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________________ ११६६ __ धर्मशास्त्र का इतिहास उसी दिन से दस दिनों का आशौच रखना पड़ता है, किन्तु यदि वह अस्थिसंचयन से पूर्व ही समाचार पा लेता है तो उसे शेष पांच दिनों का आशौच करना पड़ता है (स्मृतिमुक्ता० पृ० ५३४)। दस दिनों के उपरान्त सपिण्ड-मृत्यु का समाचार पाने पर आशौचावधियों के विषय में मतैक्य नहीं है। मनु (५१७७) के मत से यदि जनन एवं मरण के समाचार दस दिनों के उपरान्त मिलें तो वस्त्रसहित जल में स्नान कर लेने से शुद्धि प्राप्त हो जाती है। याज्ञ० (३।२१) के मत से ऐसी स्थिति में स्नान एवं जल-तर्पण से ही शुद्धि प्राप्त हो जाती है। मनु के इस कथन से कि केवल पिता ही पुत्रोत्पत्ति का सन्देश दस दिनों के उपरान्त सुनने से स्नान करता है, मिता० (यान० ३३२१) ने अनुमान निकाला है कि जनन पर सपिण्डों के लिए अतिक्रान्ताशौच नहीं लागू होता। धर्मसिन्धु ने मिता० का अनुसरण किया है। मनु (५।७६), शंख (१५।१२), कूर्मपुराण (उत्तरार्ष, २३।२१) का कथन है कि दस दिनों के उपरान्त मरणसमाचार सुनने से भी तीन दिनों का आशीच लगता ही है, किन्तु यदि समाचार मृत्यु के एक वर्ष से अधिक अवधि के उपरान्त मिले तो स्नान के उपरान्त ही शुद्धि मिल जाती है। स्मृतियों की विरोधी उक्तियों के समाधान में वृद्ध-वसिष्ठ ने व्यवस्था दी है कि यदि तीन मासों के भीतर संदेश मिल जाय तो आशौच केवल तीन दिनों का होता है (किन्तु मृत्यु के दस दिनों के उपरान्त ही यह अवधि गिनी जाती है), किन्तु तीन मासों से अधिक, छः मासों के भीतर सन्देश मिलने से एक पक्षिणी का आशौच लगता है; छः मासों के उपरान्त नौ मासों के भीतर संदेश सुनने से एक दिन का तथा नौ मासों से ऊपर एक वर्ष के भीतर सन्देश से स्नान-मात्र करने पर शुद्धि प्राप्त हो जाती है। मिताक्षरा (याज्ञ० ३२१) ने कहा है कि यह नियम माता-पिता को छोड़कर सबके साथ लाग होता है और पैठीनसि तथा अन्य स्मृति का उद्घरण दिया है कि जब भी कमी विदेश में रहता हुआ पुत्र अपनी माता या पिता की मृत्यु का संदेश सुनता है; एक वर्ष के भीतर या उसके पश्चात्,तो उसे उसी दिन से दस दिनों का आशौच मनाना चाहिए। लघु-आश्वलायन (२०१८८) ने भी यही बात कही है। मिता० (याज्ञ० ३।२१) ने आगे कहा है कि अतिक्रान्ताशीच का नियम केवल तभी लागू होता है जब कि मृत व्यक्ति उपनीत रहता है। धर्मसिन्धु (पृ. ४३३) का कथन है कि उपनयन संस्कार-हीन व्यक्ति की मृत्यु पर जो एक या तीन दिनों का आशौच लगता है तथा मामा एवं अन्य दूसरे गोत्र वाले की मृत्यु पर जो पक्षिणी या तीन दिनों का आशौच लगता है, उसके विषय में अतिक्रान्ताशौच के नियम नहीं प्रयुक्त होते। इसी प्रकार समानोदकों के लिए निर्धारित तीन दिनों की अशुद्धि पर अतिक्रान्ताशौच नहीं लगता, किन्तु इस विषय में अवधि के उपरान्त भी स्नान करना आवश्यक है। वास्तव में, अतिक्रान्ताशौच के नियम १० दिनों के आशौच के विषय में ही प्रयक्त होते हैं। जिस प्रकार पुत्र के लिए अतिक्रान्ताशौच का नियम लाग है, उसी प्रकार पति, पत्नी एवं सपत्नियों के बीच में एक वर्ष के उपरान्त भी , चाहे मृत्यु परदेश में ही क्यों न हुई हो, दस दिनों का आशीच अनिवार्य है। माता-पिता औरस पुत्र की मृत्यु का सन्देश एक वर्ष के उपरान्त भी सूनने पर तीन दिनों का आशौच करते हैं। एक ही देश में रहनेवाले सपिण्ड की मृत्यु १० दिनों के उपरान्त, तीन मासों के भीतर सूनी जाय तो आशौचावधि तीन दिनों की होती है, छः मासों के उपरान्त पक्षिणी, नौ मासों तक एक दिन और एक वर्ष तक स्नान करने का आशौच लगता है। इस विषय में भी अनेक मत हैं, यथा माधव एवं अन्य लोगों के। इस विषय में देखिए शुद्धिप्रकाश (पू०४९-५१)। मिताक्षरा ने याज्ञ० (३।२१) के अन्तिम चरण की व्याख्या में एक ही देश में रहने वाले सपिण्ड की मृत्यु के दस दिनों के उपरान्त सन्देश सुनने एवं बड़ी नदी आदि से विभाजित अन्य देश में रहने वाले सपिण्ड की मृत्यु के सन्देश सुनने में अन्तर व्यक्त किया है । अन्तिम सपिण्ड की मृत्यु का सन्देश जब दस दिनों के उपरान्त किन्तु तीन मासों के भीतर मिल जाता है तो केवल स्नान से शुद्धि प्राप्त हो जाती है। मिता० ने वहीं एक स्मृति-वचन उद्धृत किया है कि किसी परदेशी सपिण्ड की मृत्यु पर तथा नपुंसक या वैखानस (वनवासी यति) या संन्यासी की मृत्यु पर स्नान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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