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घमंशास्त्र का इतिहास नहीं कराता, तो उसे उस खेत में उत्पन्न होने वाली उपज (जितनी वह ठीक से उस खेत के जोते एवं बोये जाने से उत्पन्न होती)का मूल्य देना पड़ता है और उस पर अर्थ-दण्ड भी लगता है। ऐसी स्थिति में उससे खेत छीनकर दूसरे को भी दिया जा सकता है।'३
१३. क्षेत्रं गृहीत्वा यः कश्चिन्नकर्यान्न च कारयेत्। स्वामिने स शतं दाप्यो राज्ञे दण्डं च तत्समम् ॥ व्यास विवादचिन्तामणि पु. ६५; व्य बहारप्रकाश पृ० ३६८; स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० २३८) । पराशरमाधवीय (३ पृ. ४०८) ने इसे बृहस्पति का माना है।
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