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अध्याय २३
वाक्पारुष्य एवं दण्डपारुष्य (मानहानि एवं आक्रमण)
आधुनिक काल की फौजदारी के विवाद-पदों के अन्तर्गत ही वाक्पारुष्य, दण्ड-पारुष्य, स्तेय, स्त्रीसंग्रहण,साहस नामक पाँच शीर्षक आ जाते हैं। नारद (१८११) ने वाक्यारुष्य की व्याख्या यों की है--(यह वह है) जो किसी देश, जाति, कुल आदि के विषय में उच्च घोष द्वारा गाली के रूप में कहा जाय और जिस से कहे जाने वाले व्यक्ति को मानसिक कष्ट मिले और उसे अपराध-सा लगे। कात्यायन (७६८) ने इसे यों समझाया है-किसी के सामने हंकार करना, उसके सामने खाँसना या ऐसी अकृति करता या ऐसा उच्चारण करना जो लोक द्वारा हित माना जाय अर्थात जिसे लोग न करने या न कहने योग्य समझें, वह वाक्पारुष्य कहा जाता है। नारद (१८२-३) के भत से गाली
वाक्पारुष्य के तीन प्रकार हैं--निष्ठर (झिड़कियों के रूप में, यथा किसी को मूर्ख या दुष्ट कहना), अश्लील (गन्दी या अपमानजनक बात कहना) तथा तीव्र (भीषण आरोप लगाना, यथा किसी को ब्रह्म-हत्या या मद्य पीने का अपराधी बतलाना); और क्रम से इन तीनों के लिए अपेक्षाकृत अधिक दण्ड की व्यवस्था दी गयी है। किसी देश, जाति या कुल के लिए क्रम से इस प्रकार कहना कि 'गौड़ देश के लोग झगड़ान हैं' "ब्राह्मण बड़े लालची हैं' या 'विश्वामित्र गोत्र के लोग क्रूर कार्य करते हैं, ये गालियों के उदाहरण हैं। बृहस्पति ने वाक्पारुष्य को तीन प्रकार का कहा है सबसे छोटा(जब किसी देश. जाति या कल को गाली दी जाती है या किसी विशिष्ट कार्य की ओर संकेत न करके पापकर्म का अपराध लगाया जाता है) या जनगालो देनेवाला गालो दिये जानेवाले व्यक्ति की माता या बहिन के संभोग की गाली देता है. अर्थात जब माँ-बहिन की गाली दी जाती है या उपसातकों या छोटे-छोटे पापों की गाली दी जाती है तथा महान अपराध लगाना, अर्थात निषिद्ध भोजन या पेय ग्रहण करने का या महापातक का अपराध लगाना। स्मृतियों में उपर्युक्त वाक्पारुष्यों तथा वैसा करने वालों की जाति तथा जिनको गाली दी जाती है उनकी जाति के अनुसार दण्ड की व्यवस्था दी हुई है। उदाहरणार्थ मनु (८।२६७ - नारद १८।१५मत्स्यपुराण २२७।६६) ने ब्राह्मण को गाली देने पर गाली देनेवाले क्षत्रिय,वैश्य एवं शूद्र को क्रम से १००,१५० एवं २०० पणों का दण्ड लगाया है। इसी प्रकार मनु (८।२६८=नारद १८१६)ने क्षत्रिय, वैश्य एवं शुद्र को गाली देने पर अपराधी ब्राह्मण को से ५०, २५ एवं १२ पणों के दण्ड की व्यवस्था दी है । समान जातीय को गाली देने पर मामूली अपराध के लिए १२ पणों का दण्ड तथा माँ-बहिन की माली देने पर इसका दूना दण्ड लगाया गया है (मनु ८।२६६ =नारद १८/१७) । और देखिए याज्ञ० (२।२०६-२०७),विष्णु० (५।३५) । स्मृति चन्द्रिका (२, पृ० ३२७) एवं मदनरल के उद्धरणों
१. हुंकारः कासनं चैव लोके यच्च विहितम् । अनुकुदिनुयाद् वाक्पारुष्यां तदुच्यते ।। कात्यायन (७६८, अपरार्क पृ० ८०५, स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० ६) ।
२. उपपातकों (गोवध, व्यभिचार आदि) के लिए देखिये मनु (१५६-६६) । याज्ञ० (३।२३४-२४२) एवं विष्णुधर्मसूत्र (३७) में इनको लम्बी सूची दी हुई है ।
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