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________________ अध्याय २५ स्त्रीसंग्रहण (पर-स्त्री के साथ नियमविरुद्ध मिथुनीभाव) मिताक्षरा (याज्ञ० २।२८३) के मत से मिथुनीभाव (संभोग) के लिए किसी पुरुष एवं स्त्री का एक साथ होना संग्रहण है।' बृहस्पति के मत से पापमूल संग्रहण तीन प्रकार का होता है-बल से, धोखे से तथा कामपिपासा से संभोग करना । २ इनमें प्रथम है बलात्कार से संभोग करना, वह भी स्त्री की इच्छा के विरुद्ध किसी गुप्त स्थान में या ऐसी स्त्री के साथ संभोग करना जो पागल हो या उस स्त्री के साथ जिसकी मानसिक स्थिति अव्यवस्थित हो या जो भ्रमित हो या उसके साथ जो चिल्ला रही सरा प्रकार वह है जिसमें कोई स्त्री छद्म या किसी बहाने बुला ली गयी हो या जिसे कोई मद्य (यथा धतूर पिला दिया गया हो या जो किसी प्रकार (मन्त्र या वशीकरण आदि उपायों से वश में कर ली गयी हो और उसके साथ संभोग-कर्म किया जाय । तीसरा प्रकार वह है जिसमें कोई स्त्री आँख मारकर या ती भेजकर बुला ली गयी हो या दोनों एक-दूसरे के सौन्दर्य या धन से आकृष्ट हो गये हों और संभोग में लिप्त हो गये हों। इनमें तीसरा प्रकारभी तीन प्रकार का होता हैं-साधारण, मध्यमएवं गम्भीर ; जिनमें प्रथम प्रकार में कटाक्ष करना, मुसकराना, दूती भेजना, स्त्री के आभूषणों एवं वस्त्रों को छूना सम्मिलित है। दूसरे में पुष्प, अनुलेपन (अंजन आदि), फल, धूप, भोजन, वस्त्र तथा गुप्त बात-चीत करना सम्मिलित हैं और तीसरे में एकही बिस्तर पर सोना, विहार करना, चुम्बन एवं आलिंगन आदि सम्मिलित हैं। मदनरत्न, व्यवहार प्रकाश (पृ० ३६६-३६७) आदि ने बलात्कार पूर्वक संभोग को साहस के अन्तर्गत रखा है। बल द्वारा संभोग करने पर बहुत कड़ा दण्ड मिलता था। वृहस्पति के अनुसार समान जातीय से साहस पूर्वक संभोग करने पर सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली जानी चाहिए, लिंग एवं अण्डकोष काट लिये जाने चाहिए, गदहे पर चढ़ाकर घुमाना चाहिए; किन्तु यदि संभोग की हुई स्त्री व्यभिचारी से हीन जाति की हो तो उपयुक्त दण्ड का आधा लगता है; किन्तु यदि स्त्री की जाति पुरुष की जाति से उच्च हो तो पुरुष को मृत्यु दण्ड मिलता है और उसकी सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली जाती है। कात्यायन (८३०) के अनुसार बलात्कार करने पर मृत्यु-दण्ड मिलता है, क्योंकि यह उचित आचरण के विरुद्ध है । जब धोखे से संभोग किया जाता है तो सम्पूर्ण सम्पत्ति छीन ली जाती है, माथे पर स्त्री के गुप्तांग का दाग लगा दिया जाता है और व्यभिचारी को बस्ती के बाहर कर दिया जाता है। किन्तु यहाँ भी जाति-सम्बन्धी छूट एवं अधिकता वर्णित है।३ १. स्त्रीपुंसयोमिथुनीभावः संग्रहणम् । मिताक्षरा (याज० २।२८३); संग्रहणं परस्त्रिया सह पुरुषस्य सम्बन्धः । स्मृतिचद्रिका (२, पृ० ८)। २. अपराकं पृ० ८५४; स्मृतिच० २, पृ० ८; व्य० प्र० पृ० २६७; वि० र० ए० ३७६; परा० मा० ३, १० ४६२ । ३. सहसा कामयेद्यस्तु धनं तस्याखिल हरेत् । उत्कृत्य लिंगवृषणो भ्रामयेद् गर्दभेन तु ॥ दमो नेयः समायां तु होनायामधिकस्ततः । पंसः कार्योऽधिकायां तु गमने संप्रमापणम् ॥ बृहस्पति (स्मृति च० २, पृ० ३२०; व्य० प्र० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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