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________________ स्त्रीधन के उत्तराधिकार का क्रम ६४५ भाइयों) को मिलना चाहिये और उनके अभाव में माता को। कुछ टीकाओं, यथा--सुबोधिनी, दीपकलिका, हरदत्त (गौतम २८।२३) आदि ने व्यवस्था दी है कि शुल्क पहले माता को मिलता है और उसके अभाव में सहोदरों (सगे भाइयों) को मिलना चाहिये ; किन्तु 'दायभाग'(४।३।२८, पृ० ६५),परा० मा०, व्य० प्र०, वि० चि० ने 'मिताक्षरा' का अनुसरण किया है। यह आश्चर्य है कि 'मदनपारिजात' (पृ० ६६८)ने, जिसे सुबोधिनी के लेखक ने अपने आश्रयदाता मदनपाल के नाम से लिखा है, व्यवस्था दी है कि शुल्क सर्वप्रथम भाइयों को मिलता है और उनके अभाव में माता को । क्या सुबोधिनी की मुद्रित प्रति अशुद्ध है या लेखक ने अपना मत परिवर्तित कर दिया है ? कुमारी की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के विषय में मिताक्षरा तथा अन्य लेखकों के मतों में कोई अन्तर नहीं है। 'मिताक्षरा' ने बौधायन का उल्लेख करके कहा है कि कन्या के मृत हो जाने पर सर्वप्रथम सगे भाइयों को उसका धन मिलता है और तब माता और उसके उपरान्त पिता को मिलता है । व्य० प्र० ने जोड़ दिया है कि पिता के अभाव में कन्या का धन निकटतम सपिण्ड को मिलता है । याज्ञ० (२।१४६) का कथन है कि यदि विवाह के लिए प्रतिश्रुत हो जाने पर विवाह के पूर्व कन्या मर जाती है तो होनेवाले वर को शुल्क या अन्य भेटें वापस मिल जाती हैं, किन्तु उसे कन्या के कुल के व्यय एवं अपने व्यय को घटा देने का अधिकार प्राप्त है। कुमारी कन्या के धन एवं शुल्क को छोड़कर अन्य प्रकार के स्त्रीधन के उत्तराधिकार का क्रम 'मिताक्षरा' ने यों दिया है--(१) कुमारी (अविवाहित) कन्या; (२) निर्धन विवाहित पुत्री; (३) धनी विवाहित पुत्री; (४) पुत्री की कन्याएँ; (५) पुत्री का पत्र; (६) सब पुत्र; (७) पौत्र; (८)पति (यदि स्त्री का विवाह अनमोदित चार विवाह-प्रकारों में हुआ हो); (६) सन्निकटता के अनुसार पति के सपिण्ड; पति के सपिण्ड के अभाव में माता, तब पिता और (राजा को मिलने के पूर्व) पिता के सपिण्ड । किन्तु यदि विवाह किसी अननुमोदित विवाह-प्रकार में हुआ है तो सन्तानों के अभाव में स्त्रीधन माता को मिलता है, माता के अभाव में पिता को, पिता के अभाव में उसके निकटतम सपिण्डों को क्रम से मिलता है । पिता के सपिण्डों के अभाव में स्त्री के पति को तथा पति के अभाव में (राजा को मिलने के पूर्व) पति के सपिण्डों को मिलता है। जब विभिन्न पुत्रियों से उत्पन्न पुत्रियों में उत्पन्न पोतियाँ (प्रपौनियाँ) अपनी पितामही की सम्पत्ति सीधे रूप से पाती हैं तो उन्हें समवाय रूप में रिक्थ मिलता है (गौतम २८।१५)। 'मिताक्षरा' (याज्ञ० २।१४५), 'अपरार्क' (पृ० ७२१) आदि ने व्यवस्था दी है (मनु ६१६८ = अनुशासनपर्व ४७।२५ के अनुसार) कि यदि किसी नीच जाति की स्त्री सन्तानहीन मर जाती है तो उसकी उच्चतर जाति वाली सौत की पुत्री को उसका स्त्रीधन मिलता है, उसके अभाव में उसके पुत्र को मिल जाता है। यह विचारणीय है कि स्त्रीधन के उत्तराधिकार के विषय में पुरुष-धन के उत्तराधिकार से सम्बन्धित प्रतिनिधित्व का नियम नहीं लागू होता। जब कोई व्यक्ति अपनी पृथक् सम्पत्ति छोड़कर मर जाता है तो उसके पुत्र एवं पौन (किसी मत पूह का पुत्र) एक साथ उत्तराधिकारी होते हैं। यहाँ पौत्र अपने मृत पिता का प्रतिनिधित्व करता किन्तु जब स्त्रीधन वाली स्त्री मर जाती है, और उसे केवल एक पुत्र एवं एक पौत्र (मृत पुत्र का पुत्र) हो तो पुत्र को सम्पूर्ण स्त्रीधन मिल जाता है और पौत्र को कुछ नहीं मिलता। विभिन्न स्मृति-सम्प्रदायों द्वारा उपस्थापित विभिन्न मतों की व्याख्या करना न तो सम्भव है और न यहाँ आवश्यक ही है। दो-एक प्रमुख बातों के लिए देखिये 'स्मृतिचन्द्रिका' (२,पृ० २८४-२८७), 'विवादचिन्तामणि' (पृ.०१४३), 'व्यवहारमयूख' (पृ० १५७-१६१) । दायभाग सम्प्रदाय में दायभाग एवं श्रीकृष्ण के 'दायक्रमसंग्रह' के मत से शुल्क का उत्तराधिकार-क्रम यों है-(१) सगा भाई (सोदर्य); (२) माता; (३) पिता; (४) पति । यौतक का उत्तराधिकार-क्रम यह है--(१) विवाहित एवं वाग्दत्त पुनियाँ; (२) वाग्दत्त पुत्रियाँ ; (३) विवाहित पुत्रियाँ, जिन्हें पुन हों या पुत्र होनेवाले हों; (४) बन्ध्या विवाहित एवं विधवा पुत्रियाँ, जो समान भाग पाती हैं; (५)पुत्र ; Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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