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राज्याभिषेक
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आदिपर्व (४४,८५,१०१) । राज्याभिषेक के लिए सम्भारों की सूची प्रतिमा नाटक ( सम्भवतः भास - कृत ) एवं पंचतन्त्र ( ३।७६ ) में भी प्राप्त होती है ।
अग्निपुराण के २१८वें अध्याय में राज्याभिषेक का वर्णन तथा २१६ वें अध्याय में मन्त्रों की सूची है । उसमें निम्नलिखित बातें उल्लेखनीय हैं--स्नान (तिल एवं सरसों से युक्त जल से ), भद्रासन पर बैठना, अभय की घोषणा (रक्षा एवं किसी को न मारने की घोषणा ), बन्दी - गृह से कुछ बन्दियों को छोड़ना, ऐन्द्री शान्ति, राजा द्वारा उपवास, मन्त्रोच्चारण, पर्वत शिखर एवं अन्य स्थलों से लायी गयी मिट्टी से राजा के सिर एवं अन्य अंगों को परिशुद्ध करना, पचगव्य छिड़कना, चारों वर्णों के अमात्यों द्वारा सोने, चाँदी, ताँबे एवं मिट्टी के चार घड़ों के जल से अभिषेक; मधुमिश्रित जल से ऋग्वेदी द्वारा, कुश-मिश्रित जल से छन्दोग ( सामवेदी) द्वारा, यजुर्वेदी एवं अथर्ववेदी ब्राह्मणों द्वारा राजा के सिर एवं कण्ठ को पीले रंग से स्पर्श करते हुए अभिषेक, गान एवं वाद्ययन्त्र बजाना, राजा के समक्ष पंखे एवं चमर पकड़कर खड़े रहने का कृत्य, राजा द्वारा घृत एवं शीशे में छाया दर्शन, विष्णु तथा अन्य देवों की पूजा, व्याघ्रचर्म पर बैठना, जिसके नीचे सिंह, चीते, बिल्ली एवं बैल के चर्म रखे गये हों, पुरोहित द्वारा मधुपर्क देना, राजा के सिर पर एक पट्ट बाँधना एवं उस पर मुकुट रखना, प्रतिहार द्वारा मन्त्रियों को उपस्थित करना, राजा द्वारा पुरोहितों एवं अन्य ब्राह्मणों को भेंट देना, अग्नि- प्रदक्षिणा, गुरुजनों को प्रणाम करना, बैल को स्पर्श करना, बछड़े के साथ गाय की पूजा, अश्वारोहण, हाथी का सम्मान करना तथा उस पर आरोहण, राजधानी में जुलूस निकालना तथा सभी लोगों का सम्मान करना और उनसे बिदा लेना ।
महाभारत में युवराज के रूप में भीम के ( शान्ति० ४१ ) एवं सेनापति के रूप में भीष्म के ( उद्योग० १५५ । २६-३२), द्रोण के (द्रोण० ५।३६-४३ ) एवं स्कन्द के ( शल्य० ४५) अभिषेकों का वर्णन मिलता है ।
राजनीतिप्रकाश ( पृ० ४६ - ८८ ), राजधर्म कौस्तुभ ( पृ० ३१८ - ३६३) एवं नीतिमयूख ( पृ० १-४ ) ने विष्णुधर्मोत्तर (द्वितीय खण्ड २१-२२ अध्याय) का उद्धरण देकर राज्याभिषेक के कृत्यों एवं मन्त्रों का वर्णन किया है। विष्णुधर्मोत्तर (२।१६ ) में सर्वप्रथम इन्द्र के सम्मान में पौरन्दरी या ऐन्द्री शान्ति नामक शान्ति कृत्य का वर्णन पाया जाता है । यहाँ विस्तारपूर्वक वर्णन नहीं किया जा सकता, केवल कुछ बातों की ही चर्चा हो सकेगी। विष्णुधर्मोत्तर पुराण (२।२१ ) में वैदिक मन्त्रों (स्वस्त्ययन, आयुष्य, अभय एवं अपराजित मन्त्रों) एवं अन्य कृत्यों का विशद वर्णन है । विष्णुधर्मोत्तर ( २२२ ) में पौराणिक मन्त्रों (कुल मिलाकर १८२ श्लोकों में ) द्वारा ब्रह्मा, नक्षत्रों (कृत्तिका से भरणी तक ), ग्रहों, १४ मनुओं, ११ रुद्रों, विश्वे देवों, गन्धर्वो, अप्सराओं, दानवों, डाकिनियों, गरुड़ जैसे पक्षियों, नागों, वेदव्यास जैसे मुनियों, पृथु, दिलीप, भरत जैसे सम्राटों, वेदों, विद्याओं, नारियों आदि का राजा को मुकुट पहनाने के लिए आह्वान किया गया है । राजधर्म कौस्तुभ ने राज्याभिषेक का अत्यन्त विशद वर्णन उपस्थित किया है । सर्वप्रथम शान्ति-कृत्य का सम्पादन होता है । दूसरे दिन ईशान (रुद्र) को आहुति दी जाती है। तीसरे दिन ग्रहों, जल के देवताओं, पृथिवी, नारायण, इन्द्र आदि की पूजा तथा नक्षत्रों का आह्वान होता है। चौथे दिन नक्षत्रों के लिए याग (यज्ञ) किया जाता है । पाँचवें दिन रात्रि में निर्ऋति नामक देवी (काला परिधान धारण किये हुए, गदहे पर बैठी मिट्टी की मूर्ति) को आहुति दी जाती है। छठे दिन ऐन्द्री शान्ति का कृत्य होता है । इसके उपरान्त विष्णुधर्मोत्तर में वर्णित कृत्यों का ब्यौरा उपस्थित किया गया है ।
विष्णुधर्मोत्तर (२।१८।२-४ ) ने टिप्पणी की है कि राजा के मर जाने पर उत्तराधिकारी के राज्याभिषेक के लिए किसी 'शुभ घड़ी की बात नहीं जोहनी चाहिए। तिल एवं सरसों से मिले जल से स्नान करा देना चाहिए। उसके नाम से घोषणा निकाल देनी चाहिए कि उसने उत्तराधिकार सँभाल लिया है। भूतपूर्व राजा के आसन के अतिरिक्त अन्य आसन पर बिठला कर पुरोहित एवं ज्योतिषी को चाहिए कि वे उसे जनता को दिखला दें। राजा को प्रजा का
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