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________________ ६१० धर्मशास्त्र का इतिहास भूसी निकाल ली गयी हो ) अन्न, सभी प्रकार के रस, सभी प्रकार के बीज अन्न (जिनकी भूसी न निकाली गयी हो), सोने, चाँदी, तांबे एवं मिट्टी के चार-चार कलश रखे जायें। इन कलशों में किसी गहरे जलाशय से लेकर "नामैनाम” मन्त्र के साथ जल भरा जाय। उन कलशों को वेदिका पर रखकर, प्रत्येक में एक-एक बेल डाल दे । यह सब कार्य पुरोहित ही करे । वह उन कलशों में भूसी वाले तथा छांटे हुए अन्न डाल दे। सोने के कलश में यह सब डालते हुए पुरोहित अभय (अथर्ववेद १६ । १५ ), अपराजित, आयुष्य (अथर्व ० १ ३० ) एवं स्वस्त्ययन (अथर्व ० १ २१, ७८५१, ७६६।१, ७।११७।१) नामक मन्त्रों का उच्चारण करे । इसी प्रकार चांदी के कलशों के साथ संश्राव्य (अथर्व ० १६ | १ ) एवं संवितीय (अथर्व ० २।२६) मन्त्रों का पाठ हो, तांबे के कलशों के साथ भैषज्य (अथर्व ० ७।४५) एवं अंहोमुच् नामक मंत्रों तथा मिट्टी के कलशों के साथ संवेश, मवर्ग्य एवं शंतातीय नामक मन्त्रों तथा अथर्ववेद ( ११।४ ) की 'प्राण' नामक स्तुति का पाठ किया जाय । इसके उपरान्त पुरोहित श्रोत्रियों (विद्वान् ब्राह्मणों) द्वारा पकड़े गये कलशों के जल से राजा का अभिषेक करे | तब वह सिंहासन पर बैठे हुए राजा का अभिषेक अथर्ववेद के इस मन्त्र के साथ करे -- "हे इन्द्र, मेरे इस क्षत्रिय की अभिवृद्धि करो।" इस प्रकार बैठा हुआ राजा भाँति-भाँति के रसों का पान करता है, प्रमुख पुरोहित के सहायक पुरोहितों को एक सहस्र गाय देता है तथा प्रमुख पुरोहित को एक अच्छा गाँव देता है। इस प्रकार वह राजा विपुल यश की प्राप्ति करता है, इस धरा को भोगता है तथा अपने शत्रुओं का नाश करता है ।" सामविधान ब्राह्मण ने राज्याभिषेक का संक्षिप्त वर्णन उपस्थित किया है, जिसे यहाँ देना आवश्यक नहीं जान पड़ता । बौधायनगृह्यसूत्र (१।२३ ) ने राज्याभिषेक का वर्णन उपस्थित किया है, जिसे बालम्भट्टी (याज्ञ० १।३०६ टीका से मिताक्षरा की व्याख्या करते हुए) ने उद्धृत किया है और जिसे यहाँ स्थानाभाव के कारण प्रस्तुत नहीं किया जा रहा है। अथर्ववेद ( १७।१-१०) के कौशिकसूत्र ने युवराज, माण्डलिक, सामन्त एवं सेनापति ( १७।११-३४ में) के अभिषेक का तथा राजा के महाभिषेक का वर्णन उपस्थित किया है । रामायण में राज्याभिषेक के कतिपय संकेत मिलते हैं । युद्धकाण्ड (१३१) में राम के राज्याभिषेक के विषय में विशद विस्तार मिलता है । उसका कुछ स्वरूप यह है - 'राम का क्षौर कर्म किया गया, स्नान के उपरान्त उन्होंने मूल्यवान् परिधान धारण किये सीता का भी यथोचित अलंकरण किया गया । राम रथ पर बैठकर राजधानी में घूमे । भरत के हाथों में लगाम थी, शत्रुधन ने छत उठा रखा था और लक्ष्मण के हाथ में चमर था । इसके उपरान्त राम हाथी पर बैठे । दुन्दुभि बजी एवं शंखध्वनि की गयी। शुभ लक्षणों के रूप में सोना, गौएँ, कुमारियाँ, ब्राह्मण, मिठाई लिये हुए पुरुष आदि राम के सामने से गये या ले जाये गये । नागरिकों के हाथ में पताकाएँ थीं, प्रत्येक घर पर झण्डे फहरा रहे थे । जाम्बवान्, हनुमान् और अन्य दो व्यक्ति चार कलशों में समुद्र जल ले आये। इसी प्रकार पाँच सौ नदियों का जल कलशों में लाया गया । कुलपुरोहित एवं वृद्ध मुनि वसिष्ठ ने राम और सीता को रत्नजटित सिंहासन पर बैठाया । सर्वप्रथम वसिष्ठ एवं अन्य मुनियों ने राम पर पवित्र एवं सुगन्धित जल छिड़का। इसके उपरान्त वही कार्य कुमारियों, मन्त्रियों, सिपाहियों, वणिक-निगमों के लोगों ने किया। वसिष्ठ ने राम के सिर पर अति प्राचीन मुकुट रखा । तब गान एव नृत्य के क्रम चले। राम ने पुरोहितों, अपने मित्रों एवं सहायकों, यथा सुग्रीव, अंगद, विभीषण आदि को भेट दी । सीता ने हनुमान को कण्ठहार दिया।' अयोध्याकाण्ड (१५) में हमें राम के युवराज के रूप में अभिषिक्त होने की तैयारी का विवरण मिलता है । कालिदास ( रघुवंश २७।१०) ने कुश के पुत्र के राज्याभिषेक का उल्लेख किया है जिसमें स्वर्णकलशों में भरकर पवित्र जलों से अभिषेक किया गया था। महाभारत में भी संकेत एवं वर्णन मिलते हैं, देखिए सभापर्व (३३, जहाँ शूद्रों के साथ अन्य जातियों के लोग राजसूय में बुलाये गये थे ) जिसमें युधिष्ठिर के राज्याभिषेक का वर्णन है । शान्तिपर्व (४०१६ - १३ ) में राज्याभिषेक के सम्भारों (सामग्रियों) का वर्णन मिलता है। संकेतों के लिए देखिए ' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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