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________________ अन्त्येष्टि एवं श्राद्ध करने के अधिकारी ११५१ पुत्री का पुत्र एवं नाना एक-दूसरे को पिण्ड दे सकते हैं; इसी प्रकार दामाद और श्वशुर भी कर सकते हैं, पुत्रवधू सास को Pros दे सकती है, भाई एक-दूसरे को, गुरु-शिष्य एक-दूसरे को दे सकते हैं। 'दायभाग' द्वारा उपस्थापित श्राद्धाधिकारियों के क्रम के लिए देखिए इस ग्रन्थ का खण्ड ३, अध्याय २९ । निर्णयसिन्धु ( पृ० ३८१ ) का कहना है कि कलियुग में केवल दो प्रकार के पुत्र, औरस एवं दत्तक आज्ञापित हैं (१२ प्रकार के पुत्रों के लिए देखिए याज्ञ० २।१२८-१३२ ) ; इसने श्राद्धाधिकारियों का क्रम इस प्रकार दिया है- औरस पुत्र, पौत्र, प्रपौत्र एवं दत्तक पुत्र । कई पुत्र हों तो ज्येष्ठ को ही केवल अधिकार है। यदि ज्येष्ठ पुत्र अनुपस्थित या पतित हो तो उसके पश्चात् वाले पुत्र को अधिकार है ( सबसे छोटे को नहीं) । यदि सभी पुत्र अलग हो गये हैं तो सपिण्डीकरण तक के कृत्य केवल ज्येष्ठ पुत्र करता है और वह अन्य भाइयों से श्राद्धव्यय ले सकता है, किन्तु वार्षिक श्राद्ध सभी पुत्र अलग-अलग कर सकते हैं। यदि पुत्र एकत्र ही रहते हैं तो सभी कृत्य, यहाँ तक कि वार्षिक श्राद्ध ज्येष्ठ पुत्र ही करता है। यदि ज्येष्ठ पुत्र अनुपस्थित हो तो उसके पश्चात्वाला या सबसे छोटा पुत्र सभी कृत्य - १६ श्राद्ध कर सकता है, किन्तु सपिण्डीकरण नहीं, इसके लिए उसे वर्ष भर ज्येष्ठ भाई के लिए जोहना पड़ता है। यदि ज्येष्ठ पुत्र वर्ष के भीतर पिता की मृत्यु का सन्देश पा लेता है तो उसे ही सपिण्डीकरण करना चाहिए । यदि एक वर्ष के भीतर कोई छोटा भाई या कोई अन्य व्यक्ति मासिक, ऊनमासिक, सपिण्डीकरण श्राद्ध कर लेता है तो ज्येष्ठ पुत्र या कोई अन्य पुत्र इन श्राद्धों को पुनः करता है। यदि पौत्र हो और उसका उपनयन हो चुका हो तो उसकी अपेक्षा उस पुत्र को अधिक अधिकार है जिसका अभी उपनयन नहीं हुआ है, किन्तु उसे तीन वर्ष का अवश्य होना चाहिए और उसका चूड़ाकरण अवश्य हो गया रहना चाहिए (सुमन्तु, परा० मा० १२, पृ० ४६५; निर्णयसिन्धु पृ० ३८२; मदनपा० पृ० ४०३ ) । मनु ( २।१७२) का कथन है कि लड़के को उपनयन के पूर्व वैदिक मन्त्र नहीं कहने चाहिए, किन्तु वह उन मन्त्रों को कह सकता है जो माता-पिता के श्राद्ध में कहे जाते हैं। यदि वह वैदिक मन्त्रों के पाठ के अयोग्य हो तो उसे केवल शवदाह के समय के मन्त्र कहकर मौन हो जाना चाहिए और अन्य कृत्य दूसरे व्यक्ति द्वारा मंत्रों के साथ किये जा सकते हैं। इसी प्रकार उसे दर्शश्राद्ध एवं महालय का केवल संकल्प कर लेना चाहिए, अन्य कृत्य कोई अन्य व्यक्ति कर सकता है। उपनयन होने के उपरान्त ही दत्तक पुत्र श्राद्धाधिकारी होता है। यदि प्रपौत्र तक कोई अन्वयागत (वंशज ) व्यक्ति न हो और न दत्तक पुत्र हो तो पत्नी मन्त्रों के साथ अन्त्येष्टिकर्म, वार्षिक एवं अन्य श्राद्धकर्म कर सकती है, यदि वह वैदिक मन्त्र न कह सके तो इसके विषय में वही नियम लागू होता है जो अनुपनीत पुत्र के लिए होता है। उस स्थिति में जब कि पति अपने भाई से अलग न हुआ हो, या वह अलग होकर पुनः संयुक्त हो गया हो, पत्नी को ही ( भाई को नहीं) श्राद्धकर्म करने में वरीयता मिलती है, यद्यपि सम्पत्ति भाई को ही प्राप्त हो जाती है । यद्यपि कुछ पश्चात्कालीन ग्रन्थ, यथा --- निर्णयसिन्धु एवं धर्मसिन्धु ( भार्ययापि समन्त्रकमेवर्ध्वदेहिकादिक कार्यम् ) पत्नी को वैदिक मन्त्रों के साथ अन्त्येष्टि कर्म करने की अनुमति देते हैं, तथापि कतिपय ग्रन्थ, यथा -- मार्कण्डेयपुराण एवं ब्रह्मपुराण पत्नी को मन्त्र बोलने से मना करते हैं । पत्नी के अभाव में पुत्री को श्राद्ध करने का अधिकार है किन्तु ऐसा तभी संभव है जब कि मृत अलग रहा हो और पुनः संयुक्त न हुआ हो । यदि मृत संयुक्त रहा हो तो उसका सोदर भाई पत्नी के उपरान्त उचित अधिकारी होता है। कन्याओं में विवाहित कन्या को वरीयता प्राप्त होती है, किन्तु अविवाहित कन्या भी अधिकार रखती है। कन्याओं के अभाव में दौहित्र अधिकारी होता है; इसके उपरान्त भाई और तब भतीजा । भाइयों में सोदर को सौतेले भाई से वरीयता प्राप्त है, किन्तु यदि ज्येष्ठ एवं कनिष्ठ भाई हों तो छोटे को वरीयता प्राप्त है क्योंकि ऐसा करने से पिता एवं पुत्र में अधिक समीपता लक्षित होती है। यदि छोटा भाई न हो, तो बड़ा भाई, और सगा भाई न हो तो सौतेला भाई, भी अधिकारी हो सकता है। कुछ लोगों का कथन है कि यदि मृत अपने भाई से अलग रहता हो और उसे पुत्री या दौहित्र उत्तराधिकारी के रूप में प्राप्त हो तो भी भाई को वरीयता प्राप्त होती है, क्योंकि सगोत्र को असगोत्र से वरीयता प्राप्त है । यदि भाई न हों तो भतीजा अधिकारी होता हैं, इसके 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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