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________________ अध्याय ४ मन्त्रि -गण (२) अमात्य-राज्य के सात अंगों में दूसरा है अमात्य, जिसे हम सचिव या मन्त्री भी कह सकते हैं। अमात्य, सचिव एवं मन्त्री में कभी-कभी कुछ अन्तर भी परिलक्षित होता है। इन तीनों में 'अमात्य' शब्द अत्यन्त पुराना है। ऋग्वेद (४।४।१) में इस शब्द का बीज या आरम्भिक रूप पाया जाता है; "हे अग्नि, मन्त्रियों(अमावान् ) के साथ हाथी पर चढ़े हुए राजा के समान जाओ।"१ 'अमात्य' शब्द भी ऋग्वेद (७।१५॥३) में आया है, किन्तु वहाँ यह विशेषण है, जिसका ' अर्थ है 'स्वयं हमारा' या 'हमारे घर में रहने वाला। कुछ सूत्रों (यथा-बौधायनपितृमेधसूत्र १।४।१३, १।१२।७) में 'अमात्य' शब्द 'घर में पुरुष सम्बन्धियों के पास' के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है । आपस्तम्बधर्मसूत्र (२।१०।२५।१०) में 'अमात्य' शब्द 'मन्त्री' के अर्थ में अर्थात् अपने वास्तविक अर्थ में प्रयुक्त हुआ है ; राजा को अपने गुरुओं (गुरुजनों या बुज़गों) एवं अमात्यों से बढ़कर सुखपूर्वक नहीं जीना या रहना चाहिए" (गुरूनमात्यांश्चैव नातिजीवेत्) । ऐतरेय ब्राह्मण में 'सचिव' शब्द आया है, जहाँ ऐसा लिखा है कि इन्द्र ने मरुतों को अपने सचिवों ( सहायकों या साथियों) के रूप में माना । बहुत से लेखकों ने अमात्यों एवं सचिवों की आवश्यकता सुन्दर शब्दों में दर्शायी है। कौटिल्य (१७,अन्तिम पाद) का कहना है--"राजत्व-पद सहायकों की मदद से सम्भव है, केवल एक पहिया कार्यशील नहीं होता; अतः राजा को चाहिए कि वह मन्त्रियों की नियुक्ति करे और उनकी सम्मतियाँ सुने।" मनु (७।५५ = शुक्रनीति० २१) का कहना है-"एक व्यक्ति के लिए सरल कार्य भी अकेले करना कठिन है; तो शासन-कार्य, जो कि कल्याण करना परम लक्ष्य मानता है, बिना सहायकों के कैसे चल सकता है ?" मत्स्यपुराण (२१५२२) का कहना है--"राजा को, जब कि राज्याभिषेक के कारण अभी उसका सिर गीला ही है और वह राज्य का पर्यवेक्षण करना चाहता है, चाहिए कि वह सहायक चुन ले,क्योंकि उन्हीं में राज्य का स्थायित्व छिपा रहता है।"और देखिए मनु (७३५५ = मत्स्य० २१॥३), विष्णुधर्मोत्तर (२।२४।२-३), शान्ति० (१०६।११) एवं राजनीतिप्रकाश (पृ०१७४)। अर्थशास्त्र (१७ एवं), मनु (७३५४ एवं ६०), कामन्दक (४।२५, २७, १३१२४ एवं ६४) ने 'सचिव' एवं 'अमात्य' शब्द समानार्थक रूप में प्रयुक्त किये हैं । रुद्रदामा (ई० १५०) के लेख में 'सचिवों' को दो भागों में विभक्त किया गया है, एक तो वे थे जो सम्मति देने वाले थे और दूसरे वे जो निर्णीत बात को कार्यान्वित करते थे। इस लेख में 'सचिव एवं 'अमात्य एकदूसरे के पर्याय हैं । अमरकोश (२) में आया है कि 'अमात्य' जो 'धीसचिव' ('मतिसचिव') है, 'मन्त्री' कहलाता है और ऐसे अमात्य जो मन्त्री नहीं हैं 'कर्मसचिव' कहे जाते हैं। इन अन्तरों पर बहुधा ध्यान नहीं दिया जाता। रामायण (१७।३) में सुमन्त्र को अमात्य एवं सर्वश्रेष्ठ मन्त्री कहा गया है (१।८।४) । अयोध्याकाण्ड (१।२।१७) में 'अमात्य' एवं 'मन्त्री' में अन्तर बताया गया है। कौटिल्य (१८) ने लिखा है कि 'अमात्यों एंव 'मन्त्रियों में अन्तर है। कौटिल्य १. कृणुष्व पाजः प्रसिति न पृथ्वी याहि राजेवामवां इभेन । ऋ० ४।४।१; याहि राजा इभेव अमात्यवान् अभ्यमनवान् स्ववान् वा । निरुक्त ६।१२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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