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________________ ५८४ धर्मशास्त्र का इतिहास चर्चा हुई है, किन्तु निम्नलिखित ग्रन्थों को प्रभूत महत्त्व मिला है-महाभारत (वनपर्व १५०, सभा ५, उद्योग ३३-३४, शान्ति १-१३०, आश्रमवासिक ५-७), रामायण (अयोध्या, १५, ६७, १००; युद्ध, १७-१८, ६३), मनुस्मृति (७-६), कौटिल्य का अर्थशास्त्र (यह ग्रन्थ राजधर्म पर सबसे महत्त्वपूर्ण है), याज्ञवल्क्य (१।३०४-३६७), वृद्ध-हारीत-स्मृति (७।१८८-२७१), बृहत्पराशर (१०, पृ० २७७-२८५), विष्णु-धर्मसूत्र (३), कामन्दक का नीतिसार, अग्निपुराण (२१८-२४२), गरुडपुराण (१०८-११५), मत्स्यपुराण (२१५-२४३), विष्णुधर्मोत्तर (२), मार्कण्डेयपुराण (२४), कालिका पु० (८७), वैशम्पायन की नीतिप्रकाशिका, शुक्रनीतिसार, सोमेश्वर की अभिलषितार्थचिन्तामणि या मानसोल्लास (प्रथम चार विंशतियाँ), भोज का युक्तिकल्पतरु, सोमदेव (६५६ ई०) का नीतिवाक्यामृत, बृहस्पतिसूत्र, लक्ष्मीधर के कृत्यकल्पतरु का राजनीति-काण्ड, चण्डेश्वर का राजनीतिरत्नाकर, मित्र मिश्र का राजनीतिप्रकाश, नीलकण्ठ का नीतिमयूख, अनन्तदेव का राजधर्मकौस्तुभ, राजकुमार सम्भाजी का बुधभूषण तथा केशव पण्डित की दण्डनीति । कौटिलीय अर्थशास्त्र के प्रकाशन के उपरान्त अर्थशास्त्र-सम्बन्धी अनेक ग्रन्थ प्रकाशित हुए हैं, जिनकी तालिका देना यहाँ आवश्यक नहीं है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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