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धर्मशास्त्र का इतिहास शालिकनाथ की प्रकरणपंचिका (पृ० १०२), जो प्राभाकर (मीमांसक) मत के प्रारम्भिक ग्रन्थों में एक है। शान्तिपर्व (२८।४२) में स्पष्ट आया है बुद्धिमान् लोग परलोक को किसी अन्य द्वारा स्पष्ट (प्रत्यक्ष) देखा हुआ नहीं मानते। (परलोक की स्थिति के विषय में) विश्वास रखना होगा, अन्यथा लोग वेदों (आगमों) का अतिक्रमण करने लगेंगे। ब्रह्मपुराण एवं विष्णुपुराण ने शबर के समान ही बातें कही हैं-'स्वर्ग वही है जिससे मन को प्रीति मिलती है; नरक इसका उलटा (विपर्यय) है; पुण्य एवं पाप को ही क्रम से स्वर्ग एवं नरक कहा जाता है; सुख एवं दुःख से युक्त मनःस्थिति ही स्वर्ग एवं नरक की परिचायक है। २५ ।
भारतीय प्राचीन ग्रन्थों में नरक एवं स्वर्ग के विषय में जो अनगढ़ विचार-धाराएं हैं, उनसे चकित नहीं होना चाहिए, क्योंकि ऐसी ही भावनाएँ विश्व के सभी धर्मों में प्रचलित रही हैं। मिस्र के राजाओं एवं लोगों में, जिनकी वंशपरम्पराएं ५,००० वर्षों तक चलती रही हैं, स्वर्ग एवं नरक की विचित्र बातें पायी जाती थीं, जिन्हें वे चित्रों द्वारा अंकित करते थे (किसी अन्य राष्ट्र या देश ने ऐसा कभी नहीं किया), यद्यपि अत्यन्त प्राचीन मृत लोगों की पुस्तकों में चित्र नहीं हैं (देखिए ई० ए० डब्लू० बज महोदय की पुस्तक 'ईजिप्शिएन हेवेन एण्ड हेल' (१९०५, पृ० ११ एवं २)। हिब्रू (यहूदी) लोगों ने पृथिवी के निम्नतम भाग में मत लोगों को रखा है, जहाँ भयानक अन्धकार है, और उसे 'शियोल' की संज्ञा दी है (जाब १०।२१-२२ एवं ३०१२३)। ग्रीक 'हैडेस' अपनी विशिष्टताओं में 'शियोल' के बहुत समान है। 'न्य टेस्टामेण्ट' में नरक को निरन्तर प्रज्वलित रहने वाली अग्नि का स्थान कहा गया है, जहाँ दुष्कर्मकारी पापीजन अनन्त काल-व्यापी दण्डों एवं यातनाओं को सहने के लिए जाते हैं; पुण्यवान् लोग अमर जीवन प्राप्त करते हैं (मैथ्यू २५।४१ एवं ४६, लूक १६।२३)। न्यू टेस्टामेण्ट के अनुसार स्वर्ग का स्थान पृथिवी एवं बादलों के ऊपर है और नरक पृथिवी के नीचे अंधकार एवं यातनाओं से परिपूर्ण है। और देखिए लूक (२३।४३); ईफेसिएन्स (११३ एवं २०१२। कोर० १२१४, रेव० २१७); लूक (१२।५ एवं १६।२३); २. पेटर (२।४) एवं रेव० (६१८, २०।१३-१४)। शेक्सपियर एवं अधिकांश में सभी ईसाई धर्मावलम्बियों ने बाइबिल में दी हई नरक-स्वर्ग-सम्बन्धी धारणाओं में विश्वास किया है। आधुनिक काल के बहुत-से ईसाई अब यह मानने लगे हैं कि बाइबिल में दी हुई नरकस्वर्ग-सम्बन्धी भावनाएं वास्तव में प्रतीकात्मक हैं। कुरान में नरक के विषय में ऐसा आया है--"अति दुष्टों को युगों तक पीड़ा देने के लिए नरक एक इनाम है। उन्हें वहाँ शीतलता एवं जल नहीं मिलेगा, केवल खौलता हुआ पानी एवं पीव पीने को मिलेगा।" (देखिए सैक्रेड बुक ऑव दि ईस्ट, जिल्द ९, पृ० ३१७) । कुरान के सात स्वर्गीय मागों के लिए देखिए वही, जिल्द ६, पृ० १६५; अन्य बातों के लिए देखिए वही, जिल्द १४, पृ० ३१७, एवं पृ० ३४०, जहाँ क्रम से नरक की अग्नि-यातनाओं तथा खौलते जल, पीव एवं अग्नि का वर्णन है। कुरान में स्वर्ग के सात.माग कहे गये हैं, यथा-अमरत्व का उपवन, शान्ति-निवास, आराम का निवास, इडेन का उपवन, आश्रय का उपवन, आनन्द का उपवन, अत्युच्च उपवन या स्वर्ग का उपवन।
स्मृतियों ने सिद्धान्त प्रतिपादित किया है कि यदि पापी ने प्रायश्चित्त नहीं किया तो उसे नरक की यातनाएँ मुगतनी पड़ेंगी और इसके उपरान्त पापों के अवशिष्ट चिह्न-स्वरूप उसे कीट-पतंगों या निम्न कोटि के जीव या वृक्ष
२४. न दृष्टपूर्वप्रत्यक्ष परलोकं विबुधाः। आगमास्त्वनतिक्रम्य वातव्यं बुभूषता॥ शान्तिपर्व (२८०४२))।
२५. मनःप्रीतिकरः स्वर्गो नरकस्तद्विपर्ययः। नरकस्वर्गसंजे वै पापपुण्ये द्विजोत्तमाः॥ ब्रह्मपुराण (२२।२४); विष्णुपुराण (२।६।४६)--मनसः परिणामोऽयं सुखदुःखादिलक्षणः । ब्रह्मपुराण (२२॥४७):
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