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धर्मशास्त्र का इतिहास
है कि वार्हद्रथ वंश १००० वर्ष तक राज्य करेगा, उसके उपरान्त ५ वीतिहोत्र राजा (प्रद्योत आदि) १३८ वर्ष तक राज्य करेंगे और इसके उपरान्त शिशुनाक (भागवत एवं ब्रह्मांड पुराण ३७४।१३४-१३५ में 'शिशुनाग' शब्द आया है) वंश ३६२ वर्ष तक राज्य करेगा (स्पष्टतः १५०० वर्ष)। ये अवधियाँ 'विष्णुपुराण' (४।२३ एवं २४) एवं ब्रह्मांडपुराण (३।७४।१२१-१३५) द्वारा भी उपस्थित की गयी हैं। श्रीधर ने भागवत (१२।२।२६) की टीका में कहा है कि परीक्षित एवं नन्द (महापद्म) के बीच १४६८ वर्ष की अवधि है (जैसा कि भागवत ने कहा है) तथा शिशुनाग वंश ने ३६० वर्षों तक राज्य किया। अतः वायुपुराण'या 'मत्स्यपुराण'या भागवतपुराण' में शुद्ध पाठ 'पंचशतोत्तरम्' ठीक है न कि 'पंचाशदुतरम्' या 'पंचदशोत्तरम्'। परीक्षित और नन्द के बीच में १५०० वर्षों की अवधि को मानते हुए तथा आधुनिक विद्वानों के मतानुसार यह मानते हुए कि नन्द राजा ईसा पूर्व चौथी शताब्दी में हुए, यह कहा जा सकता है कि अर्जुन के पौत्र परीक्षित, महाभारत युद्ध एवं कलियुग का आरम्भ तीनों ईसा पूर्व १६वीं शताब्दी में रखे जा सकते हैं। अतः उपर्युक्त विवेचनों के उपरान्त महाभारत की तीन विभिन्न तिथियां हुईं; ३१०१ (ई० पू०), २४४८ (ई० पू०) एवं लगभग १६०० (ई० पू०) । ये तीनों तिथियाँ ईसा के उपरान्त ५वीं शताब्दी से लेकर प्राप्त साक्ष्यों द्वारा प्रमाणित हैं। कोई ऐसा नहीं कह सकता कि इन तीनों में कोई एक परम्परा ही युक्तिसंगत है। केवल यही कहा जा सकता है कि किसी को एक परम्परा अँचती है तो दूसरे को दूसरी या तीसरी। ईसापूर्व १६वीं शताब्दी वाली तिथि पुराणों द्वारा कतिपय राजाओं के नामों और उनके राज्यकालों के दृष्टांतों के साथ विस्तारपूर्वक स्थापित है, अत: मेरी समझ में, महाभारत युद्ध के लिए यह तिथि अन्य दोनों की अपेक्षाअधिक ठीक अँचती है। कल्पनात्मक अथवा खींचातानी से युक्त व्याख्याओं तथा संदिग्ध वचनों के आधार पर कही गयी बातों की अपेक्षा यह कहना उत्तम है कि हम महाभारत युद्ध के लिए कोई निश्चित तिथि निकालने में असमर्थ हैं। हम महत्त्वपूर्ण पुराणों की उत्तम पाण्डुलिपियों की आलोचनात्मक व्याख्याएँ करके उनके सुन्दर संस्करण उपस्थित तो कर सकते हैं, किन्तु उनके विद्वान् पाठकों के (निष्कर्षों द्वारा स्थापित) विभिन्न मतों में एकता स्थापित करने में समर्थ नहीं हो सकते, क्योंकि विद्वान् अपनी-अपनी विभिन्न परीक्षण-प्रणालियाँ उपस्थित करने में दक्षता प्रकट करने लगते हैं (मुण्डे-मुण्डे मतिभिन्ना) । भारतीयता-शास्त्र के अनन्य विद्वान् श्री पाजिटर ने अपनी प्रख्यात पुस्तक 'दि पुराण टेक्स्ट्स ऑव दि डायनेस्टीज ऑव दि कलि एज' द्वारा इस विषय में एक बहत विद्वत्तापूर्ण श्लाध्य कार्य किया है।
महाभारत युद्ध की तिथि से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धान्तों की व्याख्या जो कतिपय विद्वानों द्वारा उपस्थापित की गयी है, हम स्थानाभाव से उसे यहाँ नहीं दे रहे हैं। किन्तु दो एक महत्त्वपूर्ण सिद्धान्त यहाँ दिये जा रहे हैं।
अपनी पुस्तक 'दि क्रोनोलौजी ऑव ऐंश्येण्ट इण्डिया' (अ० २, पृ.० ५१-१०४) में श्री वेलण्डि गोपाल एयर ने महाभारत द्वारा उपस्थापित ज्योतिष-आँकड़ों की जाँच की है और बृहत्संहिता के शब्दों की भ्रामक व्याख्या करके तथा कलियुग के आरम्भ के सम्बन्ध में मलावार के कोल्लम युग को ईसा पूर्व ११७७ ई० का ठहराकर यह निष्कर्ष निकाला है कि महाभारत युद्ध ई० पू० ११६४ ई० के अन्तिम भाग में हुआ था। यह सिद्धान्त, स्पष्टतः, उपर्युक्त तीन सिद्धान्तों के विरोध में उठ खड़ा होता है। हमने देख लिया है कि उपर्युक्त तीनों सिद्धान्त प्राचीन एवं प्रामाणिक साक्ष्यों के तुलनात्मक अध्ययन पर आधारित हैं।
___ इस विवादग्रस्त समस्या पर मेगस्थनीज की 'इण्डिका' के कतिपय अंशों पर आधारित सूचना कुछ प्रकाश डालती है । एक स्थान (पृ० ११५, मेगस्थनीज आदि द्वारा वर्णित प्राचीन भारत) पर आया है--"उससे (बेक्कस से) लेकर अलेक्जेन्डर महान तक ६४५१ वर्ष होते हैं जिनमें ३ अतिरिक्त मास जोड़ दिये गये हैं, गणना उन १५३ राजाओं के राज्यकालों को लेकर की गयी है जिन्होंने इस बीच की अवधि में राज्य किया।" प्लीनी (लीनी) के उद्धरण में राजाओं की संख्या १५४ है। इसके विरोध में एरियन (दूसरी शताब्दी) की 'इण्डिका' की स्थापना है--"डायोनिसस
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