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________________ सवः शौच; पाच धामों में बाचिका संकोच ११७३ 'दिन या रात का एक अंश' और इसके समर्थन में कई ग्रन्थों से प्रमाण दिये हैं।" शुद्धिप्रकाश (पृ० ९२) ने व्याख्या की है कि 'सद्यःशौच कुछ संदों में 'अशौच के अभाव' का द्योतक है, अन्य सन्दर्भो में यह 'स्नान' का अर्थ रखता है और उन लोगों के सम्बन्ध में, जो युद्ध आदि में वीर गति को प्राप्त हो गये हैं (जिन्हें पिण्डदान करना होता है), इसका अर्थ है 'एक दिन या रात का एक अंश।' स्मृतिमुक्ताफल (आशौच, पृ० ४८१) का कथन है कि 'सद्यःशौच' का अर्थ है वह अशौच जो स्नान के उपरान्त समाप्त हो जाता है।" आदिपुराण में आया है कि जिनके लिए सद्यःशौच होता है उन्हें पिण्ड भी दिया जाता है। शुद्धिकौमुदी (पृ०७३) ने सद्यःशौच के दो अर्थ दिये हैं; (१) अशौच का पूर्ण अमाव, यथा—यज्ञिय (यज्ञ वाले) पुरोहितों आदि के विषय में (याज्ञ० ३।२८) तथा (२) वह अशौच जो स्नान से दूर हो जाता है (मनु ५७६)। आशौच के नियम पाँच प्रकार के विषयों में अधिक अवधि तक नहीं लागू होते, यथा-(१) कुछ व्यक्ति सर्वथा मुक्त होते हैं, (२) कुछ लोगों के, जो साधारणतः अस्पृश्य माने जा सकते हैं, कर्म बिना अशुद्धि के चलने दिये जाते हैं, (३) ऐसे लोगों से, जो आशौच में रहते हैं, कुछ वस्तुएँ बिना किसी अशुद्धि-मय के ली जा सकती हैं, (४) कुछ अपराधियों की मृत्यु पर आशौच नहीं मनाया जाता तथा (५) कुछ लोगों के विषयों में ऐसे स्मृति-वचन हैं कि उनके लिए आशौच मनाना आवश्यक नहीं है। इन पांचों के विषय में हम क्रम से वर्णन करेंगे। मुख्य-मुख्य ग्रन्थों में ये पांचों विषय मिश्रित रूप में उल्लिखित हैं। विष्णुपुराण (३।१३।७) में ऐसी व्यवस्था है कि शिशु की मृत्यु पर, या देशान्तर में किसी की मृत्यु पर, या पतित या यति (संन्यासी) की मृत्यु पर, या जल, अग्नि या फांसी लटकाकर मर जानेवाले आत्मघातक की मृत्यु पर सद्यःशौच होता है। और देखिए गौतम (१४।११ एवं ४२) तथा वामनपुराण (१४१९९)। याज्ञ० (३।२८-२९) के मत से यज्ञ के लिए वरण किये गये पुरोहितों को, जब उन्हें मधुपर्क दिया जा चुका हो, जनन या मरण की स्थिति में, सद्यःशीच (स्नान द्वारा शुद्धि) करना पड़ता है। यही बात उन लोगों के लिए भी है जो सोमयाग जैसे वैदिक यज्ञों के लिए दीक्षित हो चुके हैं, जो किसी दानगृह में भोजन-दान करते रहते हैं, जो चान्द्रायण जैसे व्रत या स्नातकधर्म-पालन में लगे रहते हैं, जो ब्रह्मचारी (आश्रम के कर्तव्यों में संलग्न) हैं, जो प्रति दिन गौ, सोने आदि के दान में लगे रहते हैं (दान के समय), जो ब्रह्मज्ञानी (संन्यासी) हैं, दान देते समय, विवाह, वैदिक यज्ञों, २०. अत्र सब पवमहोरात्रार्षपरम्।.... सन्ध्ये सब इत्याहुस्त्रिसन्ध्यकाहिकः स्मृतः । द्वेऽहनी एकरात्रिश्च पक्षिणीत्यभिधीयते ॥ इति भट्टनारायणवचनात् । सन्ध्ये सब इत्याहुस्त्रिसन्ध्यकाह उच्यते। दिनद्वयकरात्रिस्तु पक्षिणीत्यभिधीयते ॥ इति नव्यवर्षमानधृतवचनाच्च । सघ एकाहेनाशौचमिति पारिजाते, सब एकाहेनेति स्मृतिसारे, एकमहः सब इति शुद्धिपन्या दर्शनाच्चेति। तच्चार्ष दिनमात्रं रात्रिमात्रं च । एतदेव क्वचित् सज्योतिःपदेन व्यपविश्वते । शुद्धितत्त्व (पृ० ३४०-३४१)। विप्रकाश (पृ. ९३) का कथन है कि वे सन्ध्ये सर्च' आदि नारायणभट्ट के गोभिलभाष्य में पाया जाता है। __ २१. सधः शौचं नाम स्नानान्तमघम् । सचः शौचं तु तावत्स्यावाशौचं संस्थितस्य तु । यावत्स्नानं न कुर्वन्ति सचलं बान्धवा बहिः॥ इत्यंगिरस्मरणात् । स्मृतिम० (पृ० ४८१)। २२. दिवसे दिवसे पिण्डो देय एवं क्रमेण तु । सबःशौचेपि दातव्याः सर्वेपि युगपत्तथा ॥ आदिपुराण (हारलता, १० १६५)। विशच्छलोकी (२८) की व्याख्या में रघुनाथ ने इसके अन्तिम पाद को ब्रह्मपुराण से उद्धृत किया है। ऐसा लगता है कि ब्रह्मपुराण, जो बहुत-से प्रन्यों में १८पुराणों में सर्वप्रथम वर्णित है, मादिपुराण भी कहा जाता था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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