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________________ गणराज्यों की सत्ता ६१५ है कि द्वैपायन से मुठभेड़ होने पर वृष्णि-संघ का नाश हुआ। कौटिल्य (१।१७) ने लिखा है कि राज्य-शासन कुल द्वारा चलाया जा सकता है, क्योंकि कुलसंघ दुर्जय होता है, यह राजारहित राज्य की विपत्तियों से दूर रहता है । दिनों तक चलता रहता है। सघों के साथ महत्वाकांक्षी राजा के व्यवहार किस प्रकार के होने चाहिए, इस पर कौटिल्य ने एक पूरा अधिकरण (११) लिख डाला है। संघों को अपनी ओर मिला लेना किसी सेना या मित्रों को अपनी ओर मिला लेने से कहीं उत्तम है । कौटिल्य ने इसी सिलसिले में एक मनोरंजक बात कही है---काम्भोज एवं सुराष्ट्र में क्षत्रियों एवं अन्य लोगों की श्रेणियाँ 'वार्ता-शस्त्रोपजीवी' हैं (अर्थात कृषि, व्यापार आदि करने वाले एवं युद्ध में लड़ने की वत्ति (पेशा) करने वाले हैं), किन्तु लिच्छिविकों, वृजिकों, मल्लकों, मद्रकों, कुकुरों, कुरुओं एवं पांचालों के संघ 'राजशब्दोपजीवी' हैं (अर्थात् वे कृषक एवं सैनिक नहीं हैं, प्रत्युत केवल सामन्त या प्रमुख लोग हैं)। वार्ता-शस्त्रोपजीवी लोग कृषि एवं युद्ध दोनों करते थे, अर्थात् थे तो वे कृषक किन्तु समय पड़ने पर अपने राष्ट्र के रक्षार्थ सदैव उद्यत रहते थे। कौटिल्य बिना किसी विकल्प के कपटाचरण द्वारा संघों में कलह उत्पन्न करने की सम्मति सम्राट को देते हैं। सम्राट् चाहे तो संघों के सदस्यों, नेता या संघ-मुख्य में फूट के बीज बो सकता है। कौटिल्य (८३) ने लिखा है कि संघों के लोगों में जुआ खेलने का अभ्यास होता है, अतः उनमें कलह किसी भी क्षण उत्पन्न किया जा सकता है तथा संघका नाश हो सकता है । ईसा से ५००-६०० वर्षों के उपरान्त गण-राज्य कम होते चले गये और क्रमशः उनका अन्त हो गया। गणराज्यों के विषय में हमें जो जानकारी है वह बौद्ध ग्रन्थों, यूनानी कथाओं (मेगस्थनीज की इण्डिका के स्फुट उद्धरण, जो अन्य यूनानी इतिहासकारों एवं पर्यटकों के ग्रन्थों एवं भ्रमण-वृत्तान्तों में पाये जाते हैं), सिक्कों एवं शिलालेखों पर आधारित है। रुद्रदामा (१५० ई० वाले जूनागढ़ के अभिलेख) ने सगर्व घोषित किया है कि उसने वीर यौधेयों को परास्त कर दिया । समुद्रगुप्त ने चौथी शताब्दी के उत्तरार्ध में यौधेयों, मालवों, आर्जनायनों आदि का नाश किया। गुप्ताभिलेखों (संख्या ५८, प० २५१) से पता चलता है कि यौधेयगण ने महाराज सेनापति को अपना नेता बनाया था। बृहत्संहिता ने कतिपय स्थलों पर (४।२५, ५४०, ६७,७५; १४।२५ एवं २८; १६।२१, १७॥ १६) यौधयों एवं आर्जुनायनों की ओर संकेत किया है और यौधेय-नप' के बारे में उल्लेख किया है (६११) । युनानी लेखकों ने क्षुद्रकों, मालवों, शिबियों, अम्बष्ठों आदि का उल्लेख किया है, जो गण-राज्य थे। बौद्ध ग्रन्थों में लगभग ११ गणराज्यों के नाम उनकी राजधानियों के साथ मिलते हैं, यथा--शाक्य (कपिलवस्तु), मल्ल (कुसीनारा एवं पावा), विदेह (मिथिला), लिच्छिवि (वैसाली) आदि (देखिए डा० जायसवाल कृत हिन्दू पालिटी, भाग १, अध्याय ८, पृ० ६३-७६; राइस डेविड्स कृत बुद्धिस्ट इण्डिया, पृ० १६) । राइस डेविड्स ने निष्कर्ष निकाला है-शाक्यों के शासन-सम्बन्धी एवं न्याय-सम्बन्धी कार्य कपिलवस्तु के संथागार में निश्चित होते थे। एक प्रमुख का चुनाव (कैसे और कितने दिनों के लिए, यह नहीं ज्ञात है) होता था, जो बैठकों की अध्यक्षता करता था और राज्य करता था। उसकी उपाधि थी राजा। एक बार गौतम बुद्ध के चचेरे भाई भद्दिय भी राजा बनाये गये थे और उनके पिता शद्धोदन भी राजा की पदवी से विभूषित थे। राइस डेविड्स (पृ. २६) ने लिखा है कि वज्जियों में आठ माण्डलिक कुल थे, जिनमें लिच्छिवियों एवं विदेहों को अधिक महत्ता प्राप्त थी। डा० जायसवाल का यह सिद्धान्त कि गौतम बुद्ध ने गणराज्यों की शासन-विधि को बौद्ध संघ की व्यवस्था के लिए अपना लिया, भ्रामक है। डा० डी०आर० भण्डारकर की सहमति भी उसी प्रकार निर्मूल है। बात यह है कि ऐसी उक्ति के लिए कोई स्पष्ट प्रमाण नहीं मिलता । बुद्ध ने अजातशत्रु से कहा था कि जब तक वज्जि लोग सात शर्तों का पालन करेंगे उनका नाश कठिन है। इस कथन के आधार पर ही यह सिद्धान्त निकाल लेना कि बौद्ध संघ के नियम वज्जि-संघ के नियमों पर आधारित हैं, बिना मूल की परिकल्पना मात्र है। अस्तु; वे सात शतें क्या थीं? ये शर्ते महापरिनिब्बाण-सुत्त (अध्याय १) में लिखित हैं--(१) बार-बार जन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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