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राजदूत, चर, गुप्तचर आदि
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धारण कर कार्य कर सके । इनमें से प्रथम पाँच को कौटिल्य ने पञ्चसंस्था कहा है जिन्ह राजा द्वारा पुरस्कार एवं सम्मान मिलना चाहिए, और उनके द्वारा राजा को अपने भृत्यों के चरित्र की पवित्रता की जाँच करनी चाहिए। कौटिल्य का कहना है कि उदास्थित नामक गुप्तचर को राजा द्वारा दी गयी भूमि पर कृषि-कर्म, पशु-पालन एवं व्यापार करते रहना चाहिए और उसे पर्याप्त सोनाएवं चेले आदि दिये जाने चाहिए, जिससे वह सभी (बनावटी)साधुओं को भोजन, वस्त्र एवं आवास दे सके और उन्हें विशिष्ट अपराधों एवं समाचारों की टोह में भेज सके। तापस नामक गुप्तचर को राजधानी के पास ही रहना चाहिए, उसके पास बहुत से देले रहने चाहिए, उसे यह प्रसिद्ध कर देना चाहिए कि वह मास में केवल एक बार खाता है या दो-एक मुट्ठी साग-भाजी या घास खाता है (वास्तव में छिपकर वह माल उड़ाता है या अपनी मनचाही थाली पर हाथ साफ करता रहता है) । उसके चेलों को यह घोषित कर देना चाहिए कि उनके गुरु महोदय की शक्तियाँ अलौकिक हैं और वे लाभ, अग्नि, डाका आदि के विषय में भविष्यवाणी कर सकते हैं।
कौटिल्य (१।१२) ने सञ्चर (घुमक्कड़) गुप्तचरों अर्थात् सत्रियों (जो अनाथ होते हैं और उनका पालनपोषण राज्य द्वारा होता है और उन्हें हस्त-रेखा-विद्या, इन्द्रजाल, हस्तलाघव (हाथ की सफाई की विद्या) आदि में
जाता है) का भी वर्णन किया है। कौटिल्य ने तीक्ष्ण (जो जीवन से इतने निराश होते हैं कि धनोपार्जन के लिए हाथो से भो लड़ सकते हैं), रसद (जो अपने सम्बन्धियों के लिए भी कोई स्नेह नहीं रखते, आलसी एवं क्रूर होते है), भिक्षुकी या परिवाजिका (दरिद्र ब्राह्मण विधवा, चतुर एव जीविकोपार्जन की इच्छुक, जिसका अन्तःपुर में मान होता है और जो महामानों एवं मन्त्रियों के कुटुम्बों में प्रवेश पाती रहती है) का भी वर्णन किया है। उपयुक्त गुप्तचर लोग १८ तीर्थों के भेदों को बताने के लिए तैनात रहते थे। तीर्थों के व्यक्तिगत चरित्नों की जानकारी एवं जाँच के लिए ऐसे लोग नियुक्त किये जाते थे जो कुब्जों, वामनों, (नाटे लोगों) किरातों, बहरों, गूगों, मूखों, जड़ों का अभिनय कर सकें या अभिनेता, नर्तक, गायक आदि हों। इस कार्य के लिए स्त्रियों की नियुक्ति भी होती थी। इनसे जो समाचार प्राप्त होते थे उनकी परीक्षा पञ्च संस्थाओं (ऊपर वणित) द्वारा करा ली जाती
त) द्वारा करा ली जाती थी, किन्तु दोनों प्रकार के दल अपनी-अपनी जांच अलग-अलग करते थे। इसके उपरान्त अन्य गुप्तचरों द्वारा परीक्षण कराया जाता था। यदि इस प्रकार के तीनों परीक्षणों का फल एक ही होता था तो समाचार को ठीक मान लिया जाता था, किन्तु यदि समाचारों में भेद पड़ जाय तो गुप्तचरों को गुप्त रूप से दण्ड दिया जाता था या उन्हें नौकरी से हटा दिया जाता था। विष्णुधर्मोत्तर (२।२४।६६-६७) में भी इसी प्रकार के रहस्य-भेदन का वर्णन पाया जाता है। कौटिल्य (१।१३) ने सामान्य रूप से भी रहस्य-भेदन के विषय में लिखा है (अर्थात् राजधानी तथा राज्य के अन्य भागों के विषय में भी। गुप्तचर लोग राज्य भर में घुमा करते थे और गप्त रूप से राजा के विषय में एवं शासन-कार्य के विषय में सन्तोष या असन्तोष की बातों का पता लगाते थे। कौटिल्य (१।१४) ने विदेशों के रहस्य-भेदन के लिए भी गुप्तचर-व्यवस्था की चर्चा की है। गुप्तचर लोग वहाँ के राजा के मित्रों, शत्रुओं, विरोधी तत्वों आदि का पता लगाते थे और उन्हें अपनी ओर मिला लेने की व्यवस्था करते थे। राज्य में चारों ओर गुप्तचरों का जाल बिछा रहता था, जैसा कि कामम्दक (१२।१८) ने राजा को “चारचक्षुर्महीपतिः' (गुप्तचर राजा की आंखें हैं) की उपाधि देकर प्रकट किया है । यही बात विष्णुधर्मोत्तर (२।२४।६३) एवं उद्योगपर्व (३४।३४) ने क्रम से "राजानश्चारचक्षुषः" एवं "चारैः पश्यन्ति राजानः" के रूप में कही है । कौटिल्य (४।४-६) ने समाहर्ता२३ द्वारा नियुक्त कतिपय गुप्तचरों की चर्चा की है जो अशान्ति उत्पन्न करने
२३. समाहर्ता जनपदे सिद्धतापसप्रव्रजितचक्रचरचारणकुहकप्रच्छन्दककार्तान्तिकनैमित्तिकमौहूतिकचिकित्सकोन्मत्तमूकबधिरजडान्धवैदेहककारुशिल्पिकशीलववेश-शौण्डिकापूपिकपाक्वमासिकौदनिकव्यन्जनान प्रा
पाचजनान्माणदव्यात।
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