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चोरों का विभाजन और दण्ड
८२५ जुआरी,मिथ्याचिकित्सक (क्वक या नकली वैद्य), 'सभ्यों' के घूसखोर, वेश्याएं, मध्यस्थता की वृत्ति करने वाले, कमसल (नकली) वस्तुओं के व्यापारी या जादू या हस्तरेखा या सामुद्रिक से भविष्य-वाणी करने वाले, झूठे साक्षी आदि प्रकाश तस्कर कहे जाते हैं। मनु (६१२६१-२६६) ने लिखा है कि इस प्रकार के तस्करों का पता लगाने के लिए राजा द्वारा सभा-स्थलों, जलपान-गृहों, वेश्या-भवनों मद्य-शालाओं, नाटकघरों आदि में ऐसे गुप्तचर नियुक्त करने चाहिए जो वेष-परिवर्तन कर सबका पता चलायें । अप्रकाश तस्कर वे हैं जो छिपे तौर से सबरी (सेंध मारने वाले हथियार) या अन्य हथियार लेकर घूमते हैं । इनके मुख्य नौ प्रकार हैं-उत्क्षेपक (उचक्का, जो किसी अन्य काम में लगे ब्यक्ति का सामान उठा लेता है), संधिभत्ता (सेंध मारनेवाला), पान्थमुट् (यात्रियों को लूट लेने वाला),प्रन्थि-भेदक (जेबकतरा या पाकेटमार) स्त्री-चोर, पुरुषचोर, पशु-चोर, अश्व-चोर तथा अन्य पशु-चोर । याज्ञ० (२२२६६-२६८) एवं नारद (परिशिष्ट ६-१२) ने चोरों को पकड़ने एवं उनका पता लगाने की विधियां बतायी हैं। यथा--राजकर्मचारी (पुलिस)द्वारा चोरी का कुछ सामान प्राप्त कर, या पद-चिह्न द्वारा या पुराने चोर को पकड़कर, या ऐसे व्यक्ति को पकड़ कर जो अपना पता न बताये । सन्देह पर भी व्यक्ति पकड़े जा सकते हैं; या पूछने पर अपना नाम या जाति न बताने वाले को पकड़ा जा सकता है; जुआरी, शराबी, वेश्यागामी को चोरी के सन्देह में पकड़ा जा सकता है; यदि पूछे जाने पर मुंह सूख जाय या स्वर बदल जाय तो व्यक्ति पर सन्देह किया जा सकता है; ऐसा व्यक्ति जिसके पास प्रचुर सम्पत्ति न हो, किन्तु पर्याप्त मात्रा में व्यय करता हो तो उस पर भी सन्देह किया जा सकता है; जो व्यक्ति खोयी हुई वस्तु बेचे या पुरानी वस्तु बेचे या वेश धारण कर घूमे या जो दूसरे की सम्पत्ति या घर के विषय में पूछताछ करे उस पर सन्देह किया जा सकता है। मिताक्षरा (याज्ञ ० २।२६८) ने नारद का उद्धरण दिया है कि केवल सन्देह पर ही अपराध सिद्ध नहीं होता, अतः राजा को भली प्रकार छानबीन करनी चाहिए, क्योंकि निरपराधी भी उपर्युक्त लक्षण प्रकट कर सकते हैं या अपने पास में वैसी वस्तुएँ (चोरी की) पा सकते हैं। यदि चोरी की वस्तु किसी के पास प्राप्त हो, तो यह सम्भव है कि वह उसके पास किसी अन्य व्यक्ति द्वारा आयी हो, या वह उसे पड़ी मिली हो, या उसकी उसने स्वयं चोरी की हो; झूठे व्यक्ति बहुधा सच्चे व्यक्तियों का चेहरा बनाये रहते हैं। देखिये नारद (१।४२ एवं १७१), मनु (६।२७० = मत्स्य० २२७।१६६) । चोरी में पकड़ लिये जाने पर केवल अस्वीकार से व्यक्ति बरी नहीं होता, उसे प्रमाणों द्वारा (यथा-वह उस समय अन्यत्र था) या दिव्य द्वारा अपनी सचाई सिद्ध करनी पड़ती है (याज्ञ० २।२६६) ।
प्रकाश (प्रकट) चोरों को दण्ड अपराध के हलकेपन या गुरुता के अनुपात में मिलता है न कि उनकी सम्पति के अनुपात में । और देखिये बृहस्पति (पराशरमाधवीय ३, पृ० ४३६-४४० एवं व्यवहारप्रकाश पृ० ३८७-३८८) । मनु (६।२६२) एवं मत्स्यपुराण (२२७।१८४-१८५) के अनुसार कण्टकों (धोखेबाजों) में सुनार सबसे बड़ा कण्टक है, यदि वह धोखा करता हुआ पकड़ा जाय तो उसके अंगों का विच्छेद, थोड़ा थोड़ा करके करना चाहिए।
गुप्त या अप्रकाश या अप्रकट चोरों के विषय में विशिष्ट नियम दिये हुए हैं। पूर्वोक्त तीन प्रकार की चोरी में वे ही दण्ड दिये जाते हैं जो साहस के तीन प्रकारों के लिए उल्लिखित हैं (नारद १२।२१) । मनु (८।३२३) ने कुलीन मनुष्यों (विशेषतः स्त्रियों) एवं बहुमूल्य धातुओं की चोरी में मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था दी है। व्यास ने स्त्रियों की चोरी पर जलते लोहे के ऊपर जलाकर मार डालने तथा मनुष्यों की चोरी पर हाथ-पैर काट डालने की दण्ड-व्यवस्था दी है। याज्ञ० (२।२७३) ने दूसरों को बन्दी बना लेने, अश्वों एवं हाथियों की चोरी तथा हिंसावृत्ति से दूसरे पर आक्रमण करने पर शूली पर चढ़ाने को कहा है। मनु (६२८०) ने राजा के भण्डार में एवं अस्त्रागार में सेंध लगाने या मन्दिर के प्रकोष्ठ में चोरी करने पर या हाथी, घोड़ा एवं रथ चोरी करने पर मृत्यु-दण्ड की व्यवस्था दी है। रात्रि में सेंध
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