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________________ ६५२ धर्मशास्त्र का इतिहास अन्य ग्राम या नगर के दलों की परम्पराएँ एव रूढियाँ राजा द्वारा संरक्षित होनी चाहिए । राजा को चाहिए कि वह उनके विशेष नियमों (यथा-सत्य बोलना), विशिष्ट कार्यों (यथा--बिना स्नान किये प्रातःकाल भिक्षा माँगना), मिलने के ढंग (दुंदुभि बजने पर) एवं जीविकावृत्ति को माने, अर्थात् उन्हें वैसा करने दे । किन्तु ऐसे नियम या रूढियां जो स्वयं राजा के विरोध में जायँ, सामान्य लोगों द्वारा अच्छी न कही जायें या राजा के उद्देश्य के लिए बाधक सिद्ध हों, तो उन्हें मान्यता नहीं मिलनी चाहिए, अर्थात् राजा उन नियमों को बन्द कर सकता है । उनके आपसी विभेद तथा एक-दूसरे के विरोध में जाने वाले दलगत विचार, लड़ाई-झगड़े आदि रोक दिये जाने चाहिए । कई संघों में झगड़ा उत्पन्न करने वालों को दबा देना चाहिए, क्योंकि उनके इस प्रकार के परस्पर-विरोधी कार्यों से भयंकरता उत्पन्न होती है। संघों, श्रेणियों आदि के विषय में हमने भाग-२ के अध्याय-२ में विस्तार से पढ़ लिया है। शिलालेखों में निम्न महत्त्वपूर्ण हैं-- आभीर ईश्वरसेन के समय का नासिक अभिलेख सं० १५ (एपि० इण्डि०, जिल्द ८, पृ० ८८), जहाँ कुम्हारों, तेलियों एवं पानी लाने वालों की श्रेणियों को निक्षिप्त धन मिलने की बात लिखी है); जुन्नार बौद्ध गुफाओं के अभिलेख ( आालॉजिकल सर्वे आव वेस्टर्न इण्डिया, जिल्द ४, पृ० ६७, जहाँ बाँस से काम करने वालों, ठठेरों अर्थात् पीतल के बरतन आदि वनाने वालों की श्रेणियों में धरोहर या निक्षिप्त धन रखने की बात उल्लिखित है); गुप्त-अभिलेख सं० १६, ५० ७० (तेलियों की श्रेणी में, जिसका मुखिया जीवन्त था, धन रखने की बात की चर्चा है); गुप्त-अभिलेख सं० १८, पृ० ७६(रेशम बुनने वाले लाट से दशपुर में आकर सूर्य-मन्दिर बनाते हैं),एपि० इण्डि०, जिल्द १५, पृ० २६३ ; वही, जिल्द १८, पृ० ३२६ एवं पृ० ३०; वही, जिल्द १६, पृ० ३३२; वही, जिल्द १, पृ० १५५ (ग्वालियर में, जिसका प्राचीन नाम था गोपगिरि, तेलियों एव मालियों की श्रेणियाँ थीं); वही, जिल्द १, पृ० १८४ । राइस डेविड्स ने अपने ग्रन्थ 'बुद्धिस्ट इण्डिया' (पृ० ६०-६६) में १८ श्रेणियों की एक सूची उपस्थित की है। श्रेणियों के विषय में विशिष्ट जानकारी के लिए देखिए डा० आर० सी० मजुमदार कृत 'कारपोरेट लाइफ इन ऐश्य ण्ट इण्डिया' (अध्याय १) तथा 'इण्डियन कल्चर' (जिल्द ६, पृ० १६४०, ४२१-४२८)। बहुत-से ग्रन्थों में सामान्य नौकरों (यथा--परिवार, भृत्य ग अनुजीवी) के गुणों के विषय में भी चर्चा हुई है, यथा--उन्हें किस प्रकार रहना चाहिए, राजा प्रसन्न हैं या क्रुद्ध हैं, यह कैसे जानना चाहिए आदि-आदि । इस विषय में देखिए कौटिल्य (५।४), विराटपर्द (४११२-५०, जहाँ कई स्थलों पर ‘स राजवसति वसेत्' आया है), मत्स्य (२१६, जो सम्पूर्ण रूप से राजधर्मकाण्ड, पृ० २४-२७ एवं राजनीतिप्रकाश, पृ० १८६-१६२ में उद्धृत है), अग्नि (२२१), विष्णुधर्मोत्तर (२।२५।२-२८), कामन्दक (४।१०-११, ५२१-४, ६।११-६३, जिसका बहुतांश राजनीतिरत्नाकर, पृ० ५१-५८ में उद्धृत है), शुक्रनीतिसार (२६५४-६८, २०५-२५३) । याज्ञ० (१।३१०) में 'अक्षुद्रपरिषद् (मिताक्षरा ने इसे 'अक्षुद्रोऽपरुषः' पढ़ा है) आया है जिसकी व्याख्या में विश्वरूप ने शंख को उद्धृत किया है-- "हमें गृध्रों (लोभी नौकरों) से घिरे हुए हंस (अच्छे राजा) की अपेक्षा हंसों (पवित्र चरित्र वाले नौकरों) से घिरे गृध्र (लोभी राजा) को श्रेयस्कर मानना चाहिए।' राजनीतिप्रकाश (पृ० १६५) ने इसी पद्य को शंख-लिखित से ये भिन्द्युस्ते विनेया विशेषतः। आवहेयुभयं घोरं व्याधिवत्ते ह्युपेक्षिताः । नारद (समयस्यानपाकर्म २-६)। अमरावती के शिलालेखों (एपि० इण्डि०, जिल्द १५, पृ० २६३) में "धअकडकस निगमस' शब्द आये हैं । इस स्थान के विषय में कई मत हैं (एपि० इण्डि०, जिल्द २०, पृ०६) । अमरकोश के अनुसार 'नगम' एवं 'वणिक' समानार्थक हैं । याज. (२।१६२) की टीका में विश्वरूप का कथन है --'सार्थवाहादिसमूहो नैगमः'; अपराकं (पृ०७६६)ने व्याख्या की है-- "सह देशान्तरवाणिज्यार्थ ये नानाजातीया अधिगच्छन्ति ते नेगमाः।" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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