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चोरी की खरीद-बिक्री
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पृ० ७७५ एवं स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० २१७) में भी लिखित है। बृहस्पति का कथन है कि यदि मुकदमे में प्रमाण न हों तो राजा वादियों एवं प्रतिवादियों के कथनों के अधिक, सम या न्यून रूपों पर विचार करके निर्णय देता है। राजकर्मचारियों द्वारा नष्ट एवं प्राप्त वस्तुओं के विषय में पहले लिखा जा चका है (देखिए इस भाग के अध्याय ५ के अन्तिम
पृष्ठ)।
मूल्यं तु प्रगृह्णीत स्वकं धनम् । अधं द्वयोरपहृतं तत्र स्याद् व्यवहारतः ॥ अविज्ञातक्रयो दोषस्तथा चापरिपालनम् । एतद् द्वयं समाख्यातं द्रव्यहानिकर बुधैः ।। बृहस्पति (अपरार्क पृ० ७७५; कुल्लूक, मनु ८।२०२; कात्यायन, स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० २१६-२१७; पराशरमाधवीय ३, पृ० २६७ एवं ३००; व्यवहारप्रकाश १० २६५-२६६) ।
"कानून जागरूक की सहायता करता है।" । ___५. प्रमाणहीनवादे तु पुरुषापेक्षया नृपः। समन्यूनाधिकत्वेन स्वयं कुर्याद्विनिर्णयम् ॥ बृहस्पति (स्मृतिचन्द्रिका २, पृ० २१६ एवं विवादरत्नाकर पृ० १०८) ।
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