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________________ १११२ धर्मशास्त्र का इतिहास ग्रन्थों के आधार पर लिखा है कि जब व्यक्ति स्वप्न में गदहा देखता है तो उसका मरण निश्चित-सा है, जब वह स्वप्न में बूढ़ी कुमारी स्त्री देखता है तो भय, रोग एवं मृत्यु का लक्षण समझना चाहिए (पृ० २५१) या जब त्रिशूल देखता है तो मृत्यु परिलक्षित होती है। भारत के अधिकांश भागों में ऐसी प्रथा है कि जब व्यक्ति मरणासन्न रहता है या जब वह अब-तब रहता है तो लोग उसे खाट से उतारकर पृथिवी पर लिटा देते हैं। यह प्रथा यूरोप में भी है (देखिए प्रो० एडगर्टन का लेख; 'दी आवर आव डेथ', एनल्स आव दी भण्डारकर ओ० आर० इंस्टीट्यूट, जिल्द ८, पृ० २१९-२४९) । कौशिकसूत्र (८०१३) में आया है। जब व्यक्ति शक्तिहीन होता जाता है अर्थात् मरने लगता है तो (पुत्र या सेवा करनेवाला कोई सम्बन्धी ) शाला में उगी हुई घास पर कुश बिछा देता है और उसे 'स्योनास्मै भव' मन्त्र के साथ (बिस्तर या खाट से) उठाकर उस पर रख देता है। बौधायनपितृमेधसूत्र (३।१।१८) के मत से जब यजमान के मरने का भय हो जाय तो यज्ञशाला में पृथिवी पर बालू बिछा देनी चाहिए और उस पर दर्भ फैला देने चाहिए, जिनकी नोक दक्षिण की ओर होती है, मरणासन्न के दायें कान में 'आयुषः प्राणं सन्तनु' से आरम्भ होनेवाले अनुवाक का पाठ (पुत्र या किसी अन्य सम्बन्धी द्वारा) होना चाहिए। और देखिए गोभिलस्मृति (३।२२), पितृदयिता आदि।' शुद्धिप्रकाश (पृ० १५१-१५२) में आया है कि जब कोई व्यक्ति मृतप्राय हो, उसकी आँखें आधी बन्द हो गयी हों और वह खाट से नीचे उतार दिया गया हो तो उसके पुत्र या किसी सम्बन्धी को चाहिए कि वह उससे निम्न प्रकार का कोई एक या सभी प्रकार के दस दान कराये-गौ, भूमि, तिल, सोना, घृत, वस्त्र, धान्य, गुड़, रजत (चाँदी) एवं नमक। ये दान गयाश्राद्ध या सैकड़ों अश्वमेधों से बढ़कर हैं। संकल्प इस प्रकार का होता है-'अभ्युदय (स्वर्ग) की प्राप्ति या पापमोचन के लिए मैं दस दान करूँगा।' दस दानों के उपरान्त उत्क्रान्ति-धेनु (मृत्यु को ध्यान में रखकर बछड़े के साथ गौ) दी जाती है, और इसके उपरान्त वैतरणी गौ का दान किया जाता है। अन्त्येष्टिपद्धति एवं शुद्धिप्रकाश ४. दुर्बलीभवन्तं शालातृणेषु दर्भानास्तीर्य स्योनास्मै भवेत्यवरोहयति। मन्त्रोक्तावनमन्त्रयते। यत्ते कृष्णेस्पवदीपयति । कौशिक० (८०।३-५) । 'स्योनास्मै' मन्त्र के लिए देखिए अथर्ववेद (१८-२-१९), ऋग्वेद (१२२।१५) एवं वाज० सं० (३६।१३), देखिए निरुक्त (९।३२) । पितृदयिता (पृ० ७४) में आया है--'यदा कण्ठस्थानगतजोवो विह्वलो देही भवति तदा बहिर्गोमयेनोपलिप्तायां भूमौ कुशान्दक्षिणाग्रानास्तीर्य तदुपरि दक्षिणशिरसं स्थापयित्वा सुवर्णरजतगोभूमिदीपतिलपात्राणि दापयेत् ।' गोभिलस्मृति (३।२२)--'दुर्बलं स्नापयित्वा तु शुद्धचैलाभिसंवृतम् । दक्षिणाशिरसं भूपौ बहिष्मत्यां निवेशयेत् ॥' ५. दानानि च जातकर्ण्य आह। उत्क्रान्तिवैतरण्यौ च दश दानानि चैव हि । प्रेतेऽपि कृत्वा तं प्रेतं शवधर्मण दाहयेत्।....दश दानानि च तेनैवोक्तानि। गोभूतिलहिरण्याज्यवासोधान्यगुडानि च। रूप्यं लवमित्याहुर्दश दानान्यनुक्रमात् ॥ शुद्धिप्रकाश (पृ० १५२)। और देखिए गरुडपुराण (प्रेतखण्ड, ४।४); एपिप्रैफिया इण्डिका (जिल्द १९, पृ० २३०)। ६. आसन्नमृत्युना देया गौः सवत्सा तु पूर्ववत् । तदभावे तु गौरेव नरकोत्तरणाय च ॥ तदा यदि न शक्नोति वातंवैतरणी तु गाम। शक्तोऽन्योऽरुक तदा दत्त्वा दद्याच्छयो मृतस्य च ॥ व्यास (शुद्धितत्त्व, प० ३००; शद्धिप्रकाश पृ० १५३; अन्त्यकर्मदीपक (पृ०७)। गरुडपुराण (प्रेतखण्ड, ४१६) में आया है--'नदी वैतरणी तत् दद्याद्वैतरणों च गाम् । कृष्णस्तनी सकृष्णाङ्गो सा वै वैतरणी स्मृता॥ ऐसा आया है कि यम के द्वार पर वैतरणी नाम की नदी है जो रक्त एवं पैने अस्त्रों से परिपूर्ण है। जो लोग मरते समय गोदान करते हैं वे उस नदी को गाय की पूंछ पकड़कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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