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________________ श्राद्ध करने के अधिकारो १२१३ उसके लिए श्राद्ध करना चाहिए, और कुछ ने ऐसा कहा है कि जो भी कोई श्राद्ध करने की योग्यता रखता है अथवा श्राद्ध her अधिकारी है वह मृतक की सम्पत्ति ग्रहण कर सकता है। दो-एक बातें, जो पहले नहीं दी गयी हैं, यहाँ दी जा रही हैं । शान्तिपर्व ( ६५।११-२१) में वर्णन आया है कि इन्द्र ने सम्राट् मान्धाता से कहा कि किस प्रकार यवन, किरात आदि अनार्यों (जिन्हें महाभारत में दस्यु कहा गया है) को आचरण करना चाहिए और यह भी कहा गया है कि सभी दस्यु पितृयज्ञ ( जिसमें उन्हें अपनी जाति वालों को भोज एवं धन देना चाहिए) कर सकते हैं और ब्राह्मणों को धन भी दे सकते हैं । " वायुपुराण (८३।११२ ) ने भी म्लेच्छों को पितरों के लिए श्राद्ध करते हुए वर्णित किया है। गोमिलस्मृति ( ३।७० एवं २।१०४ ) ने एक सामान्य नियम यह दिया है कि पुत्रहीन पत्नी को ( मरने पर) पति द्वारा पिण्ड नहीं दिया जाना चाहिए, पिता द्वारा पुत्र को तथा बड़े भाई द्वारा छोटे भाई को भी पिण्ड नहीं दिया जाना चाहिए । निमि ने अपने मृत पुत्र का श्राद्ध किया था, किन्तु उन्होंने आगे चलकर पश्चात्ताप किया क्योंकि वह कार्य धर्मसंकट था। यह बात भी गोभिल० के समान ही है। और देखिए अनुशासनपर्व (९१) । अपरार्क ( पृ० ५३८) ने षट्त्रिंशन्मत का एक श्लोक उद्धृत कर कहा है कि पिता को पुत्र का एवं बड़े भाई को छोटे भाई का श्राद्ध नहीं करना चाहिए। किन्तु बृहत्पराशर ( पृ० १५३) ने कहा है कि कभी-कभी यह सामान्य नियम भी नहीं माना जा सकता। बौधायन एवं वृद्धशातातप (स्मृतिच०, श्राद्ध, पृ० ३३७ ) ने किसी को स्नेहवश किसी के लिए भी श्राद्ध करने की, विशेषतः गया में, अनुमति दी है। ऐसा कहा गया है कि केवल वही पुत्र कहलाने योग्य है, जो पिता की जीवितावस्था में उसके वचनों का पालन करता है, प्रति वर्ष ( पिता की मृत्यु के उपरान्त) पर्याप्त भोजन (ब्राह्मणों को) देता है और जो गया में (पूर्वजों) को पिण्ड देता है।" एक सामान्य नियम यह था कि उपनयनविहीन बच्चा शूद्र के समान है और वह वैदिक मन्त्रों का उच्चारण नहीं कर सकता ( आप० घ० सू० २ ६ | १५ |१९; गौतम २।४-५; वसिष्ठ २१६; विष्णु० २८/४० एवं मन् २।१७२) । किन्तु इसका एक अपवाद स्वीकृत था, उपनयनविहीन पुत्र अन्त्येष्टि-कर्म से सम्बन्धित वैदिक मन्त्रों का उच्चारण कर सकता है । मेधातिथि ( मनु २।१७२ ) ने व्याख्या की है कि अल्पवयस्क पुत्र भी, यद्यपि अभी वह उपनयनविहीन होने के कारण वेदाध्ययनरहित है, अपने पिता को जल-तर्पण कर सकता है, नवश्राद्ध कर सकता है और 'शुन्धन्तां पितरः' जैसे मन्त्रों का उच्चारण कर सकता है, किन्तु श्रौताग्नियों या गृह्याग्नियों के अभाव में वह पार्वण जैसे श्राद्ध नहीं कर सकता। स्मृत्यर्थसार ( पृ० ५६ ) ने लिखा है कि अनुपनीत (जिनका अभी उपनयन संस्कार नहीं हुआ है) बच्चों, स्त्रियों एवं शूद्रों को पुरोहित द्वारा श्राद्धकर्म कराना चाहिए या वे स्वयं भी बिना मन्त्रों के श्राद्ध कर सकते हैं किन्तु वे केवल मृत के नाम एवं गोत्र या दो मन्त्रों, यथा- 'देवेभ्यो नमः ' एवं 'पितृभ्यः स्वधा नमः' का उच्चारण कर सकते हैं । उपर्युक्त विवेचन स्पष्ट करता है कि पुरुषों, स्त्रियों एवं उपनीत तथा अनुपनीत बच्चों को श्राद्ध करना पड़ता था । २४. यवनाः किराता गान्धाराश्चीनाः शबर बर्बराः । शकास्तुषाराः कश्च पल्लवाश्चान्ध्र मद्रकाः ॥.... कथं मरिचरिष्यन्ति सर्वे विषयवासिनः । मद्विधैश्च कथं स्थाप्याः सर्वे वं दस्युजीविनः ॥.... . मातापित्रोहि शुश्रूषा कर्तव्या सर्ववस्युभि: ।... पितृयज्ञास्तथा कूपाः प्रपाश्च शयनानि च । दानानि च यथाकालं द्विजेभ्यो विसृजेत्सदा ॥... पाकयज्ञा महाहरिच दातव्याः सर्ववस्युभिः । शान्तिपर्व ( ६५ ०१३ - २१) । इस पर शूद्रकमलाकर ( पृ० ५५ ) ने टिप्पणी की है-'इति म्लेच्छादीनां श्राद्धविधानं तदपि सजातीयभोजनद्रव्यदानादिपरम् ।' २५. जीवतो वाक्यकरणात् प्रत्यब्दं भूरिभोजनात्। गयायां पिण्डवानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ॥ त्रिस्थलीसेतु (५० ३१९ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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