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अध्याय २८
दत्तक (गोद लिया हुआ पुत्र) आधुनिक काल में भारतीय हिन्दू व्यवहार (कानून) की किसी भी शाखा में इतने मुकदमें नहीं चले जितने कि दत्तक पुत्र से सम्बन्धित व्यवहार-शाखा में । ऐसे बहुत से उदाहरण प्राप्त होते हैं जहाँ पचास-पचास वर्ष तक लग गये हैं, और कितने ही व्यवहार-पदों से सम्बन्धित समस्त न्यायमूर्तिमंडल के निर्णयों को प्रिवी कौंसिल ने रद्द कर दिया है । मध्यकाल के लेखकों (निबन्ध कारों) ने एक ही प्रकार के स्मृति-वचनों को भाँति-भाँति से तोड़-मरोड़कर उनकी विभिन्न व्याख्याएँ उपस्थित की हैं, इसलिए आधुनिक भारतीय विवादों एवं मध्यकाल की प्रामाणिक व्याख्याओं के फलस्वरूप विभिन्न प्रान्तों में दत्तक-सम्बन्धी व्यवहार विभिन्न हो गये हैं। शास्त्री गोपालचन्द्र सरकार एवं श्री कपूर जैसे लेखकों ने इस विषय पर विशालकाय ग्रन्थों का प्रणयन किया है। हम कुछ संक्षेप में ही इस अध्याय में स्मृतियों एवं मध्यकाल के निबन्धों के आधार पर दत्तक-व्यवहार के विभिन्न स्वरूपों पर प्रकाश डालेंगे।
हमन गत अध्याय में देख लिया है कि ऋग्वेद के समय में भी औरस पुत्र (अपने शरीरज पुत्र) को अधिक
प्राप्त थी और दूसरे के पूत्र को अपना बनाना अच्छा नहीं माना जाता था। पश्चात्कालीन शक्र (२।३१) जैसे लेखक ने भी दत्तक एवं अन्य गौण पुत्रों को अपने पुत्रों के समान मानना गहित समझा है, क्योंकि धनी पुरुषों को देखकर ही वे बालक उनके पुत्र बनने की आकांक्षा रखते हैं।' दत्तक पुत्रों के विषय में वैदिक साहित्य में भी संकेत मिलते हैं । 'तैत्तिरीय संहिता' (७।१८।१) में अत्रि की कथा वर्णित है । अनि ने अपना इकलौता पुत्र और्व को दत्तक रूप में दे दिया। शब्द ये हैं-"पुत्र की इच्छा रखनेवाले और्व को अनि ने अपना पुत्र (दत्तक रूप में) दे दिया। उसने (अनि ने) अपने को खाली पाकर (पुत्र दे देने के उपरान्त) अपने को शक्तिहीन, निर्वीर्य एवं शिथिल समझा। उसने (अनि ने) इस चतुरात्र (इस नाम का एक यज्ञ, जो चार दिनों तक चलता रहता है) को देखा । उसने इसके लिए तैयारी की और इस यज्ञ को सम्पादित किया । तब उसे चार वीर पुत्र उत्पन्न हुए; एक अच्छा होता, एक अच्छा उद्गाता, एक अच्छा अध्वयु एवं एक सभेय(सभा में दक्षता से बोलनेवाला)।"शुनःशेप की गाथा(ऐ० ब्रा० ३३) व्यक्त करती है कि विश्वामित्र ने, जिनके पास पहले से ही १०१ पुत्र थे, उसे देवरात के नाम से गोद लिया, जिसमें उनके (विश्वामित्र के) ५१ पुत्रों की सहमति थी (इन पुत्रों में मधुच्छन्दा सब का नेता था) और अन्य ५० पुत्रों ने उनकी आज्ञा का उल्लंघन किया । यहाँ यह अनुमान लगाया जा सकता है कि पश्चात्कालीन यह नियम कि केवल पुत्रहीन व्यक्ति ही दत्तक पुत्र ले सकता है, विश्वामित्र के लिए लागू नहीं हुआ।
___ सूत्रों एवं स्मृतियों में केवल बारह पुत्रों में दत्तक का नाम गिनाने के सिवा इस विषय में और कुछ विशेष नहीं मिलता; हाँ, बौधायनधर्मसूत्र ( २।२।२४), मनु (६।१६८), याज्ञ० (२।१३०), विष्णु० (१५॥१८-१६) एवं
१. मनसापि न मन्तव्या दत्ताद्याः स्वसुता इति । ते दत्तकत्वमिच्छन्ति दृष्ट्वा यद् धनिकं नरम् ॥ शुक्रनीति (२।३१)।
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