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धर्मशास्त्र का इतिहास
मातृ-प्रपितामह
मातृ-पितामह
-
माता के पिता
भ्राता
-
माता
भ्राता
स्वामी
पत्र
पुत्र
(४)
मातृ-प्रपितामह
मात-पितामह
बहिन
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माता माता का पिता बहिन
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पुत्र
पुत्र
भ्राता
माता बहिन
स्वामी
पुत्र
पुत्र
पत्रा
पुत्र
दायभाग का कथन है कि याज्ञवल्क्य ने 'गोत्रज' को पुल्लिग एवं एक वचन में इसलिए रखा है कि सभी सपिण्ड स्त्रियां (उन्हें छोड़कर जो विशिष्ट कथनों द्वारा स्पष्ट रूप से घोषित हैं) उत्तराधिकार न पा सकें। क्योंकि न तो वे
महसन्ततेरपि दौहित्रान्तायाः पिण्डप्रत्यासत्तिक्रमेणाधिकारो बोद्धव्यः । दौहित्रोपि ह्य मुनं सन्तारयति पौत्रवविति हेतोरविशेषात् । स्वदौहित्रवत्पित्रादिदौहित्रस्यापि तदनोग्यपिण्डदानेन सन्तारकत्वात् । दायभाग (११।६।८.६, पृ. २०८-२०६) ।
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