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________________ धर्मशास्त्र का इतिहास अपेक्षा अधिक बुरा माना जाता। मनु ( ८।३४५), मिताक्षरा ( याज्ञ० २।२३० ) के मत से ऐसे लोगों को राजा द्वारा कभी न छोड़ा जाना चाहिए। नारद (१७१३ - ६ ) एवं बृहस्पति ने साहस की तीन श्रेणियाँ की हैं; प्रथम साहस ( नाश करना, वाक्पारुष्य अर्थात् गाली देना, फलों, मूलों, जल, कृषि के औजारों आदि को तोड़-फोड़ डालना या कुचल डालना या नष्ट करना, ), मध्यम साहस (वस्त्रों, भोजन, पेय पदार्थ, बरतन भाण्डों को नष्ट करना) तथा उत्तम या बड़ा साहस ( हथियार या विष से मारना, दूसरे की स्त्री के साथ बल प्रयोग करना तथा चेतन प्राणियों को क्लेश देना) । साहस के अन्तर्गत मुख्य अपराध ये हैं डकैती करना, हत्या करना तथा बलात्कार से किसी स्त्री के साथ व्यभिचार करना । बलपूर्वक व्यभिचार का वर्णन स्त्री-संग्रहण के अध्याय में होगा । बृहस्पति के मत से हत्या करने वाले को अर्थ दण्ड के स्थान पर प्राण- दण्ड मिलना चाहिए । किन्तु मनु ( ६ । २४१ ) के मत से ब्राह्मण हत्यारे को प्राण-दण्ड न देकर देश- निष्कासन का दण्ड देना चाहिए। यदि ब्राह्मणेतर लोगों द्वारा असावधानी से हत्या हो जाय तो सम्पूर्ण धन छीन लेना चाहिए, किन्तु जान बूझकर हत्या करने पर प्राण दण्ड देना चाहिए (मनु ६ । २४२ ) । मनु ( ६ । २३२) एवं विष्णु० (५२६ - ११ ) के मत से अपनी ओर से नकली राज्यानुशासन बनाने वाले या राज्य के अंगों के प्रति अवज्ञा दिखाने वाले या स्त्री-हत्या या बाल-हत्या, ब्रह्म-हत्या करने वाले को प्राण दण्ड मिलना चाहिए। बौधायन० ( १।१०।२०।२१ ), बृहस्पति एवं व्यास ने व्यवस्था दी है कि यदि कोई क्षत्रिय, वैश्य या शूद्र ब्रह्म-हत्या करे तो विविध प्रकार से प्राण दण्ड मिलना चाहिए और सारी सम्पत्ति छीन लेनी चाहिए। किन्तु यदि कोई अपनी जाति वाले की या अपने से नीच जाति वाले की हत्या करे तो वह राजा द्वारा अपराध की गुरुता के अनुसार दण्डित होना चाहिए । कौटिल्य ( ४|११ ) के मत से पुराने शास्त्रों के नियमों के अनुसार भाँति-भाँति के कष्ट एवं क्लेश देकर प्राण दण्ड देना चाहिए, किन्तु उन्होंने लिखा है कि यदि हत्यारे ने निर्मम हत्या न की हो तो उसे केवल शुद्धप्राण दण्ड मिलना चाहिए । ' एक विशिष्ट नियम अवलोकनीय है । गौतम ( २२।१२ ) आपस्तम्ब० (१२६ । २४।६-६), मनु ( ११८७ ), वसिष्ठ० (२०३४) एवं याज्ञ० ( ३।२५१ ) ने आत्रेयी ब्राह्मणी की हत्या के लिए उसी प्रायश्चित की व्यवस्था दी है जो किसी ब्राह्मणपुरुष की हत्या के लिए नियोजित है । आपस्तम्ब० (१६) २४१-५) एवं गौतम ० (२२) ने मारे गये एवं मारने वाले व्यक्ति की जाति एवं लिंग के आधार पर प्रायश्चित की व्यवस्था दी है। हम प्रायश्चित्त वाले अध्याय में इस पर संक्षेप में लिखेंगे। मनु ( ८ २६१-२६२), याज्ञ० ( २२६८- २६६ ) एवं कौटिल्य ( ४११३ ) के मत से कभी-कभी हत्या हो जाने या घायल कर देने या सम्पत्ति नाश पर दण्ड नहीं मिलता, यथा-- यदि गाड़ी में जुते बैल की नाथ अकस्मात् भंग हो जाय, जुआ टूट जाय, जब ऊँची-नीची भूमि के कारण गाड़ी एक ओर उलट जाय, जब धुरा या पहिया टूट जाय, यदि गाड़ी के विभिन्न भागों को बाँधने वाले चर्मबन्धन टूट जायँ, जब रास टूट जाय और जब बहुत जोर से पुकारने पर भी मार्ग से व्यक्ति न हटे और दुर्घटना हो जाय । किन्तु उपर्युक्त स्थितियों से विपरीत दशाओं में गाड़ी के स्वामी को २०० पण दण्ड देना पड़ता था ( जब गाड़ीवान दक्ष न हो) । यदि गाड़ीवान दक्ष हो और दुर्घटना हो जाय तो गाड़ीवान को ही दण्डित होना पड़ता है । यदि मार्ग अवरुद्ध ८२८ . ६. एते शास्त्रेष्वनुगताः क्लेशदण्डा महात्मनाम् । अक्लिष्टानां तु पापानां धर्मः शुद्धवधः स्मृतः ॥ अर्थशास्त्र (४|११ ) । ७. आत्रेय्याश्चैवम् । गौतम० (२२/१२ ) ; आत्रेयीं च स्त्रियम् आप० अर्थ सम्भवतः शतपथब्राह्मण (१।४।५।१२ ) में रजस्वला स्त्री है। है । कुछ लोग अत्रि गोत्र वाली स्त्री को आत्रेयी कहते हैं । Jain Education International ( १ | ६ | २४|६ ) | आत्रेयी का अमरकोश में भी आत्रेयी रजस्वला का पर्याय For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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