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________________ == धर्मशास्त्र का इतिहास कहने के लिए कोई स्पष्ट संकेत नही मिलता, अतः प्रत्येक का अंश किसी भाग पर गुटिकापात ( गेंद वा गोली फेंकने ) से निश्चित एवं निर्णीत होता है (यथा ऐसा कहना कि यह क का है, आदि) । किन्तु दायतत्व ने इस परिभाषा की आलोचना की है। यदि विभाजन के पूर्व प्रत्येक सहभोगी सम्पूर्ण दाय का अंशत: स्वामित्व रखता है तो यह सुनिश्चितता कहाँ है कि गुटिकापात से सहभोगी का अंश उसी अंग के स्वामित्व से सम्बन्धित होगा जो विभाजन के पूर्व उदित हुआ ? यद्यपि जन्म स्वत्ववाद के विषय में दायतत्व मिताक्षरा से विभेद रखता है किन्तु विभाग की परिभाषा में दोनों एक-दूसरे से मिलते हैं । १४ दायभाग एवं मिताक्षरा द्वारा उपस्थापित विभिन्न परिभाषाएं विभिन्न प्रतिफल देती हैं। मिताक्षरा के भीतर पिता और पुत्रों या पौत्रों का जब संयुक्त परिवार रहता है तो सभी सहभोगी (रिक्याधिकारी ) रहते हैं और संसृष्ट सम्पत्ति का स्वत्व सभी समाशियों (रिक्याधिकारियों) को प्राप्त रहता है, अर्थात् जब तक संयुक्त परिवार रहता है तब तक स्वामित्व की एकता रहती है, और कोई सहभोगी (रिक्याधिकारी ) यह नहीं कह सकता कि वह किसी निश्चित भाग, यथा एक चौथाई या पांचवें भाग का स्वामी है । अंशहर या सहभागी का अंश या हित घटता-बढ़ता रहता है; मृत्युओं (कई सहभोगियों की मृत्युओं) से बढ़ सकता है और जन्मों से यह घट सकता है। विभाजन के उपरान्त ही सहभागी या अंशहर किसी निश्चित भाग ( अंश) का अधिकारी हो पाता है । दूसरी ओर दायभाग के अनुसार जन्म से ही स्वामित्व नहीं उत्पन्न होता, पिता के उपरान्त पुत्र सहभागिता प्राप्त करते हैं, किन्तु परिवार की सम्पत्ति का स्वामित्व सभी पुत्रों के एक गुट को नहीं प्राप्त रहता । पिता की मृत्यु आदि के उपरान्त प्रत्येक पुत्र को एक निश्चित अंश मिल जाता है। इस प्रकार का लिया गया भाग जन्मों एवं मृत्युओं से नहीं घटता-बढ़ता । पुत्र सहभागी इसीलिए कहे जाते हैं कि पिता से प्राप्त सम्पत्ति पर उनकी प्राप्ति संयुक्त रहती है, अर्थात् प्राप्ति की एकता रहती है किन्तु स्वामित्व की एकता नहीं । मिताक्षरा के अनुसार पुत्र पैतृक सम्पत्ति का रिक्याधिकारी जन्म से ही हो जाता है। मान लीजिए कोई व्यक्ति पैतृक सम्पत्ति का एकमात्र स्वामी है, किन्तु संततिहीन है। ऐसी स्थिति में सहभागित्व ( सहभागिता ) का प्रश्न ही नहीं उठता। किंतु ज्यों ही उसे पुत्र उत्पन्न हो जाता है, समांशिता या सहभागिता आरम्भ हो जाती है। इसका तात्पर्य यह है कि मिताक्षरा के अनुसार पुत्रोत्पत्ति समांशिता या सहभागिता को उत्पन्न कर देती है, किन्तु दायभाग अन्तत पिता एवं पुत्रों में समांशिता नहीं पायी जाती, क्योंकि पुत्रों को पैतृक सम्पत्ति पर जन्म से ही अधिकार नहीं प्राप्त होता, यद्यपि पैतृक सम्पत्ति की सत्ता भाइयों या चात्राओं एवं भतीजों के बीच उपस्थित रहती है । दायभाग के अन्तर्गत किसी व्यक्ति की मृत्यु उसके पुत्रों की सहभागिता आरम्भ कर देती है । विभाजन के दो अर्थ हैं -- (१) नाप-जोख एवं सीमा के निर्धारण से बँटवारा, एवं (२) हित का पृथक्त्व १४. एकदेशोपात्तस्यैव भूहिरण्यादावृत्पन्नस्य स्वत्वस्य विनिगमनाप्रमाणाभावेन वैशेषिकव्यवहारानहंतया अव्यवस्थितस्य गुटिकापातादिना व्यञ्जनं विभागः । विशेषेण भजनं स्वत्वज्ञापनं वा विभागः । दायभाग (१1८-६) पृ० ८ ) ; तत्र विभागस्तु सम्बन्ध्यन्तरसद्द्भावेन भूहिरण्यादावुत्पन्नस्य.....गुटिकापातादिना अमुकस्येवमिति विशेषेण मजनं स्वत्वज्ञापनमिति वदन्ति तन्न समीचीनम् । यत्र अस्य स्वत्वं तत्रैव गुटिकापात इति कथं वचनाभावान्निश्चेतव्यः । वायतस्व ( पृ० १६३); वस्तुतस्तु पूर्वस्वामिस्वत्वोपरमे सम्बन्धाविशेषात् सम्बन्धिनां सर्वधनप्रसूतस्वत्वस्य गुटिकापातादिना प्रादेशिक स्वत्वव्यवस्थापनं विभागः । एवं कृत्स्नधनगतस्वत्वोत्पादविनाशावपि कल्प्येते । दायतत्त्व ( पृ० १६३) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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