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धर्मशास्त्र का इतिहास
देवता को भेंट आदि देने का वचन ), फलित ज्योति यों द्वारा भविष्यवाणियाँ - कदाचित ही ये सब सत्य के द्योतक हैं । हम लोगों को अपनी इच्छापूर्ति के लिए अथवा अच्छे फलों की प्राप्ति के लिए इन सब बातों में विश्वास नहीं करना चाहिये । इसी प्रकार कुछ ऐसे भी कर्म हैं जिन्हें हमें कलियुग में छोड़ देना चाहिये, क्योंकि वे मनुष्यों द्वारा अधर्म कार्यों के अन्तर्गत सम्मिलित कर दिये गये हैं । २०
प्राचीन स्मृतियों ने कलिवर्ज्य का वर्णन नहीं किया है, और न विश्वरूप, मेधातिथि एवं विज्ञानेश्वर की टीकाओं ने कवियों की लम्बी सूचियाँ ही दी हैं । सर्वप्रथम ये सूचियाँ स्मृत्यर्थसार, स्मृतिचन्द्रिका एवं हेमाद्रि द्वारा ही प्रकाशित की गयीं (और ये ग्रंथ अथवा लेखक १२वीं - १३वीं शताब्दी के है ) । अतः अत्यन्त सम्भव अनुमान यही है कि कलिवज्यों की ये सूचियाँ सर्वप्रथम १०वीं या ११वीं शताब्दी में उपस्थित की गयीं ।
२०. देखिये स्मृतिकौस्तुभ ( पृ० ४७७ ) ।
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