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________________ ६०६ धर्मशास्त्र का इतिहास शिष्य एवं सहपाठी – इनमें से क्रम से (एक के न रहने पर आगे वाला दूसरा ) मृत व्यक्ति का ( जब कि कोई पुत्र न हो ) धन पाता है । यह नियम सभी वर्णों के लिए प्रयुक्त होता है।” यही बात विष्णुधर्मसूत्र ( १७।४-१५) में भी पायी जाती है । विवादचिन्तामणि, रघुनन्दन एवं मित्र मिश्र ने 'अपुत्रस्य' शब्द को (व्यक्ति के मरते समय ) उसके । पुत्र, पौत्र एवं प्रपौत के अभाव के अर्थ में लिया ३ मिताक्षरा ने 'सर्ववर्णेषु' को उन लोगों के लिए भी प्रयुक्त माना है। जो अनुलोम एवं प्रतिलोम विवाहों से उत्पन्न हुए हैं । पुरुषों एवं नारियों की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के विषय में पृथक्-पृथक् नियम हैं । नारियों के रिक्थसम्बन्धी अधिकारों के विषय में बहुत मतभेद भी है । सर्व प्रथम हम पुरुषों की सम्पत्ति के उत्तराधिकार के विषय में चर्चा करेंगे । यहाँ पर भी मिताक्षरा एवं दायभाग के भिन्न-भिन्न सिद्धान्त पाये जाते हैं । किसी की पृथक् सम्पत्ति के विषय में पुरुष सन्तान के अतिरिक्त अन्य उत्तराधिकारियों में प्रथम स्थान विधवा पत्नी को प्राप्त होता है । कई शताब्दियों के संघर्ष के उपरान्त ही मृत व्यक्ति की ( जब वह अलग एवं असंयुक्त रूप में ही मृत हुआ हो ) विधवा का उत्तराधिकार मान्य हो सका है। हमने पहले ही देख लिया है कि तैत्तिरीय संहिता ( ६ | ५।८) ने स्त्रियों को 'अदायादी' घोषित कर दिया था । इस शब्द का अर्थ कुछ सन्देहात्मक है, जैसा कि हम आगे देखेंगे । आपस्तम्ब धर्मसूत्र ( २।६।१४ २ ) ने सामान्य रूप से कहा है कि पुत्राभाव में आसन्न ( बहुत पास का ) सपिण्ड उत्तराधिकारी होता है, किन्तु इसने पत्नी को स्पष्ट रूप से उत्तराधिकारी नहीं घोषित किया है, यद्यपि आगे (३०६।१४१४) पुत्री को एक सम्भव उत्तराधिकारी के रूप में उल्लिखित किया है। बौधायन ने भी पत्नी को उत्तराधिकारी के रूप नहीं सम्मिलित किया है । वसिष्ठ ने स्त्रियों को उत्तराधिकारी नहीं कहा है। गौतम ( २८।१६ ) ने कहा है कि सन्तानहीन मर जाने वाले व्यक्ति की सम्पत्ति को सपिण्ड, सगोव एवं सप्रवर, या उसकी पत्नी ( अर्थात् हरदत्त के मत से पत्नी अकेले नहीं प्रत्युत अति निकट सपिण्ड या सगोत के साथ दायांश पा सकती है ) ले सकती है । यही मत हरदत्त का भी था । ४ मनु ने पुत्रहीन व्यक्ति की पत्नी को रिक्थाधिकारी नहीं माना है, बल्कि उनके कुछ ऐसे वाक्य हैं। जिनसे पता चलता है कि उन्होंने उसे सर्वथा अलग कर रखा है, यथा-- मनु ( ६।१८५, किसी पुत्रहीन मृत व्यक्ति का धन पिता लेता है या उसके भाई लेते एवं मनु ( ६ २१७, पुत्रहीन व्यक्ति का धन माता को लेना चाहिये ) । शंख ( मिता०, याज्ञ० २ १३५; दायभाग ११।१।१५ ) ने कहा है कि पुत्रहीन मृत व्यक्ति का धन उसके भाइयों को मिलता है, उनके न रहने पर माता-पिता या सबसे बड़ी पत्नी को मिलता है । देवल ( दायभाग ११।१।१७ १८ एवं ३. अनपत्यस्य पुत्रपौत्रप्रपौत्रहीनस्य । पुत्रः पौत्रः प्रपौत्रो वा इत्यादिना अमीषां पाठक्रमेणैव स्वधाधिकारे सिद्धे तत्समानशीलस्य रिक्थग्रहणस्यापि तथैवाधिकारसिद्धेः । वि० चि० ( पृ० १५१ ) ; अत्र अपुत्रपदं पुत्रपौत्रपौत्राभावपरं तेषां पार्वणपिण्डदातृत्वाविशेषात् । दायतत्व ( पृ० १८६ ) ; अपुत्रपदं पत्नीत्यादिषु श्रूयमाणं पौत्रप्रपौत्राभावोपलक्षणम् । व्य० प्र० ( पृ० ५०३ ) ! ४. पुत्राभावे यः प्रत्यासन्नः सपिण्डः । आ० ध० सू० (२|६| १४ | २ ) ; पिण्डगोत्रषिसम्बन्धा रिक्थं भजेरन् स्त्री वानपत्यस्य । गौतम ( २८/१६), जिस पर हरदत्त का कहना है--'स्त्री तु सर्वैः सगोत्रादिभिः समुच्चीयते । यदा सपिण्डादयो गृह्णन्ति तदा तैः सह पत्न्यप्येकमंशं हरेत् । पत्नीदायस्तु आचार्यस्य पक्षो न भवति ।' आपस्तम्ब० (२।६।१४१२ ) पर उन्होंने गौतम का मत दिया है - 'गौतमस्तु पुत्राभावे पत्न्याः सपिण्डादिभिः समांशमाह । वयमप्येतमेव पक्षं रोचयामहे ।' ५. स्वर्यातस्य ह्यपुत्रस्य भ्रातृगामि द्रव्यं तदभावे पितरौ हरेयातां ज्येष्ठा वा पत्नी । शंख (मिता० याज्ञ० २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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