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________________ सीमा-विवाद के निर्णायक ८१५ नियम के विरोध में मिताक्षरा (याज्ञ०२।१५२) का कहना है कि यदि दोनों दल किसी एक साक्षी पर विश्वास करें तो वह मान्य हो सकता है । नारद (१४।१०) एवं बृहस्पति के अनुसार यदि दोनों दलों ने किसी एक ही व्यक्ति को चुना है (अन्य साक्षियों, प्रमाणयुक्त लक्षणों तथा प्रकाश या गुप्त प्रमाणों के अभाव में) तो उसे उपवास कर, अपने सिर पर मिट्टी रख,लाल वस्त्र धारण कर तथा लाल फूलों की माला पहनकर साक्ष्य देना चाहिए। यदि साक्ष्य देनेवाला शूद्र हो तो विश्वरूप (याज्ञ० २।१५६) ने बृहस्पति को उद्धृत करते हुए लिखा है कि उसे लाल वस्त्र धारण करना चाहिए, उसके मुख पर श्मशान की राख लगी रहनी चाहिए, उसकी छाती पर बकरे के रक्त वाली पाँच अंगुलियों की छाप रहनी चाहिए, यज्ञ के काम में लाये गये बकरे की लादी (अंतड़ियाँ) गले में बंधी रहनी चाहिए और उसके दाहिने हाथ में मिट्टी रहनी चाहिए। ६ इन सब बातों से निष्पक्षता एवं कार्य-गुरुता की ओर संकेत मिलता है। यदि कोई जानकार साक्षी न मिले तो राजा गाँवों के बीच की सीमा स्वयं निर्धारित करता है (याज्ञ ० २।१५३, नारद १४।११, मनु ८।२६५) । यदि झगड़े की सीमा किसी एक गाँव के लिए अपेक्षाकृत अधिक महत्वपूर्ण हो तो राजा पूरी भूमि उसे दे सकता है। राजा नवीन चिह्नों से नयी सीमाएँ खींच सकता है, या आधी-आधी भूमि दे सकता है। मनु (८। २४५) का कथन है कि यह कार्य ज्येष्ठ मास में जब कि चिह्न स्पष्ट रहते हैं राजा द्वारा किया जाना चाहिए । यदि दैवयोग या राजा द्वारा उपस्थित कोई आपत्ति या विपत्ति न आये तो साक्षियों या पड़ोसियों द्वारा निर्धारित सीमा तीन सप्ताहों के उपरान्त सुनिश्चित (अन्तिम) रूप ले लेती है (कात्यायन ७५१)। मनु (८।२६१) के अनुसार साक्षियों द्वारा निर्धारित सीमा राजा द्वारा या लेख्य द्वारा (जिसमें साक्षियों के नाम अंकित हों) प्रमाणित हो जानी चाहिए। सीमा-निर्धारण सम्बन्धी शिलालेखों के लिए देखिये फ्लीट का 'गुप्त इंस्क्रिप्शंस' (सं० २४, पृ० ११०) एवं एपिग्रेफिया इण्डिका (२४, १० ३२-३४, जहाँ धर्मशास्त्र-ग्रन्थों में वर्णित बातों का यथावत् पालन किया गया है। पड़ोसियों द्वारा भ्रामक साक्ष्य देने पर दण्ड की व्यवस्था दी गयी है (मनु ८२६३; याज्ञ० २।१५३; नारद १४७ एवं पुनः मनु ८।२५७ एवं नारद १४१८) । यदि मित्र तावश, लोभ या भय से कोई सच्ची बात कहने के लिए नहीं आता तो उसे सबसे बड़ा दण्ड मिलता था (कात्यायन ७६०) । बृहस्पति का कथन है कि यदि दो गांवों के बीच में कोई नदी बहती हो और संयोगवश बाढ़ में एक गांव की कुछ भूमि दूसरे गाँव में चली जाय तो पहला गांव उससे हाथ धो बैठता है, किन्तु ऐसा तभी होता है जब कि भूमि में अनाज न उग रहा हो। जब अन्न बोयी हुई भूमि इस प्रकार बाढ़ में कटकर दूसरे गाँव में चली जाय तो पहले गांव को अन्न प्राप्त होता है और भूमि दूसरे की हो जाती है ।१० ८. मातचिह्नविना साधुरेकोप्युभयसंमतः । रक्तमाल्याम्बरधरो मृदमादाय मूर्धनि । सत्यवतः सोपवासः सीमानं दर्शयेन्नरः॥ बृहस्पति (स्मृतिचन्द्रिका ३, पृ०२२१; पराशरमाधवीय ३, पृ० ३६३; व्यवहारप्रकाश पृ० ३५६) ६. शूद्राणां तु यथाह बृहस्पतिः। यदि शूद्रो नेता स्यात्तं क्लैब्येनालंकारेणालंकृत्य शवमस्मना मुखं विलिप्याग्नेयस्य पशोः शोणितेनोरसि पञ्चांगुलानि कृत्वा ग्रीवायामान्त्राणि प्रतिमुच्य सव्येन पाणिना सीमालोप्टं मूनि धारयेविति । रक्तकर्पटवसनादिः क्लैब्योलकारः । विश्वरूप । १०. प्रामयोरुभयोर्यत्र मर्यादा कल्पिता नदी । कुरुते दानहरण भाग्यामाग्यवशान णाम् । एकत्र कूलपातं तु भूमेरन्यत्र संस्थितिम् । नदी तीरे प्रकुरुते तस्य तां न विचालयेत् ।। क्षेत्र सशस्यमुल्लंध्य भूमिश्छिन्ना यदा भवेत् । नदीस्रोतःप्रवाहेण पूर्वस्वामी लभेत ताम् ।। बृहस्पति (स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० २३४; पराशरमाधवीय ३, पृ० ३६८; विवादरलाकर २१७ ; व्यवहारप्रकाश पृ० ३६२) । व्यवहारप्रकाश का कथन है-तस्य नदीवशात्प्राप्तमिकस्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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