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धर्मशास्त्र का इतिहास
वालों को दबाने, धूस लेने वाले न्यायाधिकारियों एवं अन्य विभागों के अधीक्षकों का भेद बताने, अनधिकृत ढंग से मुद्रा बनाने वालों का पता लगाने, बलात्कार करने वालों, चोरों, डाकओं एवं अपराधियों की खोज करने के लिए तैनात किये जाते थे।न्याय-विषयक कुछ विशेष जानकारी के लिए भी गुप्तचरों की व्यवस्था कौटिल्य ने दी है। कौटिल्य (३.१) का कहना है-"यदि साक्षियों के कारण वादी एवं प्रतिवादी दोनों का मुकदमा गड़बड़ हो जाय, जब दोनों दलों में किसी एक का पक्ष गुप्तचरों द्वारा असत्य सिद्ध हो जाय तो उसके विरोध में न्याय दिया जायगा।" द्रोणपर्व (७५२४) से पता चलता है कि दुर्योधन की सेना में कृष्ण के गुप्तचर नियत थे और यही बात दुर्योधन की ओर से भी की गयी थी। शान्तिपर्व (६६८-१२ एवं १४०।३६-४२) ने उन स्थलों के नाम दिये हैं जहाँ-जहाँ गुप्तचर नियत किये जाने चाहिए
और इस बात पर भी बल दिया है कि गुप्तचर एक-दूसरे को न जान सकें।२४ कौटिल्य ने गुप्तचर-विभाग का जो विस्तृत • वर्णन उपस्थित किया है उससे चकित नही होना चाहिए, आधुनिक काल में सभी देशों में गुप्तचर-विभाग पर पर्याप्त धन व्यय किया जाता है। देश-विदेश में चारों ओर गुप्तचरों के जाल बिछे रहते हैं। भारत के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री या किसी राज्य के मुख्यमन्त्री या मन्त्री जब विचरण करते हैं या किसी सभा में जाते हैं तो उनके रक्षार्थ चारों ओर जनता के वेश में गुप्तचर फैले रहते हैं।
ते प्रामाणामध्यक्षाणां च शौचाशौचं विद्य: । अर्थशास्त्र ४।४ । मिलाइए, नीतिवाक्यामृत (चारसमुददेश) पृ० १७२, जहाँ गुप्तचरों के रूप में लोगों की लम्बी तालिका दी हुई है।
२४. पाषण्डांस्तापसादींश्च परराष्ट्र निवेशयेत् । उद्यानेषु विहारेषु प्रपास्वावसयेषु च ॥ पानागारे प्रवेशेषु तीयेषु च समासु च । शान्ति० १४०।३६-४२; यथा न विद्युरन्योन्यं प्रणिधेयास्तथा हि ते । शान्ति० ६६१० ।
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