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________________ देने और न देने योग्य का विचार ७६७ दिलाये जाते थे । गौतम ( ५।२१ ) का कथन है कि यदि दानपान अधार्मिक हो तो दाता के द्वारा प्रतिश्रुतदान नहीं भी दिया जा सकता, अर्थात् उसके उत्तराधिकारी उसे नहीं भी दे सकते । नारद ( ७।१२) एवं बृहस्पति का कथन है कि जो अदत्त दान ग्रहण करते हैं अथवा जो वर्जित दान करते हैं, दोनों को राजा द्वारा दण्डित होना पड़ता है । ७ दान का तात्पर्य है दाता का उसके प्रति अस्वामित्व तथा लेनेवाले का उस दान के प्रति स्वामित्व हो जाना ( जब वह दान को स्वीकार कर ले ) । स्वीकार मानसिक, शाब्दिक एवं शारीरिक रूप से होता है । इस विषय में जीमूतवाहन जैसे लेखकों के विचार अवलोकनीय हैं ( दायभाग १।२१ - २४, पृ० १३-१५) । धर्मकारणात् । अदत्त्वा तु मृते दाप्यस्तत्सुतो नात्र संशयः ॥ कात्यायन ( विवादचिन्तामणि पृ० १६, व्यवहारप्रकाश पृ० ३१३, सरस्वतीविलास पृ० २८७, विवादचन्द्र पृ० ३७ ); प्रतिश्रुत्याप्रदातारं सुवर्णं दण्डयेन्नृपः । मत्स्यपुराण ( २२७२८, व्यवहारप्रकाश पृ० ३१० ) । ७. प्रतिश्रुत्याप्यधर्मसंयुक्ताय न दद्यात् । गौतम ( ५२१ ) । अदत्तभोक्ता दण्ड्यः स्यात्तथादेयप्रदायकः । बृहस्पति (सरस्वतीविलास पृ० २२८ ) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002790
Book TitleDharmshastra ka Itihas Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPandurang V Kane
PublisherHindi Bhavan Lakhnou
Publication Year1973
Total Pages454
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size12 MB
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