SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 218
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १२११ अन्वष्टक्य कृत्य प्रत्येक तीन या चार अष्टकाओं के उपरान्त सम्पादित होता था, किन्तु यदि माघ में केवल एक ही अष्टका की जाय तब वह कृष्ण पक्ष की अष्टमी के उपरान्त किया जाता था । ०गृह्यसूत्र (२/५/९) में माध्यावर्ष नामक कृत्य के विषय में दो मत प्रकाशित किये गये हैं । नारायण के मत से यह कृत्य माद्रपद कृष्ण पक्ष की तीन तिथियों में, अर्थात् सप्तमी, अष्टमी एवं नवमी को किया जाता है। दूसरा मत यह है कि यह कृत्य अष्टकाओं के समान ही है जो भाद्रपद की त्रयोदशी को सम्पादित होता है, जब कि सामान्यतः चन्द्र मघा नक्षत्र में होता है। इस कृत्य के नाम में सन्देह है, क्योंकि पाण्डुलिपियों में बहुत-से रूप प्रस्तुत किये गये हैं । वास्तविक नाम, लगता है, माध्यवर्ष या मघावर्ष है ( वर्षा ऋतु में जब कि चन्द्र मघा नक्षत्र में रहता है ) । विष्णु० (७६।१) ने श्राद्ध करने के लिए निम्नलिखित काल बतलाया है - ( वर्ष में ) १२ अमावस्याएँ, ३ अष्टकाएँ, ३ अन्वष्टकाएँ, मघा नक्षत्र वाले चन्द्र के भाद्रपद कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी एवं शरद तथा वसन्त की ऋतुएँ। विष्णु ० ( ७८/५२-५३ ) ने भाद्रपद की त्रयोदशी के श्राद्ध की बड़ी प्रशंसा की है । मनु ( ३।२७३ ) का भी कथन है कि वर्षा ऋतु के मघा नक्षत्र वाले चन्द्र की त्रयोदशी को मधु के साथ पितरों को जो कुछ अर्पित किया जाता है उससे उन्हें असीम तृप्ति प्राप्त होती है। ऐसा ही वसिष्ठ (११/४०), याज्ञ० ( १।२६ ) एवं वराहपुराण में भी पाया जाता है। हिरण्य० गृ० (२।१३।३-४ ) में माध्यावर्ष शब्द आया है और कहा गया है कि इसमें मांस अनिवार्य है, किन्तु मांसाभाव में शाक अर्पित हो सकते हैं। पार० गृ० (३1३) में मध्यावर्ष आया है, जिसे चौथी अष्टका कहा गया है और जिसमें केवल शाक का अर्पण होता है। अपरार्क ने भी इसे मध्यावर्ष कहा है ( पृ० ४२२) । भविष्यपुराण (ब्रह्मपर्व, १८३।४) में भी इस कृत्य की ओर संकेत है किन्तु यह कहा गया है कि मांस का अर्पण होना चाहिए। ऐसा प्रतीत होता है कि यह प्राचीन कृत्य, जो भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को होता था, पश्चात्कालीन महालय श्राद्ध का पूर्ववर्ती है। अष्टका श्राद्ध तथा अन्य यदि आश्वलायन का मत कि हेमन्त एवं शिशिर में चार अष्टकाएँ होती हैं, मान लिया जाय और यदि नारायण के मतानुसार भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की अष्टमी में सम्पादित होनेवाले माध्यावर्ष श्राद्ध को मान लिया जाय तो इस प्रकार पाँच अष्टकाएँ हो जाती हैं । चतुर्विंशतिमतसंग्रह में भट्टोजी ने भी यही कहा है । कि बहुत-से स्थानाभाव से हम अन्य गृह्यसूत्रों के वर्णन यहाँ उपस्थित नहीं कर सकेंगे। यह ज्ञातव्य सूत्रों ने इस कृत्य में प्रयुक्त मन्त्रों को समान रूप से व्यवहृत किया है। यह कहना आवश्यक है कि अष्टका श्राद्ध क्रमशः लुप्त हो गया और अब इसका सम्पादन नहीं होता । उपर्युक्त विवेचन यह स्थापित करता है कि अमावास्या वाला मासि श्राद्ध प्रकृति श्राद्ध है जिसकी अष्टका एवं अन्य श्राद्ध कुछ संशोधनों के साथ विकृति ( प्रतिकृति ) मात्र हैं, यद्यपि कहीं-कहीं कुछ उलटी बातें भी पायी जाती हैं। गोमिलगृ० (४|४|३) में अन्वाहार्य नामक एक अन्य श्राद्ध का उल्लेख हुआ है जो कि पिण्डपितृयज्ञ के उपरान्त उसी दिन सम्पादित होता है। शांखा० गृ० (४|१|१३) ने पिण्डपितृयज्ञ से पृथक् मासिक श्राद्ध की चर्चा की है। मनु (३।१२२-१२३ ) का कथन है- 'पितृयज्ञ ( अर्थात् पिण्डपितृयज्ञ ) के सम्पादन के उपरान्त वह ब्राह्मण जो अग्निहोत्री अर्थात् आहिताग्नि है, प्रति मास उसे अमावास्या के दिन पिण्डान्वाहार्थक श्राद्ध करना चाहिए। बुध लोग इस . या कन्या के विवाह के अवसरों पर किये जाते हैं । वृद्धि श्राद्ध को नान्दीमुख भी कहा जाता है। पूर्व का अर्थ है कूप, तालाब, मन्दिर, वाटिका का निर्माण कार्य जो दातव्यस्वरूप होता है। देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड २, अध्याय २५ एवं याज्ञ० (१।२५० ) तथा शां० गु० (४४४११) । ८० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy