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________________ भारतयुद्ध, कलि-प्रारम्भ पर पुराणों, मेंगस्थनीज, पाजिटर आदि के विचार ६८६ से सैंड्राकोट्टस (चन्द्रगुप्त ) तक भारतीयों ने १५३ राजाओं के नाम परिगणित किये और ६०४२ वर्षों की अवधि दी, किन्तु इन सबों में एक गणतंत्र राज्य तीन बार स्थापित हुआ.........दूसरा गणतंत्र ३०० वर्षों और एक अन्य दूसरा १२० वर्षों तक चलता रहा। भारतीयों का यह भी कहना है कि डायोनिसस हेराक्लीज से १५ पीढ़ियों पहले हुआ था और उसके अतिरिक्त किसी अन्य ने भारत पर आक्रमण नहीं किया।" यह उक्ति बड़ी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि यह सिद्ध करती है कि ई० पू० चौथी शताब्दी में कोई एक बहुत शताब्दियों से चलती आयी किंवदन्ती प्रसिद्ध थी जो भारतीय सभ्यता एवं सुव्यवस्थित शासन के इतिहास को ई० पू० चौथी शताब्दी से पहले ६ हजार वर्ष तक ले जाती थी। किन्तु मेगस्थनीज ने जो लिखा है, उस के विषय में संदेह उत्पन्न हो जाता है और वर्षों तथा राजाओं की संख्या के विषय में कुछ भिन्नता उत्पन्न हो जाती है । इसके अतिरिक्त महाभारत युद्ध की तिथि एवं कलियुग के आरम्भ के विषय में कोई सीधा संबंध नहीं स्थापित किया जा सकता, जब तक कि 'हेराक्लीज' को हम कुछ विद्वानों के मतानुसार 'हरि-कृष्ण न मान लें।' ४ हेराक्लीज के विषय की चर्चा कृष्ण के जीवन से सम्बन्धित किंवदन्तियों से कुछ मेल खाती है (मैक्रिण्डल का ग्रंथ, पृ०२०१-२०३)--"वह सौरासेन्वाय (शूरसेन) द्वारा सम्मानित हुआ था, सौरासेन्वाय एक भारतीय जाति है और उसके अधिकार में मे-थोरा (मथुरा) और क्लेयीसोबोरा नामक दो विशाल नगर हैं, हेराक्लीज की बहुत पलियाँ थीं।" किन्तु हेराक्लीज के जीवन के कुछ वृत्तान्त मेल नहीं भी खाते,यथा "उसकी पण्डया नामक एक पुत्री थी जिसकी सात वर्ष की अवस्था में हेराक्लीज ने एक शक्तिशाली जाति उत्पन्न करने के लिए उससे शरीर-सम्बन्ध स्थापित किया।" यहाँ पर पण्डया अथवा 'पाण्डे अ' शब्द को लेकर पाण्डवों एवं कुन्ती या दक्षिण के पाण्ड्य राज्य से सम्बन्धित कुछ सन्देह उत्पन्न हो सकता है जो कुछ सीमा तक जंच भी सकता है । इसके अतिरिक्त १५३ या १५४ राजाओं के लिए ६,००० वर्ष एक बहुत लम्बी अवधि है। ऐसा नहीं कहा जा सकता कि ये ६,००० वर्ष (जिससे प्रत्येक के राज्य-काल के लिए औसत ४० वर्ष पड़ते हैं) राजाओं के कालों की ओर संकेत करते हैं, क्योंकि हमें ज्ञात है कि वायु एवं मत्स्यपुराणों ने राजवंशों की अवधियाँ दी है, राजाओं के राज्यकाल और प्रत्येक वंश के राजाओं के नामादि भी दिये हैं। यह बात ठीक है कि कतिपय राजाओं के नामों, उनकी संख्या एवं राज्यकालों की अवधि के विषय में पुराणों में कहीं-कहीं अन्तर पड़ गया है। ऐसा लगता है कि वे पुराण जिनमें ऐतिहासिक विवरण उपस्थित किया गया है, कई बार संशोधित हुए हैं, यथा 'वायुपुराण' (६६३८३) ने गुप्त राजाओं का उल्लेख किया है किन्तु 'मत्स्यपुराण' इस विषय में मौन है। प्रस्तुत पुराणों के विषय में ऐसा नहीं कहा जा सकता कि उन्होंने ऐतिहासिक वंशों के विषय में कल्पनात्मक बातें भर दी है, क्योंकि उनके सामने पहले की प्राचीन किंवदन्तियाँ एवं लेख आदि अवश्य रहे होंगे। उन्होंने नये राजाओं के नामों एवं उनके राज्य-कालों की अवधियों का आविष्कार नहीं किया है। उन्होंने, इसमें सन्देह नहीं कि एक-दूसरे में पायी जानेवाली विभिन्नताओं को दूर नहीं किया और जो कुछ किंवदन्तियों से अथवा लेखों से उन्हें प्राप्त हुआ, लिखित कर दिया। आज हम अभाग्ववश प्राचीन काल के संयमित इतिहास के विषय में पुराणों को आधार नहीं मान सकते, किन्तु पुराण हमारे ध्यान को हठात अपनी ओर खींचते हैं और हमारा यह कर्तव्य हो जाता है कि हम उनकी यथातथ्य परिचर्या करें। १४. देखिये श्री सी० बी० वैद्य की पुस्तक 'महाभारत, ए क्रिटिसिज्म'(पृ०७५-७६) जहाँ पर उन्होंने ६०४२ अथवा ६४५१ नामक संख्याओं को अवज्ञा करते हुए यह निष्कर्ष निकाला है कि कृष्ण ई०पू० ३१०१ ई० के आसपास अवस्थित थे, क्योंकि हेराक्लोज एवं सेण्डाकोट्टस (चन्द्रगुप्त) के बीच १३८ राजा लगभग २७६० वर्षों तक राज्य करते रहे होंगे (प्रत्येक राज्यकाल के लिए २० वर्षों की औसत अवधि दी गयी है)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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