिसने सामवेद का अध्ययन किया हो, क्योंकि सामवेद में तीनों, ऋक, यजुस एवं साम एक साथ पाये जाते हैं, एवं पिता ऋक (ऋग्वेदी ब्राह्मण को भोजन कराने) से सन्तुष्ट होता है, पितामह यज से, प्रपितामह साम से सन्तुष्ट होता है। अतः छन्दोग (सामवेदी) उत्तम है। शातातप (हेमाद्रि, पृ० ३८५ आदि) ने कहा है कि यदि देवों एवं पितरों के कृत्य में अथर्ववेद का कोई अध्येता खिलाया जाय तो अक्षय एवं अनन्त फल की प्राप्ति होती है। कुछ स्मतियों ने श्राद्ध में आमन्त्रित होनेवाले ब्राह्मणों की योग्यताओं की व्यवस्था में बड़ी कड़ाई प्रदर्शित की है। औशनस (अध्याय ४) में आया है-'वह ब्राह्मण ब्रह्मबन्धु है और उसे श्राद्ध के समय नहीं बुलाना चाहिए जिसके कुल में वेदाध्ययन एवं वेदी (श्रौत यज्ञों का सम्पादन) तीन पुरुषों (पीढ़ियों) से बन्द हो चुके हों।' उसी स्मृति (अपरार्क, पृ० ४४९) में पुनः आया है कि छ: व्यक्ति ब्रह्मबन्धु (निन्दित, केवल जन्म एवं जाति से ब्राह्मण) कहे जाते हैं, यथा-वह जो शूद्र का एवं राजा का नौकर हो, जिसकी पत्नी शूद्र हो, जो ग्राम का पुरोहित हो, जो पशुहत्या करके जीविका चलाता हो या उन्हें पकड़ने की वृत्ति करता हो। महाभाष्य के काल में ऐसा कहा गया है कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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