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धर्मशास्त्र का इतिहास
ने अपने बड़े पूनों में यद् आदि के स्थान पर पूरु को अपना उत्तराधिकारी बनाना चाहा तो ब्राह्मणों एवं नागरिकों ने कहा--"ज्येष्ठ पुत्र के स्थान पर छोटा पुत्र कैसे राज्य कर सकता है?" अर्जुन ने भीमसेन की भर्त्सना की है-- "धर्म का पालन करने वाले अपने बड़े भाई के विरुद्ध कौन जा सकता है ?" (सभापर्व ६८।८) । रामायण (२।३।४०) में आया है कि दशरथ ने राम को अपनी सबसे बड़ी रानी का ज्येष्ठ पूत्र समझकर उत्तराधिकार सौंपा था और वसिष्ठ ने भी राम से कहा है-"इक्ष्वाकुओं में ज्येष्ठ पुत्र को गद्दी मिलती है, ज्येष्ठ के रहते छोटों को राजा नहीं बनाया जाता" (रामायण २।११०॥३६)। यही बात अयोध्याकाण्ड में कई स्थलों पर आयी है (८.२३-२४, १०१। २) । कौटिल्य (१।१७) ने लिखा है कि आपत्काल को छोड़कर लोग ज्येष्ठ को ही राजा बनाना श्रेयस्कर समझते हैं । मनु (६।१०६) ने लिखा है कि ज्येष्ठ पुत्र की उत्पत्ति के उपरान्त मनुष्य पितृ-ऋण से उऋण हो जाता है, अत: ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता से सब कुछ प्राप्त करता है। राजधर्मकौस्तुभ (पृ. ३३४-२३५) ने कालिकापुराण एवं रामायण को उद्धृत कर निम्न प्रमेय उद्घोषित किये हैं--(१) ग्यारह प्रकार के गौण पुत्रों के स्थान पर औरस पुत्र को प्राथमिकता मिलती है, चाहे वह अवस्था में बड़ा हो या छोटा:(२) यदि (अपनी ही जाति की) छोटी पुत्र अवस्था में बड़ी रानी के पुत्र से बड़ा हो तो उसे प्राथमिकता मिलती है: (३) यदि एक ही जाति की दो रानियों को एक ही समय पुत्र उत्पन्न हो तो बड़ी रानी के पुत्र को प्राथमिकता मिलती है; (४) यदि बड़ी रानी को जुड़वाँ पुन उत्पन्न हों तो पहले उत्पन्न होने वाले पुत्र को प्राथमिकता प्राप्त होती है।
यदि ज्येष्ठ पूत्र अन्धा या पागल हो तो उसके स्थान पर उसका छोटा भाई राजा होता है (मन ६२०१)। महाभारत में आया है कि अन्धे होने के कारण धृतराष्ट्र को राज्य नहीं मिला (आदिपर्व १०६।२५, उद्योगपर्व १४७। ३६) । शुक्रनीतिसार (१।३४३-३४४) में आया है कि यदि ज्येष्ठ पुत्र बधिर, कोढ़ी, गूंगा, अन्धा या नपुंसक हो तो उसके स्थान पर उसका छोटा भाई या पुत्र राज्याधिकार प्राप्त करता है। और देखिए शुक्रनीतिसार (११३४६-३४८)। राजधर्मकौस्तुभ ने कुछ अतिरिक्त प्रमेय भी उपस्थित किये हैं--(१) यदि ज्येष्ठ पुत्र किसी शारीरिक या मानसिक दोष के कारण राजा न हो सके तो उसके पुत्र का अधिकार अखण्डित रहता है (आदिपर्व १००१६२ का उद्धरण भी दिया गया है) । यही बात बालम्भट्टी (याज्ञ० १।३०६) एवं राजनीतिप्रकाश (पृ० ४०) ने भी कही है। (२) यदि बड़े पुत्र की अक्षमता के कारण छोटा पुत्र राजपद पाये तो उसकी मृत्यु पर उसी का ज्येष्ठ पुत्र उत्तराधिकारी होता है, न कि अक्षम का पुत्र (पाण्डु की मृत्यु के उपरान्त युधिष्ठिर को ही राजपद मिलना चाहिए था, न कि धृतराष्ट्र के पुत्र दुर्योधन को), नीतिवाक्यामृत (परिच्छेद २४, पृ० २४६ ) ने उत्तराधिकार के विषय में निम्न क्रम रखा है; पुत्र, भाई, सौतेला भाई, चाचा उसी वंश का कोई पुरुष, पुत्री का पुत्र, कोई अन्य जन जो निर्वाचित हुआ हो या जिसने राज्य पर अधिकार कर लिया हो।
कभी-कभी किसी राजा ने अपने छोटे पुत्र को भी प्राथमिकता दी है। इस विषय में कतिपय ऐतिहासिक उदाहरण प्राप्त होते हैं। गुप्त वंश के सम्राट् चन्द्रगुप्त प्रथम ने छोटे पुत्र समुद्रगुप्त को ही राजा बनाया, जिसने अपने पिता के वरण के औचित्य को आगे चलकर सिद्ध कर दिया। इसी प्रकार समुद्रगुप्त ने अपने छोटे पुत्र चन्द्रगुप्त द्वितीय को ही अपना उत्तराधिकारो चुना था। ययाति ने पुरु को चुना, क्योंकि वह उसके बड़े एवं अन्य पुत्रों में सर्वश्रेष्ठ था, आज्ञाकारी था और था कर्तव्यशील (आदिपर्व, ७५वाँ अध्याय) । राज्याधिकार इस प्रकार से आनुवंशिक था कि एक छोटा बच्चा भी राजा बना दिया जाता था (रघुवंश १८६३६)।
___ अच्छे राजा के गुणों के विषय में सभी राजनीति विषयक ग्रन्थों में चर्चा हुई है। देखिए कौटिल्य (६१), मनु (७।३२-४४), याज्ञ० (११३०६-३११ एवं ३३४), शंख-लिखित, शान्ति० (५७।१२ एवं ७०), कामन्दक (१॥ २१-२२, ४।६:२४,१ ५।३१), मानसोल्लास (२, १११-६, पृ० २६), शुक्र० (१।७३-८६), विष्णुधर्मोत्तर (२॥३)।
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