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________________ ६१२ धर्मशास्त्र का इतिहास कहना अत्यंत अनुचित होगा कि कार्तिक शुक्ल द्वादशी के दिन शरदन्त था। असफल होने पर कृष्ण पांडवों के पास लौट आये और दुर्योधन से जो कुछ बातचीत हुई थी, उसकी चर्चा की (इसमें कार्तिक शुक्ल द्वादशी के बाद कुछ दिन अवश्य लगे होंगे) कृष्ण ने जो बातें कहीं उनमें दो महत्वपूर्ण हैं ; पहली यह कि दुर्योधन ने अपने मित्रों से कहा है-- "युद्ध के लिए कुरुक्षेत्र को चलो; आज चन्द्र पुष्य नक्षत्र में है (उद्योगपर्व १५०।३)।" यदि कृष्ण अपने शान्तिकार्य के लिए उस समय तक चले जब कि चंद्र रेवती नक्षत्र में था(कार्तिक शुक्ल पक्ष के १२वें दिन) तो दुर्योधन के ये शब्द उनकी उपस्थिति में कहे गये या कार्तिक कृष्ण पंचमी के दिन (या मार्गशीर्ष कृष्ण पंचमी के दिन, यदि मास पूणिमान्त था) कहे गये । कृष्ण की दूसरी महत्त्वपूर्ण बात वह है जो उन्होंने कर्ण से, जिसे उन्होंने अपनी ओर मिलाना चाहा, कही--"यह वह सौम्य मास है जब ईंधन एवं चारा सरलता से प्राप्त होता है,यह वह समय है जो न अधिक गर्म है न ठंडा : आज से सातवें दिन अमावस्या होगी, उस दिन संग्राम किया जा सकता है, उस दिन इन्द्र देवता का रक्षण प्राप्त होता है।" अतः उनकी यह बात मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी या उसके आस-पास हुई होगी, किन्तु उस मास का नाम क्या है ? यदि गणना पूर्णिमान्त से होती थी तो वह मास मार्गशीर्ष था, यदि गणना अमान्त थी तो कार्तिक । और है, इन्द्र ज्येष्ठा नक्षत्र का देवता है और अमावस्या में ज्येष्ठा नक्षत्र पाया जाना चाहिये (उद्योग० १४२।१६१८)। आजकल यह कार्तिक अमावस्या में सम्भव है, मार्गशीर्ष अमावस्या को आजकल ज्येष्ठा नक्षत्र नहीं जाता। वि कथन ( उद्योग० १४२।१६-१८); शल्यपर्व (३५४१०) के कथन का विरोधी है, क्योंकि वहाँ चन्द्र पुष्य में कहा गया है। यदि कर्ण से कृष्ण ने उस दिन बात की जब कि चंद्र अमावस्या वाले ज्येष्ठा नक्षत्र में था, तो शल्यपर्व की उक्ति से प्रकट होता है कि युद्ध का आरम्भ कार्तिक अमावस्या के १६वें या १७वें दिन से होगा, किन्तु यह बात कहीं अन्य स्थान पर नहीं पायी जाती । इसी प्रकार के बहुत-से ज्योतिष-संबंधी आँकड़े उपस्थित किये जा सकते हैं, जिनके आधार पर युद्ध-समय संबंधी व्याख्याएँ उपस्थित की जाती हैं। महाभारत युद्ध के आरम्भ की तिथि एवं नक्षत्र के विषय में गहरा मतभेद है, हम उसके विस्तार में यहाँ नहीं पडेंगे, क्योंकि स्वयं उस महाकाव्य में इसके विषय में कोई स्पष्ट उल्लेख नहीं है। विद्वानों ने श्लोकों के शब्दों को इधरउधर परिवर्तित कर बहुत-सी अटकल-पच्चू बातें की हैं। हम जानते हैं कि महाभारत के पीछे शताब्दियों की परम्पराएँ हैं, उनमें किसी प्रकार का परिवर्तन कर देना श्रेयस्कर नहीं है। हमें उसके काल-निर्णय के विषय में अन्य साक्ष्यों का सहारा लेना होगा, किन्तु स्थानाभाव से हम उनके विवेचन में यहाँ नहीं पड़ेंगे। कलियुग का आरम्भ आज (सन् १६६०) से केवल ५०६१ वर्ष पहले हुआ और यह युग ४,३२,००० वर्षों तक चलता रहेगा (जैसा कि पुराणों का कथन है),तो यह कहना उचित ही है कि हम लोग अभी कलियुग की देहली पर खड़े हैं और यह हमारी कल्पना के बाहर की बात है कि आज से लगभग ४,२७,००० वर्षों के उपरान्त कलियुग के अन्त में कौन-सी घटनाएँ या दुर्घटनाएँ घटित होंगी। पुराणों ने भविष्यवाणी की है कि इस महान् युग के अन्त में सम्भल ग्राम में भगवान् विष्णु कल्कि के रूप में प्रादुर्भूत होंगे और म्लेम्छों,शूद्र-राजाओं, पाखण्डियों आदि का नाश करेंगे और धर्म की स्थापना करेंगे जिससे कृतयुग का पुनरारम्भ होगा। यहाँ पर भी अन्य बातों की भांति पौराणिक कथाओं में मतभेद पाया जाता है । 'वायुपुराण' (५८।७५-६०)एवं 'मत्स्यपुराण' (१४४।५०-६४) का कथन है कि प्रमति मार्गव विष्णु के अवतार होंगे तथा म्लेच्छों, पाखण्डियों एवं शुद्र राजाओं का नाश करेंगे, किन्तु वायप० (६८।१०४-११० एवं ६६। ३६-३६७). वनपर्व (१६०६३-६७) एवं भागवत (१२।२।१६-२३) का कथन है कि कल्कि म्लेच्छों को जीतेंगे और धर्मविजयी के समान चक्रवर्ती राजा होंगे और इस प्रकार कृत युग का आरम्भ करेंगे । कहीं-कहीं कल्की नाम आया है तो कहीं-कहीं उन्हें ब्राह्मण-विष्ण का पत्र कहा गया है (विष्णयश को सम्भल ग्राम का मखिया कहा गया है। कहींकहीं तो ऐसा कहा गया है कि इनका प्रादुर्भाव हो चुका है और कहीं-कहीं उन्हें अभी आगे प्रादुर्भूत होनेवाला माना गया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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