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________________ पुत्रों के भेद ८८१ पुत्रों के प्रकार (मनु के अनुसार) बौधायन | कौटिल्य वसिष्ठ शंख-लिखित । हारीत याज्ञवल्क्य नारद बृहस्पति देवल विष्णु आदिपर्व ब्रह्मपुराण 10 गौतम यम | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ | १ |१०२ | २ ३ | ५ | ३ | २ । ३ | २ | २ | ३ | २ ३ । २ ३ ३ | २ २ | २ | ३ | २ ३ | ३ | २ | ३ | २ ३ १. औरस . २. पुत्रिकापुत्र ... ... ३. क्षनज ... ४. दत्त ५. कृत्रिम ... ६. गूढोत्पन्न ... ७. अपविद्ध ... ८. कानीन ... ६. सहाढ १०. क्रीत ११. पोनर्भव ... १२. स्वयदत्त १३. शौद्र ... | ४ | ५ |११| ....... | ...|६ /११/ ७ /११/१२/६/१० ६ | ५ | ६ | ४ | ६ ६ ६ | ४ ६ | १२| ५ | ६ ६ ६ ६ | ६ | ७ | ५ | ११|६| ७ | १२| ८ | ५ | ६ | ११|... | ७ | | ७ | ८ | ६ | ५ | ४ | ५ ५ | ४ | १०| ४ | ५ ५ | ५ | १० ८ ६ ७ | ७|१०|८ | ११| ५ | ११| ७ | ७ | ११/८/११ |१२|१०/१२/६ ८ | १० | ८ | १०| ६ | १२/६ ८ | ११/ ७ ६/११/८ ४ ३ | ४ | ६ | ७ | ६ | ८ | ४ | ४ | ४ | १२ | ११ |१२|१०|१०|११|१२|१०|१२|... | १० | १०|१०|१२ ५ |... | १३ | ... | १२ | ... | ११ | ...... | ८ |... | ... | १२| ... | १३ | ... 11।। । विष्णुधर्मसूत्र (१५।१७) ने 'यत्र-क्वचनोत्पादित' (कहीं भी उत्पन्न किया गया) को बारहवां एवं अन्तिम पुत्र माना है। वैजयन्ती ने इसे दो प्रकार से समझाया है--(१) ऐसी स्त्री से उत्पन्न, जो उत्पन्न करने वाले की अपनी हो या दूसरे की पत्नी हो--यह न पता चले, या अपनी जाति की हो या दूसरी जाति की हो, चाहे विवाहोपरांत उससे पुरुष-संसर्ग हुआ हो या न हुआ हो; (२) ऐसी स्त्री का पुत्र जो शूद्रा हो और अविवाहित हो। अन्तिम अर्थ में भी वह शौद्र नहीं कहलायेगा । मनु (६।१७८) एवं याज्ञ० (१।६१) ने शौद्र को ब्राह्मण की शूद्रा पत्नी से उत्पन्न माना है। कतिपय लेखकों ने शौद्र को छोड़ दिया है, यथा पुराने लेखक गौतम, कौटिल्य एवं हारीत । हारीत ने 'सहसादृष्ट' नामक एक पुत्र का नाम लिया है, जो सम्भवतः कृत्रिम है। मनु ने केवल १२ पुत्रों के नाम दिये हैं (1१५८) । उन्होंने भवश्च कानीनः स्वैरिण्यां यश्च जायते ॥ दत्तः क्रोतः कृत्रिमश्च उपगच्छेत् स्वयं च यः । सहोडो शातिरेताश्च हीनयोनिधृतश्च यः ॥ पूर्वपूर्वतमाभावं मत्वा लिप्सेत वै सुतम् । उत्तमाद्देवरात्पुंसः कांक्षन्ते पुत्रमापदि॥ आदिपर्व (१२०१३३-३५) । हमारी समझ से ज्ञातिरेता शौद्र के समान सहोड एवं हीनयोनिधृत का विशेषण है । यह अवलोकनीय है कि अनुशासनपर्व (४६॥३-११) ने कुल मिलाकर बीस पुत्रों के नाम गिनाये हैं, और बहुतों के बारे में विलक्षण संज्ञाएं दी गयी हैं, यथा--औरस (अनन्तरज), निरुक्तज (क्षेत्रज), प्रसृतज (अनियोगोत्पन्न), पतितास्वभार्यायां जात और दत्त, क्रीत, अध्यूढ (सहोड), अपध्वंसज (अर्थात् अनुलोम), कानीन, अपसव (चाण्डाल, व्रात्य, वैद्य, मागध, वामक एवं सूत) । अनुशासनपर्व (४६११) में आया है कि इन पुत्रों की पुत्र-स्थिति को अस्वीकार नहीं किया जा सकता । उसका कहना है (४६।२०-२१) कि यदि कोई पुत्र अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिया जाय और उसे कोई अन्य पाले तो वह पालने वाले का पुत्र कहा जायगा और कानीन एवं अध्यूढ (सहोल) के संस्कार अपने पुत्र के समान ही किये जाते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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