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________________ ६०४ धर्मशास्त्र का इतिहास उसे जाति के अन्य प्रकार के पुत्रों को मिलकियत का तिहाई भाग मिलता है । बंगाल में इन परिस्थितियों में पालक के धन का एक-तिहाई भाग दत्तक को मिलता है। वाराणसी एवं जैनों में चौथाई भाग मिलता है। 'सरस्वतीविलास' (पृ० ३६३) के मत से आठवाँ भाग मिलता है । बम्बई में दत्त क को १/५ भाग तथा औरस को ४/५ भाग मिलता है । यही बात बम्बई में शूद्रों के लिए भी है । किन्तु बंगाल एवं मद्रास में यह तय पाया है कि 'दतकचन्द्रिका', पृ० ६८ के आधार पर) शूद्रों में दत्तक एवं औरस को बराबर-बराबर मिले। यदि सम्पत्ति विभाजन योग्य न हो या उसे परम्परा के अनुसार ज्येष्ठ पुत्र को ही दिया जाता है तो दत्तक लेने के उपरान्त यदि औरस उत्पन्न हो जाय तो औरस को सस्पूर्ण सम्पत्ति मिल जाती है। यदि संयुक्त परिवार में दो भाई हों और उनमें एक दत्तक ले और दूसरे के पास औरस हो तो दत्तक को विभाजन पर आधी सम्पति मिल जाती है, क्योंकि वसिष्ठ का नियम केवल उस विषय में लागू होता है जहाँ एक ही व्यक्ति को दत्तक एवं औरस दोनों पुत्र हो । २२ २२. उत्पन्न त्वौरसे पुत्रे तृतीयांशहराः स्मृताः । सवर्णा असवर्णास्तु ग्रासाच्छादनभागिनः ॥ कात्यायन (दायभाग १०।१३, पृ० १४८; वि० चि० पृ० १५०; विवादचन्द्र पृ० ८०) । तथा च कात्यायनः । उत्पन्न त्वौरसे पुत्रे चतुर्थांशहराः स्मृताः ।.....चतुर्थांशो नाम चतुर्थस्य योंशः समत्वेन परिकल्प्यते तत्तुल्योंशः इत्यर्थः । सरस्वतीविलास (पृ० ३६३) । अतएव-दत्तपुत्रे यथा जाते कदाचित्त्वौरसो भवेत् । पितू रिक्यस्य सर्वस्य भवेतां समभागिनौ । इत्यपि वचनं शूद्रविषय एव योजनीयम् । दतकच० (पृ०६८) । ऐसा लगता है कि विवाहित व्यक्ति को या पुत्रवान व्यक्ति को दत्तक होने की अनुमति देकर 'व्यवहारमयूख' ने स्मृतियों एवं अन्य निबन्धों की सीमाओं का उल्लंघन किया है । शौनक आदि ने कहा है कि दत्तक को औरस का प्रतिबिम्ब होना चाहिये । अतः दत्तक को उस अवस्था में लेना चाहिये जिससे वह शिक्षण एवं वातावरण द्वारा कालान्तर में औरस के समान ही मनोभाव रखने लगे। अतः विधान सभाओं द्वारा ऐसा नियम बनना चाहिये कि उपनयन के उपरान्त दत्तक न लिया जाय या जनक-कुल में विवाह होने के उपरान्त तो दत्तक नहीं हो लिया जाय । पुत्रहीन व्यक्ति या विधवा यदि, धार्मिक विचारों के अतिरिक्त, अपनी शान्ति, सुरक्षा या वृद्धावस्था में सहायता के लिए गोद लेना चाहते हैं तो यह स्वाभाविक ही है । इंग्लैण्ड में भी कुछ क्रिया-संस्कारों के साथ किसी नावालिग को लोग गोद लेते हैं । जब तक विधवा बालिग न हो जाय उसे दत्तक लेने का अधिकार नहीं देना चाहिये । यह कोई तुक नहीं है कि १५ या १६ वर्षीया विधवा पुत्रीकरण कर ले, जब कि उस पुत्रीकरण से उसे उसके द्वारा प्राप्त पति को सम्पत्ति पूर्णरूप से (अब आधी) छोड़ देनी पड़ती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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