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________________ राजा की सुरक्षा ६१३ स्पष्ट है कि प्राचीन राजनीतिज्ञों ने राजकुमारों से बचने के लिए राजा को कई आवश्यक मार्ग बता दिये थे, जिनमें कौटिल्य वाला मार्ग अपेक्षाकृत युक्तिसंगत एवं सम्भव प्रतीत होता है । मत्स्यपुराण (२२०वा अध्याय) ने भी राजकमारों के प्रशिक्षण, अनुशासन तथा उत्तरदायित्व की बात चलायी है और कहा है कि बरे राजकमारों को सुरक्षित स्थान में उनकी स्थिति के अनुसार सुख एवं आराम की व्यवस्था करके बन्दी रखना चाहिए।१७ । कौटिल्य (१।२०) ने अग्नि एवं विष के विषय में कई व्यावहारिक संकेत दिये हैं जिस घर में जीवन्ती, श्वेता एवं अन्य उपयोगी पौधे होते हैं, वहाँ विषले सर्प नहीं आते, बिल्लियाँ, मोर, नेवले तथा चितकबरे हरिण साँप कोखा डालते हैं, तोता, मैना आदि पक्षी विषले साँपों को देखकर चीखने लगते हैं, क्रोंच (सारस) विष की सन्निधि में संज्ञाशून्य हो जाते हैं, जीवंजीव पक्षी रुक जाता है, कोकिल का बच्चा मर जाता है, चकोर की आँखें लाल हो जाती हैं। इस विषय में देखिए कामन्दक (७१०-१३), मत्स्यपुराण (२१६।१७-२२), यशस्तिलक (३,५११-५१२) तथा शक्र० (१।३२६-३२८)। कौटिल्य (१।२१), कामन्दक (७.१५-२६), मत्स्य० (२१६१६-३२) का कहना है कि भोजन का कुछ अंश अग्नि में छोड़ना चाहिए या पक्षियों को देना चाहिए, जिससे यदि विष हो तो उसका प्रभाव जाना जा सके। पाचक एवं वैद्य को, जो भोजन में विषमोचक पदार्थ डालते थे, सर्वप्रथम उसे चखना पड़ता था। राजा को अन्तःपुर में बहत सावधानी बरतनी पड़ती थी। इसी प्रकार भेट लेते समय, गाड़ी में बैठे हुए, घोडे पर चढेहए या नाव से यात्रा करते समय या उत्सवों में सम्मिलित होते समय सदा सावधान रहना चाहिए, ऐसा कौटिल्य (१।२०-२१), कामन्दक (७।२८-४७) ने कहा है। कौटिल्य (१।२०) एवं कामन्दक (७।४४ एवं ५०) ने राजा को चेतावनी दी है कि वह स्त्रियों का विश्वास न करे, यहाँ तक कि रानी का भी विश्वास न करे, जब रानी की जाँच ८० वर्षीय पुरुषों द्वारा या ५० वर्षीय स्त्रियों द्वारा हो जाय और यह ज्ञात हो जाय कि रानी सुरक्षित एवं शुद्ध है, तो वह उसके पास जाय । कौटिल्य (१।२०) एवं कामन्दक (७५१३५२) ने ऐसे सात राजाओं के दृष्टान्त दिये हैं, जो रानी की दुरभिसंधि या शत्रुओं के शिकार हुए; भद्रसेन अपने भाई द्वारा, जो उसकी रानी के कक्ष में छिपा पड़ा था, मारा गया (वास्तव में राजा के भाई एवं उसकी रानी में प्रेम-भाव चल रहा था); राजा करूप अपने पुत्र द्वारा मारा गया, जो ऐसी रानी के शयन-कक्ष में छिपा था जो राजा से अपने पुत्र के उत्तराधिकार के विषय में रुष्ट थी; आदि-आदि । इस विषय में विस्तृत विवरण अन्यत्न देखिए, यथा--हर्षचरित ६, बृहत्संहिता (७७।१-२), मेधातिथि (मनु ७।१५३), नीतिवाक्यामृत (राजरक्षासमुद्देश ३५॥३६, पृ० २३१-२३२)। राजा को मन्त्रियों एवं अन्य राज्यकर्मचारियों के धोखे एवं प्रवंचना से बचना चाहिए। कौटिल्य (१।१०) ने लिखा है कि किस प्रकार प्राचीन शास्त्रियों ने मन्त्रियों की सदसद्-भावना की जांच, उनके सामने विविध प्रकार के प्रलोभन आदि, यथा धर्म,धन, काम-प्रेरणाएँ, भय-रखकर करने की सम्मति दी है। कौटिल्य ने अपनी सम्मति दी है कि ऐसा प्रलोभन, जिसका सम्बन्ध या संकेत राजा या रानी से हो, मन्त्रियों के समक्ष नहीं रखना चाहिए। हर्षचरित १७. गुणाधानमशक्यं तु यस्य कतुं स्वभावतः । बन्धनं तस्य कर्तव्यं गुप्तदेशे सुखान्वितम् ॥ अविनीतकुमारं हि कुलमाशु विशीर्यते ।। अधिकारेषु सर्वेषु विनीतं विनियोजयेत् । आदौ स्वल्पे ततः पश्चात्क्रमणाय महत्स्वपि ॥ मत्स्य० (२२०१५-७) । मिलाइए कामन्दक ७।२-६--राजपुत्रा मदोधूता गजा इव निरंकुशाः । भ्रातरं वाभिनिघ्नन्ति पितरं वाभिमानिनः ।"विनयोपग्रहान भृत्यः कुर्वीत नृपतिः सुतान् । अविनीतकुमारं हि कुलमायु विनश्यति ॥ विनीतमौरसं पुत्रं यौवराज्यभिषेचयेत् । दुष्टं गजमिवोदवृत्तं कुर्वीत सुखबन्धनम् ॥ और देखिए अग्निपुराण (२२५॥३-४)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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