________________
स्त्रियों का नियन्त्रण
८३३
है स्त्रियों को आश्रित रखना और नारद (१६।३०) का कथन है कि स्वतन्त्रता के कारण अच्छ कुल को नारियाँ भी बिगड़ जाती हैं। मनु (६५) एवं बृहस्पति के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण बात है स्त्रियों की साधारण-से-साधारण अनुचित अनुरागों से रक्षा करना, क्योंकि तनिक पाँव फिसल जाने से वे (पति एवं पिता के) कुलों को दुःख के पारावार में हुबो सकती हैं। हारीत", शंख-लिखित, मनु (६७ एवं ६) एवं अन्य स्मृतियों के मत से अपनी संतति की पविनता की रक्षा के लिए पति को अन्य लोगों से अपनी पत्नी की रक्षा करनी चाहिए। पत्नी की रक्षा करके पति अपनी प्रसिद्धि, कुल, आत्मा, धर्म की रक्षा करता है, क्योंकि स्त्री जिस पुरुषसे संभोग करती है उसी के समान पुन की उत्पत्ति करती है और मासिक धर्म के दिनों में जिस पुरुष को ध्यान में रखती है वैसा ही पुत्र जनती है। मनु (६१०) को यह बात स्पष्ट रूप से ज्ञात थी कि स्त्रियों को बलवश परदे में रखकर उनकी पूरी रक्षा नहीं की जा सकती, प्रत्युत उन्हें गृह-कार्यों में संलग्न रखकर ऐसा किया जा सकता है (देखिए मनु ६।११ एवं बृहस्पति) । पतियों को चाहिए कि वे उनका सम्मान एवं प्रेम प्राप्त करें, उन्हें उनकी इज्जत करनी चाहिए (मनु ६।२२-२४-२६ एवं याज्ञ. १८२)। तलाक के विषय में हमने पहले ही लिख दिया है (देखिए इस ग्रन्थ का द्वितीय भाग, अध्याय १४) ।
६. सूक्ष्मेम्योपि प्रसंगेभ्यो निवार्या स्त्री स्वबन्धुभिः । श्वश्वादिभिर्गुरुस्त्रीमिः पालनीया विवानिशम् ॥ (स्मृति० २, पृ० २२६; व्य० प्र० पृ० ४०५; वि० र० पृ० ४११)।
७. तस्माद्रेतोपघाताज्जायां रक्षेत् । जायानाशे कुलनाशः कुलनाशे तन्तुनाशः तन्तुनाशे देवपितृयज्ञनाशः यज्ञनाशे धर्मनाशः धर्मनाशे आत्मनाशः आत्मनाशे सर्वनाशः । तस्मादेनां धर्मशीला सुगुप्तां पत्नी रक्षेत् । हारीत (स्मृतिच० २, पृ० २३६; वि० र० पृ० ४१०; व्य० प्र० पृ० ४०५; मदनरत्न)।
८. यस्मिन्भावोऽपितः स्त्रीणामार्तवे तच्छीलं पुत्रं जनयन्ति यथा नीलवृषेण नीलवृषवत्सप्रभवः श्वेतेन श्वेत एव जायते । एवं योनिरेव बलवती यस्माद्वर्णाः संकोयन्ते । शंखलिखित (वि० र० पृ० ४१४; स्मृति० २, पृ० २४१; व्य० प्र० पृ० ४०८) ।
६. आयव्ययेऽर्थसंस्कारे गृहोपस्कररक्षणे । शौचान्निकार्ये संयोज्याः स्त्रीणां शुद्धिरियं स्मृता ॥ बृ० (व्यवहारप्रकाश पृ० ४०६)।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org