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________________ राजपद का विकास ६०५ एवं ८ ।१६।१ ) की उपाधि के रूप में प्रयुक्त हुआ है । साम्राज्य शब्द भी उल्लिखित है (ऋ० १।२५।१०) । ऋग्वेद (८|३७|३) में इन्द्र को एकराट् भी कहा गया है । लगता है, ऋग्वेद-काल में एकछत्र राजा की कल्पना हो चुकी थी, जिसके अन्तर्गत अनेक राजा थे। हो सकता है कि ऋग्वेद (७।३७।३) में 'एकराट्' शब्द केवल एक रूपक के रूप में ही प्रयुक्त हुआ हो। ऋग्वेद ( ७१६३।७-८ ) में आया है कि दस राजा, जब कि उन लोगों ने एक मण्डल स्थापित कर लिया था, सुदास को पराजित नहीं कर सके । १ ३ यहाँ यह भी आया है कि दस राजाओं के युद्ध में ( दाशराज्ञे ) इन्द्र एवं वरुण ने दस राजाओं से घिरे सुदास की सहायता की। बहुत-से स्थलों पर अनेक राजाओं के नाम आये हैं (ऋ० १।५३८ एवं १०, १।५४।६, १।१००/१७, ७ ३३२, ८।३।१२, ८।४।२) । इन राजाओं के अतिरिक्त बहुत-से गणों या गणराजों के नाम आये हैं, यथा - अनु, द्रुह्यु, तुर्वशु, पुरु, यदु (ऋ०१।१०८८, ७।१८।६ एवं ८।६।४६) । ये सभी शब्द बहुवचन तथा कभी-कभी एकवचन में प्रयुक्त हुए हैं। एकवचन वाले शब्द 'राजा' या 'प्रमुख' के अर्थ में ही आये हैं (देखिए ऋ० ८।४।७, ८।१०।५, ४३०।१७ ) । अथर्ववेद ( ३/४/१, ६/६८1१ ) में एकराट् एवं अधिराज शब्द अपने उचित अर्थ में ही प्रयुक्त हुए हैं । अथर्ववेद ( ४६ ४, ३१४१३) में शक्तिशाली राजा के लिए उग्र उपाधि पायी गयी है (तुम रोग का पीछा उसी प्रकार करो जिस प्रकार उम्र या शक्तिशाली राजा अनेक राजाओं को दबा बैठता है) । तैत्तिरीय संहिता ( 91519012) में आया है कि मनुष्य राजा द्वारा पालित या नियन्त्रित होते हैं ( तस्माद् राज्ञा मनुष्या विधृताः ) । इस संहिता में प्रयुक्त 'आधिपत्य' एवं 'जानराज्य' शब्दों का पारस्परिक सम्बन्ध नहीं ज्ञात हो पाता । ये शब्द वाजसनेयी संहिता ( ६ । ४० एवं १०।१८) एवं काठक० ( १५/५ ) में भी उल्लिखित हैं । ऐतरेय ब्राह्मण (३६।१) में १ ४ ऐसा आया है- --" जो कोई अन्य राजाओं पर प्रभुत्व जमाना चाहता है, सम्राट् पद प्राप्त करना चाहता है और अभिलाषा करता है कि वह सबसे बड़ा शासक हो, जो समुद्र पर्यन्त पृथिवी का एकराट् होना चाहता है, उसे शपथ लेने के उपरान्त ऐन्द्र-महाभिषेक से अभिषिक्त होना चाहिए।" इस मन्त्र में लोगों पर आधिपत्य होने के अर्थ में प्रयुक्त 'भौज्य','स्वा राज्य', 'वैराज्य', ‘पारमेष्ठ्य' शब्दों का अर्थ स्पष्ट नहीं है । सम्भवतः ये शब्द प्रभुत्व प्रदर्शित करने के हेतु अतिशयोक्तिपूर्ण एवं भारीभरकम शब्द प्रयोग मात्र हों। वैदिक उक्तियों के अनुसार ब्राह्मण भी यदि वह 'स्वाराज्य' अर्थात् 'प्रभुत्व' प्राप्त करना चाहता है तो, वाजपेय का सम्पादन कर सकता है । 'परमेष्ठी' का अर्थ है 'प्रजापति', अतः 'पारमेष्ठ्य' का तात्पर्य हुआ देवी शक्ति । शतपथ ब्राह्मण ( ५।१।१।१३ ) में 'राजा' एवं 'सम्राट्' का अन्तर स्पष्ट हो गया है; "राजसूय के सम्पादन से राजा होता है और वाजपेय के सम्पादन से सम्राट्; राजा का पद निम्न एवं सम्राट का पद उच्च है ।" यही बात अन्य स्थल पर भी कही गयी है (शतपथ ६ | ३ |४| ८ ) । शतपथ ब्राह्मण में पुनः आया है - "वृत्त को मारने के पूर्व इन्द्र केवल इन्द्र था, यह सच है, किन्तु वृत्त को मार डालने के उपरान्त वह महेन्द्र हो गया; राजा भी विजय के उपरान्त महाराज हो जाता है (१|६|४ | २१) । इन विवेचनों से स्पष्ट है कि सार्वभौम शासक की कल्पना का उद्भव वैदिक काल में हो गया था, किन्तु उसका विकसित रूप एवं पूर्ण व्यवस्था ऐतरेय एवं शतपथ ब्राह्मण-ग्रन्थों के प्रणयन के पूर्व हो चुकी थी । १३, दश राजानः समिता अयज्ववः सुदासमिन्द्रावरुणा न युयुधुः । दाशराज्ञ े परियत्ताय विश्वतः सुदास इन्द्रावरुणावशिक्षतम् ॥ ऋ० ७।८३।७-८ । १४. स य इच्छेदेवं वित्क्षत्रियमयं सर्वांल्लोकान्विन्देतायं सर्वेषां राज्ञां श्रेष्ठ्यमतिष्ठां परमतां गच्छेत साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ठ्यं राज्यं माहाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात्सार्वभौमः सार्वायुष आन्तादापरार्धात् पृथिव्यै समुद्रपर्यन्तामा एकराडिति तमेतेनंन्द्र ेण महाभिषेकेण क्षत्रियं शापयित्वाभिषिन्चेत् । ऐ० ब्रा० ३६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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