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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास कम । (३) शासनहर (केवल राजकीय पत्र एवं संदेश ले जाने वाला), इसमें मन्तियों के केवल आधे गुण पाये जाते हैं । मिताक्षरा (याज्ञ० १६३२८) ने बड़े सुन्दर ढंग से इन तीन प्रकारों का वर्णन किया है। कौटिल्य ने दूत-कार्य पर सविस्तर लिखा है, यथा--शत्रु-देश में उसे क्या-क्या देखना चाहिए, उसे कैसा व्यवहार करना चाहिए (स्त्रियों एवं पासव से दूर रहना चाहिए), उसे गुप्तचरों से किस प्रकार समाचार ग्रहण करने चाहिए आदि-आदि । स्थानाभाव के कारण हम विस्तार छोड़े दे रहे हैं । देखिए काम० (१२।२-२४) को भी। कामन्दक (१२।२३-२४) ने बहुत संक्षेप में ये बातें दी हैं---शत्रु के यहाँ के उन लोगों की अभिज्ञता प्राप्त करना जो उस राजा के द्रोही हैं, शत्रु-राजा के मित्रों एवं सम्बन्धियों को अपनी ओर मिला लेना, दुर्गों की संख्या एवं सन्नद्धता की जानकारी प्राप्त कर लेना, शत्रु की आर्थिक स्थिति एवं सैन्य बल की अभिज्ञता प्राप्त कर लेना, शत्रु का अभिप्राय जानना, शत्रु-देश के जनपदों के प्रभारी अधिकारियों को अपनी ओर मिला लेना, युद्ध-क्षेत्र की पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लेना जिससे उस स्थान से शीघ्रता के साथ आगे निकला जा सके । मनु (७।६५) के कथनानुसार दूत ही सन्धि एवं विग्रह का कारण होता है। यदि दूत से संदेश सुनकर राजा (शत्रु) रुष्ट हो जाय तो दूत को इस प्रकार कहना चाहिए ---"सभी राजा आप और मन्य दूत के मुख से ही बातें जानते हैं । अतः धमकी दिये जाने पर भी दूत को संदेश देना ही पड़ता है ; नीच जाति के (चाण्डाल) दूतों को भी नहीं मारना चाहिए ; उस दूत की तो बात ही क्या जो ब्राह्मण है ? यह जो मैं कह रहा हूँ दूसरे का सन्देश है, इसे कह देना मेरा कर्तव्य है।" २२रामायण (१५२।१४-१५) का कहना है कि अच्छे लोग दूत-वध की आज्ञा नहीं देते, किन्तु कुछ अवसरों पर उसे कोड़े मारने, मुण्डित कर बाहर निकाल देने आदि की आज्ञा दे दी गयी है। चर या चार (गुप्तचर) तथा दूत में अन्तर है, जैसा कि कौटिल्य, कामन्दक (१२।३२), याज्ञ० (१३३२८) में लिखा है। कामन्दक (१२।३२) का कथन है कि दूत प्रकाश में कार्य करता है किन्तु चर छिपकर । आजकल के राजदूत एक प्रकार के सम्मानित दूत ही हैं जो राष्ट्रों के नियमों की सुरक्षा में रहते हैं। कौटिल्य ने गुप्तचरों पर चार अध्याय लिखे हैं (१।११-१४) । कामन्दक (१२।२५-४६) ने भी लिखा है । शुक्रनीतिसार (१।३३४-३३६) का कथन है कि प्रति रात्रि को राजा को चाहिए कि वह गुप्तचरों द्वारा प्रजा एवं कर्मचारियों के अभिप्रायों, मंत्रियों, शत्रुओं, सैनिकों, सभा के सदस्यों, सम्बन्धियों एवं अन्तःपुर की रानियों की सम्मतियों को जाने। कामन्दक (१२।२५) का कहना है कि चर में इतनी योग्यता होनी चाहिए कि वह लोगों के मन की बात जान ले, उसकी स्मृति शक्तिशाली होनी पाहिए,मधुरभाषी होना चाहिए, शीघ्रगामी होना चाहिए, उसमें विपत्तियों को सहने की एवं कठिन परिश्रम करने की शक्ति होनी चाहिए; उसे क्षिप्र होना चाहिए और होना चाहिए प्रत्युत्पन्नमति । कौटिल्य (१।११) का कथन है कि गूढ-पुरुष या गुप्तचर लोग वे हैं जो कापटिक (ऐसा साहसी विद्यार्थी, जो लोगों के मन को पढ़ ले), उदास्थित (ऐसा कृत्रिम साधु, जो साधुत्व के वास्तविक कर्तव्यों से च्युत हो, किन्तु हो बुद्धिमान् एवं पविन चरित्न वाला), गृहपतिक (ऐसा गृहस्थ जो ऐसा कृषक हो, जो अपनी जीविका न चला सके, किन्तु हो मेधावी एवं उत्तम चरित्र वाला), वैदेहक (ऐसा व्यापारी जो व्यापार से अपनी जीविका न चला सके किन्तु हो मेधावी एवं शुद्ध चरित्र वाला), तापस (ऐसा गुप्तचर जो तपस्या कर रहा हो, जिसने सिर म डा लिया हो, या जटाएं बढ़ा ली हों और अपनी जीविका चलाने का इच्छुक हो), सत्री (महयोगी या सहपाठी), तीक्ष्ण (निराश व्यक्ति), रसद (विष देने वाला) एवं भिक्षुकी का वेष २२. तं ब्रूयाद् दूतमुखावै राजानस्त्वं चान्ये च । तस्मादुद्धृतेष्वपिशस्त्रेषु यथोक्तं वक्तारस्तेषामन्तावसायिनोऽप्यवध्याः । किमङ्ग पुनर्ब्राह्मणाः । परस्य॑तद्वाक्यमेव दूतधर्म इति । अर्थशास्त्र १।१६। नीतिवाक्यामृत (दूतसमुदेश, पृ० १७१) एवं यशस्तिलक (३, पृ० ५६४) में ये ही शब्द लिखित हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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