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आततायी के प्रतिरोध का अधिकार
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चाहिए; जब उसे ऐसा करने से रोका न जा सके और मार डालना ही एक उपाय रह गया हो; धर्मशास्त्रकार ऐसा करने को अनुचित नहीं कहते । किन्तु यदि उसे घायल करके रोका जा सकता है तो जान से मार डालना अपराध कहा जायगा । मेघतिथि (मनु ८०३४८) ने अपनी व्याख्या में स्पष्ट किया है कि ऐसे आततायी को मार डालना चाहिए, भले ही वह अपने दुष्कर्म में लगा हुआ हो या उसे सम्पादित कर चुका हो । मिताक्षरा (याज्ञ० २।२२) का कथन है कि अपने प्राणों की रक्षा, स्त्रियों, दुर्बलों आदि की रक्षा में विरोध करने एवं मार डालने का अधिकार है और यदि ऐसा करने पर ब्राह्मण की हत्या हो जाय तो राजा द्वारा दण्ड नहीं मिलता और इस प्रकार की ब्रह्म हत्या का प्रायश्चित्त हलका होता है। इसी प्रकार पंजे एवं सींग वाले पशुओं, फण वाले साँपों या आक्रामक घोड़ों एवं हाथियों को मार डालने में कोई अपराध नहीं है ( कात्यायन ८०५; स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० ३१६) ।
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