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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास स्मृत्यर्थसार ( पृ० ७०) के मत से कुछ वस्तुएँ अत्यन्त अशुद्धि के साथ और कुछ कम या मामूली अशुद्धि के साथ बनती हैं। उदाहरणार्थ - - उत्सर्गंनाल, मूत्र, वीर्य, रक्त, मांस, चर्बी, मज्जा, मद्य एवं मदोन्मत्त करने वाले पदार्थ बड़ी अशुद्धि के साथ बनते हैं; कुत्ते, ग्रामसूकर, बिल्लियाँ, उनके मूत्र, कान का मैल, नख, बलगम (श्लेष्मा), आँख का कीचड़ एवं पसीना कम अशुद्ध होते हैं। ११८६ बौघा घ० सू० ( १/५/६६) में आया है कि भूमि की शुद्धि संमार्जन ( स्वच्छ झाड़ देने), प्रोक्षण (दूध, गोमूत्र या जल छिड़कने या धोने ), उपलेपन ( गोबर से लीपने), अवस्तरण ( कुछ मिट्टी को ऊपर डाल देने) एवं उल्लेखन (मिट्टी को कुछ खुरचकर निकाल देने) से हो जाती है। जब ये विधियाँ भूमि की स्थिति के अनुसार प्रयुक्त होती हैं तो उस प्रकार की अशुद्धि दूर हो जाती है।" एक अन्य स्थान पर बौवा० ध० सू० (१।६।१७-२१ ) में आया है-- जब कठोर भूमि अशुद्ध हो जाय तो वह उपलेपन (गोबर से लीपने) से शुद्ध हो जाती है, नरम (छिद्रवती) भूमि कर्षण ( जोतने ) से शुद्ध होती है, (अशुद्ध तरल पदार्थ से ) भींगी भूमि प्रच्छादन (किसी अन्य स्थान से शुद्ध मिट्टी लाकर ढँक देने से ) और अशुद्ध पदार्थों को हटा देने से शुद्ध हो जाती है। भूमि चार साधनों से शुद्ध होती है, यथा-गायों के पैरो द्वारा रौंदने से, खोदने से, (लकड़ी या घास-पात) जलाने से एवं (जल, गोमूत्र या दूध आदि के) छिड़काव से, पाँचवीं विधि है गोबर लीपकर शुद्ध करना और छठा साघन है काल, अर्थात् समय पाकर भूमि अपने आप शुद्ध हो जाती है । "" वसिष्ठ० ( ३।५७) ने बौधायन के समान पाँच शुद्धि-साधन दिये हैं, किन्तु छठा (काल) छोड़ दिया है । मनु ( ५।१२४) ने भी पाँच साधन दिये हैं-झाडू से बुहारना, गोबर से लीपना, जल छिड़काव, खोदना ( एवं निकाल बाहर करना) और उस पर (एक दिन एवं रात ) गायों को रखना । विष्णु० (२३।५७) ने छठा अन्य भी जोड़ दिया है, यथा - दाह (कुछ जला देना) । याज्ञ० (११८८) ने दाह एवं काल जोड़कर सात साधन दिये हैं। वामनपुराण (१४।६८) के अनुसार भूमि की अशुद्धि का दूरीकरण खनन, दाह, मार्जन, गोक्रम ( गायों को ऊपर चलाना ), लेपन, उल्लेखन ( खोदना) एवं जलमार्जन से होता है ।" देवल (मिता० एवं अपरार्क, याज्ञ० ११८८ ) ने विस्तृत विवरण उपस्थित किया है। उनके तसे अशुद्ध भूमि के तीन प्रकार हैं; अमेध्य (अशुद्ध), दुष्ट एवं मलिन । जहाँ स्त्री बच्चा जने, कोई मरे या जलाया जाय या जहाँ चाण्डाल रहें या जहाँ दुर्गन्ध युक्त वस्तुओं, विष्ठा आदि की ढेरी आदि हो, जो भूमि इस प्रकार गन्दी वस्तुओं से भरी हो उसे अमेध्य घोषित किया गया है। जहाँ कुत्तों, सूअरों, गधों एवं ऊंटों का संस्पर्श हो वह भूमि दुष्ट कही जाती है तथा जहाँ अगार (कोयला ), तुष ( मूसी), केश, अस्थि एवं भस्म (राख) हो वह भूमि मलिन कही जाती है । " इसके उपरान्त देवल ने इन भूमि प्रकारों की शुद्धि की चर्चा की है। शुद्धि पाँच प्रकार की होती है, यथा खनन, ५५. भूमेस्तु संमार्जनप्रोक्षणोपलेपनावस्तरणोल्लेखनैर्यथास्यानं दोषविशेषात्प्रायत्यम् । बौ० ध० सू० (१।५। ६६) । यही बात वसिष्ठ (३५६) में भी आयी है। ५६. घनाया भूमेरुपघात उपलेपनम्। सुविरायाः कर्षणम् । क्लिवाया मेध्यमाहृत्य प्रच्छादनम् । चतुभिः शुध्यते भूमिः गोभिराक्रमणात्खननाद् वहनादभिवर्षणात् । पञ्चमाच्चोपलेपनात्षष्ठात्कालात् । बो० घ० सू० (१।६।१७-२१) । देखिए शु० कौ० (५० १०० ) । ५७. भूमिविशुध्यते खातवाहमार्जनगोक्रमैः । लेपावुल्लेखनात्सेकाद्वेश्मसंमार्जनाचंनात् ॥ वामनपुराण (१४१६८) । ५८. यत्र प्रसूयते नारी म्रियते बह्यतेपि वा । चण्डालाध्युषितं यत्र यत्र विष्ठाविसंहतिः ॥ एवं कश्मलभूयिष्ठा भूरमेध्या प्रकीर्तिता । श्वसूकरखरोष्ट्राविसंस्पृष्टा दुष्टतां व्रजेत् । अंगारतुषकेशास्थिभस्माद्यैमेलिना भवेत् ॥ मिता० ( पाश ० १११८८ ) : शु० कौ० ( पृ० १०१ ) एवं शु० प्र० (५० ९९ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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