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________________ ६२२ धर्मशास्त्र का इतिहास कि सम्भवतः उसने प्राचीन परम्परा का अनुसरण किया था और वृद्धावस्था में राज्य त्याग दिया था। बाघेल कुल के राजा लवणप्रसाद ने अपने पुत्र वीरधवल (१२३३-३८ ई.) के पक्ष में राजसिंहासन छोड़ा था (बम्बई गजेटियर, जिल्द १, भाग १,१० १६८, २००,२०६)। कौटिल्य (८।२) ने एक विलक्षण राजत्व की ओर संकेत किया है, जिसे "वैराज्य" (दो का राज्य) कहते हैं। उन्होंने "द्वैराज्य" एवं "वैराज्य" में अन्तर बताया है। अर्थशास्त्र की हस्तलिखित प्रतियों में कहीं कुछ लिखा है, कहीं कुछ, किन्तु पादटिप्पणी में डा० शाम शास्त्री ने जो दिया है वह ठीक ज्ञात होता है । “द्वैराज्य" एवं "वैराज्य” (विदेशी राज्य) में प्रथम राज्य पारस्परिक कलह एवं विरोध के कारण नाश को प्राप्त होता है; दुसरा जब प्रजा के मन को जीत रखता है, जैसा कि आचार्यों का कथन है, तो चलता रहता है। किन्तु कौटिल्य का कथन है कि नहीं, द्वैराज्य सामान्यतः पिता एवं पुत्र या भाई-भाई के बीच पाया जाता है। दोनों का कल्याण एक ही है अतः अमात्यों के प्रभाव से (दोनों का एक साथ शासन) चल सकता है; किन्तु वैराज्य तो वह राज्य है जिसे कोई बाहरी राजा जीत कर हथिया लेता है, बाहरी राजा सदैव यह सोचता रहेगा कि यह राज्य वास्तव में उसका नहीं है, अतः वह इसे निर्धन बना देगा, इसके धन को लूट कर ले जायगा, इसे क्रय की वस्तु समझेगा और जब यह समझेगा कि देश उससे विरक्त है तो उसे छोड़कर चला जायगा। कौटिल्य के इस कथन में विदेशी राजा की मनोवृत्ति पायी जाती है । मनु (४।१६०) ने बहुत ही सरल एवं संक्षिप्त ढंग से कहा है कि किस प्रकार स्वतन्त्रता में व्यक्तिगत एवं राष्ट्रीय सुख छिपा रहता है। कालिदास के मालविकाग्निमित्र (५) में भी द्वैराज्य का वर्णन मिलता है। अग्निमित्र के राज्य करते समय उसके दो पुत्रों, यज्ञसेन एवं माधवसेन को वरदा नदी के उत्तर एवं दक्षिण में सम्मिलित राजा बनाने की अभि कांक्षा की जा रही है। महाभारत (उद्योग०१६६) में विन्द एवं अनुविन्द के द्वैराज्य का वर्णन मिलता है। मैक्रिरण्डल (इनवेजन आव इण्डिया बाई अलेक्जैण्डर, पृ० २६६) ने डायोडोरस को उद्धृत कर बताया है कि अलेक्जैण्डर नदी में ऊपर की ओर आता हुआ तौल (पटल) के पास पहुँचा, जो एक अति प्रसिद्ध नगरी थी, जहाँ का शासन स्पार्टी के समान था, क्योंकि इसमें शासन-सूत्र दो विभिन्न कुलों के वंशपरम्परागत राजाओं के हाथ में था, और गुरुजनों की परिषद् के हाथ में सब अधिकार अवस्थित था। विशेष जानकारी के लिए पढ़िए डा० जायसवाल की पुस्तक 'हिन्दू पॉलिटी' (भाग १, पृ०६६-६७) एवं डा० डी० आर० भण्डारकर की पुस्तक 'ऐश्येण्ट इण्डियन पॉलिटी' (पृ०६६-१००), जहाँ बौद्ध तथा अन्य सामग्रियों के आधार पर द्वैराज्य के विषय में विस्तार से विवेचन उपस्थित किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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