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________________ पितरों के सम्बन्ध में वैदिक प्रार्थना ऋग्वेद (१०।१५)-(१) “सोम-निम्न, मध्यम या उत्तरतर श्रेणियों के स्नेही पितर लोग आगे आयें, और वे पितर लोग भी जिन्होंने शाश्वत जीवन या मृतात्मा का रूप धारण किया है, कृपालु हों और आगे आयें, क्योंकि वे दयापूर्ण एवं ऋत के ज्ञाता हैं । वे पितर लोग, जिनका हम आह्वान करें, हमारी रक्षा करें। (२) आज हमारा प्रणाम उन पितरों को है जो (इस मृत के जन्म के पूर्व ही ) चले गये या (इस मृत के जन्मोपरान्त) बाद को गये, और (हम उन्हें मो प्रणाम करते हैं) जो इस विश्व में विराजमान हैं या जो शक्तिशाली लोगों के बीच स्थान ग्रहण करते हैं। (३) मैं उन पितरों को जान गया हूँ जो मुझे (अपना वंशज) पहचानेंगे, और मैं विष्णु के पादन्यास एवं उनके बच्चे (अर्थात अग्नि) को जान गया हूँ। वे पितर, जो कुशो पर बैठते हैं और अपनी इच्छा के अनुसार हवि एवं सोम ग्रहण करते हैं, बारम्बार यहाँ आयें। (४) हे कुशासन पर बैटनेवाले पितर लोगो, (नीचे) अपनी रक्षा लेकर हमारा ओर आओ; हमने आपके लिए हवि तैयार कर रखी हैं। इन्हें ग्रहण करो। कल्याणकारी रक्षा के साथ आओ और ऐसा आनन्द दो जो दुःख से रहित हो। (५) कुश पर रखी हुई प्रिय निधियों (हव्यों) को ग्रहण करने के लिए आमन्त्रित सोम ग आयें। वे हमारी स्तुतियाँ (यहाँ) सुनें। वे हमारे पक्ष में बोलें और हमारी रक्षा करें। (६) हे पितर लोगो, आप सभी, घुटने मोड़कर एवं हव्य की दायीं ओर बैठकर यज्ञ की प्रशंसा करें : मनुष्य होने के नाते हम आपके प्रति जो गलती करें उसके लिए आप हमें पीड़ा न दें। (७) पितर लोग, अग्नि को दिव्य ज्वाला के सामने उसकी गोद में) बैठकर मुझ मर्त्य यजमान को धन दें। आप मृत व्यक्ति के पुत्रों को धन दें और उन्हें शक्ति दें। (८) यम हमारे जिन पुराने एवं समृद्ध पितरों की संगति का आनन्द उठाते हैं, वे सोमपान के लिए एक-एक करके आयें, जो यशस्वी थे और जिनकी संगति में (पितरों के राजा) यम को आनन्द मिलता है, वह (हमारे द्वारा दिये गये) हव्य स्वेच्छापूर्वक ग्रहण करे। (९) हे अग्नि, उन पितरों के साथ आओ, जो तृषा से व्याकुल थे और (देवों के लोकों में पहँचने में) पीछे रह जाते थे, जो यज्ञ के विषय में जानते थे और जो स्तुतियों के रूप में स्तोमों के प्रणेता थे, जो हमें भली भाँति जानते थे, वे (हमारी पुकार) अवश्य सुनते हैं, जो कव्य नामक हवि ग्रहा करते हैं और जो गर्म दूध के चतुर्दिक बैठते हैं। (१०) हे अग्नि, उन अवश्य आनेवाले पितरों के साथ पहले और समय से कालान्तर में आओ और जो (दिये हुए) हव्य ग्रहण करते हैं, जो हव्य का पान करते हैं, जो उसी रथ में बैठते हैं जिसमें इन्द्र एवं अन्य देव विराजमान हैं, जो सहस्रों की संख्या में देवों को प्रणाम करते हैं, और जो गर्म दूध के चतुर्दिक बैठते हैं। (११) हे अग्निष्वात्त नामक पितर लोगो, जो अच्छे पथप्रदर्शक कहे जाते हैं, (इस यज्ञ में) आओ और अपने प्रत्येक उचित आसन पर विराजमान होओ। (दिये हुए) पवित्र हव्य को, जो कुश पर रखा हुआ है, ग्रहण करो और शूर पुत्रों के साथ समृद्धि दो। (१२) हे जातवेदा अग्नि, (हम लोगों द्वारा) प्रशंसित होने पर, हव्यों को स्वादयुक्त बना लेने पर और उन्हें लाकर (पितरों को) दे देने पर वे उन्हें अभ्यासवश ग्रहण करें। हे देव, आप पूत हव्यों को खायें। (१३) हे जातवेदा, आप जानते हैं कि कितने पितर हैं, यथा-वे जो यहाँ (पास) हैं, जो यहाँ नहीं हैं, जिन्हें हम जानते हैं और जिन्हें हम नहीं जानते हैं (क्योंकि वे हमारे बहुत दूर के पूर्वज हैं)। आप इस भली प्रकार बने हुए हव्य को अपने आचरण के अनुसार कृपा कर ग्रहण करें। (१४) (हे अग्नि) उनके (पितरों के) साथ जो (जिनके शरीर) अग्नि से जला दिये गये थे, जो नहीं जलाये गये थे और जो स्वधा के साथ आनन्दित होते हैं, आप मृत की इच्छा के अनुसार शरीर की व्यवस्था करें जिससे नये जीवन (स्वर्ग) में उसे प्रेरणा मिल।" ऋग्वेद (१०।१६)-(१) "हे अग्नि ! इस (मृत व्यक्ति? ) को न जलाओ, चतुर्दिक इसे न झुलाओ, इसके चर्म (के भागों को) इतस्ततः न फेंको; हे जातवेदा (अग्नि) ! जब तुम इसे भली प्रकार जला लो तो इसे (मृत को) पितरों के यहाँ भेज दो। (२) हे जातवेदा ! जब तुम इसे पूर्णरूपेण जला लो तो इसे पितरों के अधीन कर दो। जब यह (मृत व्यक्ति) उस मार्ग का अनुसरण करता है जो इसे (नव) जीवन की ओर ले जाता है, तो यह वह हो जाय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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