SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 300
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८५६ ----- --- -- ------ सहभागिता का क्रम इस चित्र में क ख ग आदि पुरुष हैं । क तथा उसके पुत्र ख एवं ग समांशी हो सकते हैं । इसी प्रकार यदि ख एवं ग प्रत्येक को एक पुत्र हो, तो क ख ग, घ, उ. सहभागी होंगे। यदि घ एवं ड. में प्रत्येक को क्रम से च एवं छ पुत्र हों तो क से लेकर छ तक सभी सहभागी होंगे। किन्तु यहाँ पर सीमा रुक जाती है। यदि क के जीते-जी ज की उत्पत्ति हो जाय तो वह क के पुत्र का प्रपौत्र होने के कारण जन्म से सहभागी न होगा और क के जीवनकाल तक वैसा ही रहेगा। किन्तु यदि वह क की मृत्यु के उपरान्त उत्पन्न हो जाय तो वह ख घच के साथ सहभागी हो जायगा। मान लीजिए, क के पूर्व ही ख की मृत्यु हो जाय, तो वैसी स्थिति में क के जीवित रहने तक ज सहभागी नहीं होगा, क्योंकि ज के क के पुत्र के प्रपौत्र होने के नाते च का क को पैतृक सम्पत्ति में जन्म से ही अधिकार न होगा। मान लीजियेक के जीवन काल में ही ख, ग,घ, ड., च एवं छ सबकी मृत्यु हो जाय तो केवल क ही सम्पूर्ण सम्पत्ति का स्वामी होगा, उसके साथ ज का कोई भाग न होगा, क्योंकि वह पाँचवी पीढ़ी (क से गिनने के कारण) में होगा। मान लीजिए क जो एक मात्र अधिकारी है, मर जाता है, तो ज क की सारी सम्पत्ति उत्तराधिकारी के रूप में पा जायगा। सहभागिता केवल व्यवहार (कानून) की सृष्टि है, दलों के कार्य द्वारा इसकी उत्पत्ति नहीं हो सकती। हाँ, गोद लेने से ऐसा हो सकता है। विभाजन में भाग लेने की योग्यता जन्म से अधिकार रखने वाले पुरुष स्वामी से चौथी पीढी तक पायी जाती है। मिताक्षरा द्वारा उपस्थापित सहभागिता के कुछ विशिष्ट लक्षण, संक्षेप में, निम्न हैं। पहली बात यह है कि इसमें स्वामित्व की एकता पायी जाती है, अर्थात् सभी सहभागी एक साथ स्वामी होते हैं, कोई सदस्य परिवार के अविभाजित रहते यह नहीं कह सकता है कि उसका कोई निश्चित भाग(हिस्सा) है,क्योंकि उसका सम्पत्तिभाग मृत्युओं से बढ़ सकता है, जन्मों से घट सकता है। दूसरी विशेषता है भोग एवं प्राप्ति की एकता, अर्थात् सभी को कुल-सम्पत्ति के भोग एवं स्वामित्व का अधिकार है; और एक में निहित भोग (भुक्ति या अधिकार) साधारणतः सबकी ओर से माना जाता है। तीसरी बात यह है कि जब तक परिवार संयुक्त है और कुछ हिस्सेदारों के बहुत बाल-बच्चे हैं, कुछ के कोई नहीं हैं या कुछ लोग अनुपस्थित हैं, तो विभाजन के समय कोई यह नहीं कह सकता कि कुछ लोगों ने सम्पत्ति खाली कर दी और न यही पूछा जा सकता है। कि आय-व्यय का ब्यौरा क्या रहा है। कात्यायन (८८८) ने यह बात स्पष्ट रूप से कही है । चौथी विशेषता यह है कि किसी सहभागी की मृत्यु पर उसका भाग समाप्त हो जाता है और अन्यों को प्राप्त हो जाता है, किन्तु यदि मृत व्यक्ति के पुत्र पौत्र या प्रपौत्र हों तो उन्हें विभाजन के समय भाग मिलते हैं । स्त्री को सहभागिता नहीं प्राप्त होती , चाहे वह पत्नी हो या माता । पाँचवी विशेषता यह है कि प्रत्येक सहभागी विभाजन की माँग कर सकता है। कुल के कार्यों की व्यवस्था पिता करता है। यदि वह बूढ़ा हो या मर जाय तो ज्येष्ठ पुत्र या कोई अन्य सदस्य ज्येष्ठ सदस्य की सहमति से कार्यभार संभाल सकता है (नारद, दायभाग ५, एवं शंख) । आजकल ऐसे व्यवस्थापक को कहीं-कहीं कर्ता कहा जाता है, किन्तु स्मृतियों एवं निबन्धों में इसे कुटुम्बी (याज्ञ० २।४५),गृही, गहपति,प्रभु (कात्या० ५४३) की संज्ञाएं मिली हैं। इसे आपत्तिकाल (ऋण आदि लेने) में परिवार के कल्याण ( जीविका, शिक्षा, विवाहादि) के लिए तथा विशेषत: श्राद्ध आदि धार्मिक कृत्यों में बन्धक रखने, बेचने, दान देने आदि का अधिकार प्राप्त रहता है। पिता को व्यवस्थापक का अधिकार एवं कुछ अन्य विशिष्ट अधिकार प्राप्त होते हैं जो किसी सहभागी को प्राप्त नहीं होते। पिता यदि चाहे तोपत्रों को अपने से या उनकी इच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy