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________________ मरण काल के कृत्य ११११ लोगों में भाँति-भांति की धारणाएँ रही हैं। कठोपनिषद् (१।१।२०) में आया है-'जब मनुष्य मरता है तो एक सन्देह उत्पन्न होता है, कुछ लोगों के मत से मृत्यूपरान्त जीवात्मा की सत्ता रहती है, किन्तु कुछ लोग ऐसा नहीं मानते।' नचिकेता ने इस सन्देह को दूर करने के लिए यम से प्रार्थना की है। मृत्यूपरान्त जीवात्मा का अस्तित्व माननेवालों में कई प्रकार की धारणाएँ पायी जाती हैं। कुछ लोगों का विश्वास है कि मृतों का एक लोक है, जहाँ मृत्यूपरान्त जो कुछ बच रहता है, वह जाता है। कुछ लोगों की धारणा है कि सुकृत्यों एवं दुष्कृत्यों के फलस्वरूप शरीर के अतिरिक्त प्रागी का विद्यमानांश क्रम से स्वर्ग एवं नरक में जाता है। कुछ लोग आवागमन एवं पुनर्जन्म में विश्वास रखते हैं। देखिए यूनानी लेखक पिण्डार (द्वितीय आलिचिएन ओड), प्लेटो (पीड्स एवं टिमीएस) एवं हेरोडोटस (२।१२३)। ब्रह्मपुराण (२१४।३४-३९) ने ऐसे व्यक्तियों का उल्लेख किया है, जिन्हें मृत्यु सुखद एवं सरल प्रतीत होती है; न कि पीडाजनक एवं चिन्तायुक्त । वह कुछ यों है-'जो झूठ नहीं बोलता, जो मित्र या स्नेही के प्रति कृतघ्न नहीं है, जो आस्तिक है, जो देवपूजा-परायण है और ब्राह्मणों का सम्मान करता है तथा जो किसी से ईर्ष्या नहीं करतावह सुखद मृत्यु पाता है। इसी प्रकार अनुशासनपर्व (१०४।११-१२; १४४।४९-६०) ने विस्तार के साथ अकालमृत्यु एवं दीप जीवन के कारणों का वर्णन किया है, वह कुछ यों है-'नास्तिक, यज्ञ न करनेवाले, गुरुओं एवं शास्त्रों की आज्ञा के उल्लंघनकर्ता, धर्म न जाननेवाले एवं दुष्कर्मी लोग अल्पायु होते हैं। जो चरित्रवान् नहीं हैं, जो सदाचार के नियम तोड़ा करते हैं और जो कई प्रकार से संभोग-क्रिया करते रहते हैं वे अल्पायु होते हैं और नरक में जाते हैं। जो क्रोध नहीं करते, जो सत्यवादी होते हैं, जो किसी की हिंसा नहीं करते, जो किसी की ईर्ष्या नहीं करते और कपटी नहीं होते वे शतायु होते हैं (१०४।११-१२ एवं १४)। बहुत-से ग्रन्थ मृत्यु के आगमन के संकेतों का वर्णन करते हैं, यथा-शान्तिपर्व (३१८।९-१७), देवल (कल्पतरु, मोक्षकाण्ड, पृ० २४८-२५०), वायुपुराण (१९।१-३२), मार्कण्डेयपुराण (४३।१-३३ या ४०।१-३३), लिंगपुराण (पूर्वार्ध, अध्याय ९१) आदि पुराणों में मृत्यु के आगमन के संकेतों या चिह्नों की लम्बी-लम्बी सूचियाँ मिलती हैं। स्थानाभाव से अधिक नहीं लिखा जा सकता, किन्तु उदाहरणार्थ कुछ बातें दी जा रही हैं। शान्तिपर्व (अध्याय ३१८) के अनुसार जो अरुन्धती, ध्रुव तारा एवं पूर्ण चन्द्र तथा दूसरे की आँखों में अपनी छाया नहीं देख सकते, उनका जीवन बस एक वर्ष का होता है; जो चन्द्रमण्डल में छिद्र देखते हैं वे केवल छ: मास के शेष जीवनवाले होते हैं। जो सूर्यमण्डल में छिद्र देखते हैं या पास की सुगंधित वस्तुओं में शव की गन्ध पाते हैं उनके जीवन के केवल सात दिन बचे रहते हैं । आसन्न-मृत्यु के लक्षण ये हैं-कानों एवं नाक का झुक जाना, आँखों एवं दांतों का रंग-परिवर्तन हो जाना, संज्ञाशन्यता, शरीरोष्णता का अभाव, कपाल से धम निकलना एवं अचानक बायीं आँख से पानी गिरना। देवल ने १२, ११ या १० मास से लेकर एक मास, १५ दिन या २ दिनों तक की मृत्यु के लक्षणों का वर्णन किया है और कहा है कि जब अंगुलियों से बन्द करने पर कानों में स्वर की धमक नहीं ज्ञात होती या आँख में प्रकाश नहीं दीखता तो समझना चाहिए कि मृत्यु आने ही वाली है। अन्तिम दो लक्षणों को वायुपुराण (१९।२८) एवं लिंगपुराण (पूर्वार्ष, ९१।२४) ने सबसे बुरा माना है।' 'मुंशी हीरक जयन्ती ग्रन्थ' (पृ. २४६-२६८) में डा० आर० जी० हर्षे ने कई २. देखिए सी० ई० वुल्लियामी. (C. E. Vull amy) का इम्मार्टल मैन (Immortol Man), पृ० ११ । ३. हे चात्र परमेऽरिष्टे एतद्रूपं परं भवेत् । घोषं न शृणुयात्कणे ज्योतिनं न पश्यति ॥ वायुपुराण (१९।२७); नग्नं वा श्रमणं दृष्ट्वा विद्यान्मृत्युमुपस्थितम् । लिंगपुराण (पूर्वभाग ९१२१९)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002791
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages652
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size20 MB
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