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________________ भरणाशौच ११६३ ५/५९; आशौचदशक, शूद्रों में तीन वर्ष के उपरान्त एवं विवाह १६ वर्षों या विवाह (शूद्रों के विषय में) एवं समानोदक तीन दिनों का आशौच मनाते हैं। या १६ वर्षों के पूर्व मरने पर सपिण्डों को तीन दिनों का आशौच करना होता है। के उपरान्त मृत्यु होने पर उस जाति के लिए व्यवस्थित आशौचावधि मनायी जाती है। लड़की के तीन वर्षों के उपरान्त एवं वाग्दान के पूर्व मरने पर माता-पिता को तीन दिनों का एवं तीन पीढ़ियों के सपिण्डों को एक दिन का आशौच मनाना चाहिए। यदि वाग्दान के उपरान्त किन्तु विवाह के पूर्व कन्या मर जाय तो पिता के सपिण्डों एवं होनेवाले पति को तीन दिनों का आशौच करना चाहिए। स्त्रियों एवं शूद्रों के विषय में यदि मृत्यु विवाहोपरान्त हो जाय या १६ वर्षों के उपरान्त ( यदि शूद्र अविवाहित हो) तो सभी सपिण्डों की आशौचावधि दस दिनों की होती है । यदि विवाहित स्त्री अपने पिता के यहाँ मर जाय तो माता-पिता, विमाता, सहोदर भाइयों, विमाता के पुत्रों को तीन दिनों का तथा चाचा आदि को, जो एक ही घर में रहते हैं, एक दिन का आशौच मनाना पड़ता है । कुछ लोगों का कहना है कि यदि विवाहित कन्या अपने पिता के ग्राम के अतिरिक्त कहीं और मरती है तो माता-पिता को पक्षिणी (दो रात एवं मध्य में एक दिन या दो दिन एवं मध्य में एक रात का आशौच मनाना पड़ता है। अन्य मत भी हैं, जिन्हें हम छोड़ रहे हैं। उदाहरणार्थ, विष्णुधर्मसूत्र (२२/३२-३४) का कथन है कि विवाहित स्त्री के लिए माता-पिता को आशौच नहीं लगता, किन्तु जब वह पिता के घर बच्चा जनती है या मर जाती है तो क्रम से एक दिन या तीन दिनों का आशौच लगता है। अपने माता-पिता या विमाता के मरने पर यदि दस दिन न बीते हों तो विवाहित स्त्री को तीन दिनों का या दस दिनों के शेष दिनों का आशौच मनाना होता है (याज्ञ० ३।२१, उत्तर भाग ) । यदि विवाहित स्त्री अपने माता-पिता या विमाता की मृत्यु का सन्देश दस दिनों के उपरान्त या वर्ष के मीतर सुन लेती है तो उसे पक्षिणी आशौच करना पड़ता है। यदि उपनयन संस्कृत भाई अपनी विवाहित बहिन के यहाँ या ऐसी बहिन अपने भाई के यहाँ मरती है तो तीन दिनों का आशौच होता है, किन्तु यदि वे एक-दूसरे के घर न मरकर कहीं और मरते हैं तो आशौच पक्षिणी होता है, यदि मृत्यु किसी अन्य ग्राम में होती है तो आशौच केवल एक दिन का होता है। यही नियम विमाता के भाइयों एवं बहिनों एवं अपनी बहिनों के लिए भी प्रयुक्त होता है । अपने पितामह या चाचा के मरने पर विवाहित नारी केवल स्नान कर शुद्ध हो जाती है। यदि मामा मर जाता है तो मानजा एवं भानजी एक पक्षिणी का आशौच निबाहते हैं। यदि मामा भानजे के घर में मरता हैं तो मानजे के लिए आशौच तीन दिनों का, किन्तु यदि मामा का उपनयन नहीं हुआ हो या वह किसी अन्य ग्राम में मरता है तो एक दिन का होता है। यही नियम अपनी माता के विमाता- भाई के विषय में लागू होता है। यदि मामी मर जाय तो मानजे एवं भानजी को एक पक्षिणी का आशौच करना पड़ता है। यदि उपनयन संस्कृत मानजा मर जाय तो मामा एवं मामी को तीन दिन का आशौच होता है । यही नियम मामा की विमाता - बहिन के पुत्र के लिए भी लागू है। यदि बहिन की पुत्री मर जाय तो मामा को केवल स्नान करना पड़ता है। यदि नाना मर जाय तो नाती या नतिनी को तीन दिनों का आशौच लगता है । किन्तु यदि नाना किसी अन्य ग्राम में मरे तो उन्हें एक पक्षिणी का आशौच करना पड़ता है। नानी के मरने पर नाती एवं नतिनी को एक पक्षिणी का आशौच लगता है। कुछ ग्रन्थ भतीजी एवं पोती को छूट देते हैं। उपनयन संस्कृत दौहित्र की मृत्यु पर नाना एवं नानी को तीन दिनों का आशौच किन्तु उपनयन न होने पर केवल एक पक्षिणी का आशौच लगता है । पुत्री की पुत्री के मरने पर नाना और नानी को आशौच नहीं लगता । इन विषयों में सामान्य नियम यही है कि केवल उपनयन-संस्कृत पुरुष एवं विवाहित स्त्री ही माता-पिता के अतिरिक्त किसी अन्य सम्बन्धी की मृत्यु पर आशौच मनाते हैं (अर्थात् उपनयन-संस्कारविहीन पुरुष तथा अविवाहित स्त्री माता या पिता की मृत्यु पर ही आशौच का नियम पालन करते हैं) । दामाद के घर में श्वशुर या सास के मरने से दामाद को तीन दिनों का तथा अन्यत्र मरने से एक पक्षिणी का आशौच लगता है। दामाद की मृत्यु पर श्वशुर एवं सास एक दिन का आशौच करते हैं या केवल स्नान से शुद्ध हो जाते हैं, किन्तु r Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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